पंजाब में गुलाबी सुंडी से कपास की फसल को काफी नुकसान हुआ

Parmod Kumar

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पंजाब के कपास किसान कर्ज के जाल में फंस गए हैं. मालवा क्षेत्र के किसान सामान्य तौर पर धान और गेहूं की खेती करते हैं. इस इलाके की तीसरी प्रमुख फसल कपास है और किसानों को इसी से सबसे अधिक कमाई होती है. इस बार स्थिति उलट है और पिंक बॉलवर्म के हमले से कपास की फसल बुरी तरह प्रभावित हुई है. राज्य के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने सितंबर में इलाके का दौरा किया था और मुआवजे की घोषणा की थी, लेकिन अभी तक किसानों को मुआवजा नहीं मिला है.

एक अनुमान के मुताबिक, पंजाब में लगभग 2.5 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में कपास की खेती होती है. अकेले मालवा क्षेत्र के बठिंडा जिले में 1 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में किसान कपास की खेती करते हैं. राज्य में मुख्य रूप से बीटी कपास बोया जाता है. किसानों को खुले बाजार में 9000 रुपए प्रति क्विंटल तक मिल जाते हैं. लेकिन इस बार पिंक बॉलवर्म, जिसे स्थानीय लोग गुलाबी सुंडी कहते हैं, ने सारी मेहनत पर पानी फेर दिया है.

गुलाबी सुंडी फूल खिलने से पहले ही कलियों को मार देती है

संगरूर के एक किसान इंडिया टूडे से बातचीत में कहते हैं कि हम काफी मुश्किल में हैं. हमारे लिए जीवित रहना कठिन हो गया है. गुलाबी सुंडी ने सबकुछ बर्बाद कर दिया है. खेत में अब कुछ भी नहीं है.

कपास के पौधे के फूल हर मौसम में तीन बार खिलते हैं. गुलाबी सुंडी फूल के खिलने से पहले ही कलियों को मार देती है और सफेद कपास काले खोल में बदल जाता है. किसान दलजीत सिंह का कहना है कि कड़ी मेहनत से उगाई गई फसल को खेतों में बर्बाद होते हुए देखना विनाशकारी है.

दो महीने बाद भी नहीं मिला मुआवजा

बठिंडा में जसप्रीत कौर और कई अन्य महिला किसान अपनी फसल खराब होने से दुखी हैं. जसवीर का कहना है कि बाजार में ले जाने के लिए खेतों में कुछ नहीं बचा है. 45 वर्षीय मलकीत कौर की 10 एकड़ में लगी फसल बर्बाद हुई है. अब खेत में कुछ है ही नहीं. मल्कित कौर कहती हैं कि नुकसान इतना बड़ा है कि हम खेतों में काम करने वालों को भी भुगतान करने में असमर्थ हैं.

ऐसा नहीं है कि किसानों को आश्वासन नहीं मिला है. मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी खुद बठिंडा आए थे और फसल नुकसान का पूरा मुआवजा देने का वादा किया था. उन्होंने एक प्रभावित कपास किसान को गले भी लगाया था. उस घटना के दो महीने बीत जाने के बाद भी किसान मुआवजे के इंतजार में हैं.