मोटे अनाजों को बढ़ावा देने के लिए मोदी सरकार ने सीजन 2021-22 के लिए बाजरा (Millet) का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) 2250 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है. लेकिन देश के चौथे सबसे बड़े बाजारा उत्पादक राज्य हरियाणा में किसान इसे सिर्फ 1100 से 1200 रुपये प्रति क्विंटल पर इसे बेचने के लिए मजबूर हैं. इसी सप्ताह सोनीपत की खरखौदा मंडी में एक किसान ने 1121 रुपये प्रति क्विंटल की दर से अपनी फसल बेची. जबकि राज्य के सीएम मनोहरलाल खट्टर आए दिन खुद को किसान हितैषी होने का दावा करते रहते हैं.
दरअसल, राज्यों के ऐसे हालातों की वजह से ही कुछ किसान नेताओं को केंद्र सरकार द्वारा लाए गए कृषि कानूनों (Farm Laws) पर सवाल उठाने का मौका मिल रहा है. हरियाणा में बाजारा की खेती करने वाले किसानों के ऐसे हालात तब हैं जब संयुक्त राष्ट्र महासभा की ओर से वर्ष 2023 को ‘अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष’ के तौर पर मनाने का फैसला लिया गया है. प्रधानमंत्री खुद मोटे अनाजों को लोकप्रिय बनाने की दिशा में काफी दिलचस्पी ले रहे हैं. लेकिन सवाल ये है कि जब किसानों को एमएसपी का आधा पैसा ही मिलेगा तो मोटे अनाज कौन पैदा करेगा? ऐसे में किसानों की आय कैसे दोगुनी होगी.
किसानों को लागत तक नहीं मिल रही
केंद्र सरकार ने प्रति क्विंटल बाजरा (Bajra) पैदा करने की लागत 1213 रुपये बताई है. लेकिन यह सी-2 कॉस्ट नहीं बल्कि ए2+एफएल लागत है. इस लागत में किसान की ओर से किया गया सभी तरह का भुगतान चाहे वो कैश में हो या किसी वस्तु की शक्ल में ( जैसे-बीज, खाद, कीटनाशक, मजदूरी, ईंधन, सिंचाई का खर्च) और परिवार के सदस्यों द्वारा खेती में की गई मेहतन का मेहनताना को जोड़ा जाता है. यानी के किसानों को इस लागत से भी कम पैसा मिल रहा है.
यहां बाजरा की सी-2 कॉस्ट 1778 रुपये है
कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (CACP) के एक अधिकारी के मुताबिक हरियाणा में बाजरा की C2 कॉस्ट 1778 रुपये प्रति क्विंटल है. इस तरह यहां के किसान भारी घाटा सहकर फसल बेच रहे हैं. सी-2 के तहत खाद, बीज, पानी के दाम के साथ ही कृषक परिवार की मजदूरी, स्वामित्व वाली जमीन का किराया और पूंजी पर ब्याज भी शामिल होता है.
भावांतर के बाद भी किसानों को घाटा
हरियाणा सरकार ने बाजरा पर भावांतर भरपाई योजना (Bhavantar Bharpayee Yojana) लागू कर दी है. यानी बाजरे के औसत बाजार भाव और एमएसपी के अंतर को भावांतर माना जाएगा. जो किसान मेरी फसल-मेरा ब्योरा पोर्टल पर रजिस्टर्ड हैं उन्हें 600 रुपये प्रति क्विंटल की दर से पैसा सरकार देगी. अब सोचिए कि अगर 1121 रुपये प्रति क्विंटल का दाम मिल रहा है और सरकार ने 600 अपने पास से दे भी दिया तो उसे सिर्फ 1721 रुपये प्रति क्विंटल का भाव मिलेगा. जो न सिर्फ न्यूनतम समर्थन मूल्य (2250) से काफी कम है बल्कि यहां की सी-2 लागत 1778 रुपये प्रति क्विंटल से भी कम है.
बाजरा बेचने वाले कितने किसान?
खरीफ-सीजन 2021 में बाजरे के लिए 2.71 लाख किसानों ने मेरी फसल-मेरा ब्योरा पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन करवाया है. लगभग 8 लाख 65 हजार एकड़ भूमि पर बाजरा की फसल का सत्यापन हुआ है. दक्षिण हरियाणा में बाजरे की फसल सबसे महत्वपूर्ण है. सरकार ने सिर्फ 25 फीसदी फसल ही एमएसपी पर खरीदने का एलान किया है. इसलिए ज्यादातर किसानों को एमएसपी नहीं मिल पाएगा.
कितनी होनी चाहिए भावांतर स्कीम की रकम
रूरल एंड अग्रेरियन इंडिया नेटवर्क (RAIN) के अध्यक्ष प्रो. सुधीर सुथार कहते हैं कि बाजरे के लिए किसानों को कायदे से कम से कम 2250 रुपये प्रति क्विंटल तो मिलना ही चाहिए. लेकिन दुर्भाग्य से हरियाणा में इसका आधा मिल रहा है. जिस भावांतर स्कीम से भरपाई का दावा किया जा रहा है क्या वो पैसा इतनी आसानी से किसानों को मिल जाएगा और क्या 600 रुपये प्रति क्विंटल की रकम भरपाई के लिए काफी है? इसका जवाब सरकार को देना चाहिए.
हरियाणा में बाजरा का मूल्य (1121 रुपये क्विंटल) मिल रहा है, उसके हिसाब से तो भावांतर की रकम 1200 रुपये प्रति क्विंटल होनी चाहिए तब जाकर किसान को एमएसपी जितना पैसा मिल पाएगा. दाम के मामले में किसानों से होने वाली इसी तरह की लूट को रोकने के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद की गारंटी का कानून मांगा जा रहा है.
घट रही सरकारी खरीद
खट्टर सरकार बाजरा उत्पादन कम करवाने की कोशिश में जुटी हुई है. इसके लिए बाजरा की फसल छोड़ने पर वो किसानों को चार-चार हजार रुपये प्रोत्साहन रकम दे रही है. केंद्र सरकार की खरीद रिपोर्ट के मुताबिक 2019-20 में यहां 100000 टन बाजरा को एमएसपी पर खरीदा गया था, लेकिन 2020-21 में यह घटकर सिर्फ 75,000 टन रह गया. बता दें कि हरियाणा में देश का लगभग 10.64 फीसदी बाजरा पैदा होता है.