अगर आप कृषि मंत्रालय के कुछ अधिकारियों और मंत्रियों की सलाह पर पराली मैनेजमेंट के बिजनेस में निवेश करने जा रहे हैं तो आपको नुकसान हो सकता है. हरियाणा में फसलों के अवशेष का बंडल बनाने वाली मशीन स्ट्रा बेलर खरीदने वाले लोग काफी परेशान हैं. क्योंकि उन्हें काम ही नहीं मिला. काम इसलिए नहीं मिला क्योंकि पराली जलाने की घटनाएं पहले से भी अधिक हो गईं. पराली बचेगी तब तो उसके मैनेजमेंट के लिए आपको काम मिलेगा. पिछले दिनों बेलर मशीन संचालकों ने अपनी इसी पीड़ा को बताने के लिए सीएम से मुलाकात की थी. ऐसे में उनकी गलतियों को आपको सीखने की जरूरत है.
दरअसल, पिछले कुछ ही साल में पराली मैनेजमेंट के नाम पर कृषि मशीन बनाने वाली लॉबी ने अपना एक बड़ा बिजनेस खड़ा किया है. इस ट्रैप में हजारों लोग फंसे हुए हैं. मशीन बनाने वाली कंपनियां मालामाल हो गईं और जिन्होंने पराली मैनेजमेंट प्लांट लगाया वो घाटे में चले गए. कृषि मंत्रालय ने पराली मैनेजमेंट के लिए 50 रुपये के डी-कंपोजर की जगह लाखों की मशीनों को प्रमोट किया. क्योंकि पराली मैनेजमेंट की मशीन बनाने वाली कंपनियों ने उनका हित साधा. अब मशीन खरीदने वाले पछताने लगे हैं. फसल अवशेष मैनेजमेंट की मशीनें 3 से 5 लाख रुपये में आती हैं.
आगे और होगी दिक्कत क्योंकि…
अक्टूबर 2021 तक पराली जलाना अपराध था. तब 92047 जगहों पर पराली जलाई गई. अब सरकार ने पराली जलाने को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया है. ऐसे में समझ सकते हैं कि जब ऐसा करना अपराध नहीं है तो कौन भला जलाने की जगह उसे गलाने का या मैनेजमेंट का काम करेगा? नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (National Green Tribunal) ने 10 दिसंबर 2015 को फसल अवशेषों को जलाने पर रोक लगाई थी. जो किसान पराली जलाते थे उन पर एफआईआर दर्ज होती थी और जुर्माना लगाया जाता था. पराली जलाते हुए पकड़े जाने पर 2 एकड़ जमीन तक 25,00 रुपए, 2-5 एकड़ तक पर 5,000 और उससे ज्यादा होने पर 15,000 रुपए का जुर्माना लगता था.
कृषि विशेषज्ञ बिनोद आनंद का कहना है कि पराली प्रबंधन की मशीनें (Parali Management Machines) लेना नुकसानदायक है. क्योंकि ये मशीनें 15 से 20 दिन ही काम में आती हैं. कृषि मंत्रालय को मशीनों की बजाय डी-कंपोजर को प्रमोट करने की जरूरत है. जो किसानों (Farmers) के लिए न सिर्फ सस्ता विकल्प है बल्कि मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ाने का माध्यम भी है. दुर्भाग्य से एक पूरी लॉबी सिर्फ मशीनों के प्रमोशन में लगी हुई है.
पराली मैनेजमेंट के एक्शन प्लान की विफलता
मिनिस्ट्री ऑफ न्यू एंड रिन्यूएबल एनर्जी के अनुसार देश में सालाना 501.73 मिलियन टन फसल अवशेष (गेहूं, धान और गन्ना) पैदा होता है. इसमें यूपी, पंजाब और हरियाणा का बड़ा योगदान है.
>>उत्तर प्रदेश की बात करें तो यहाा सालाना 59.97 मिलियन टन फसल अवशेष पैदा होता है, लेकिन 2019-20 से 2021-22 के दौरान कुल 2 मिलियन टन का भी प्रबंधन नहीं हुआ.
>>पंजाब में सालाना 50.75 मिलियन टन फसल अवशेष होता है, लेकिन 2019-20 से 2021-22 के दौरान कुल महज 9.22 मिलियन टन का ही प्रबंधन हुआ.
>>हरियाणा में वार्षिक 27.83 मिलियन टन फसल अवशेष होता है, लेकिन 2019-20 से 2021-22 के दौरान 2.8 मिलियन टन का ही मैनेजमेंट हुआ.
(केंद्रीय कृषि मंत्रालय की रिपोर्ट)
तीन राज्यों में फसल अवशेष प्रबंधन का रिकॉर्ड
राज्य | मशीनों की संख्या | लाख टन* | लाख हेक्टेयर# |
पंजाब | 63654 | 92.20 | 14.21 |
हरियाणा | 62150 | 28.00 | 7.00 |
उत्तर प्रदेश | 31905 | 19.98 | 7.49 |
*फसल अवशेष प्रबंधन की मात्रा. #भूमि का क्षेत्रफल जिस पर फसल अवशेष प्रबंधन अपनाया गया. |
2019-20 से 2021-22 तक. Source: Ministry of Agriculture |
क्यों पैदा हुई फसल अवशेष की समस्या?
कुछ साल पहले तक जब फसलों की कटाई श्रमिकों के जरिए होती थी तो फसल अवशेष बहुत कम निकलता था. गेहूं और धान की जड़ खेतों में सड़ जाती थी. लेकिन जब से मशीनीकरण को बढ़ावा मिला है तब से नई समस्या पैदा हो गई. इस समय कंबाइन हार्वेस्टर जैसी फसल काटने वाली कई मशीनें आ गई है, जो फसल में फल वाले ऊपरी हिस्से को काट देती है लेकिन पूरा तना खेती में रह जाता है. जिसे किसान जला देते हैं.