- ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी स्टूडेंट यूनियन की अध्यक्ष बनी थीं रश्मि सामंत
- पुरानी ट्विटर पोस्ट्स पर विवाद होने के बाद रश्मि ने दे दिया था इस्तीफा
- उन्होंने अब इंटरव्यू में लगाया आरोप- मैं नस्लवाद की शिकार हुई….
- विदेश मंत्री ने कहा- जब जरूरत होगी ऐसे मुद्दे यूके के सामने उठाएंगे
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने ब्रिटेन में रश्मि सामंत के साथ नस्लीय भेदभाव के आरोपों पर प्रतिक्रिया दी है। जिस तरह यूके की संसद ने भारत में जारी किसान आंदोलन पर चर्चा की थी, कुछ उसी तरह भारतीय संसद में रश्मि का मुद्दा गूंजा। विदेश मंत्री ने सोमवार को राज्य सभा में कहा कि भारत सरकार सभी डिवेलपमेंट्स पर नजर बनाए हुए है। उन्होंने कहा कि जब जरूरत होगी तो भारत इसे मुद्दे को मजबूती से उठाएगा। रश्मि ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी स्टूडेंट यूनियन की पहली भारतीय महिला अध्यक्ष बनकर इतिहास बना चुकी थीं मगर उसके बाद उन्हें कुछ पुरानी टिप्पणियों के चलते इस्तीफा देना पड़ा। सामंत ने दावा किया कि इस पूरे प्रकरण में ‘रेशियल प्रोफाइलिंग’ शामिल थी।
जयशंकर ने क्या कहा?
महात्मा गांधी की जमीन से होने के नाते, हम कभी नस्लवाद से आंखें नहीं चुरा सकते। खासतौर से तब जब यह किसी ऐसे देश में हो जहां हमारो लोग इतनी ज्यादा संख्या में हों। हमारे यूके साथ मजबूत रिश्ते हैं। जरूरत पड़ने पर हम पूरी स्पष्टता से ऐसे मुद्दे उठाएंगे।
रश्मि सामंत अध्यक्ष पद के लिए डाले गए 3,708 मतों में से 1,966 वोट मिले थे। उनके चुनाव जीतने के बाद 2017 की कुछ पुरानी सोशल मीडिया पोस्ट्स को ‘नस्लभेदी’, ‘साम्य विरोधी’ और ‘ट्रांसफोबिक’ बताया गया। इसमें 2017 में जर्मनी में बर्लिन होलोकास्ट मेमोरियल की यात्रा के दौरान एक पोस्ट में नरसंहार से जुड़ी टिप्पणी और मलेशिया की यात्रा के दौरान तस्वीर को चिंग चांग शीर्षक देने से जुड़ा विवाद है, जिससे चीन के छात्र नाराज हो गए।
ऑक्सफर्ड की पहली भारतीय महिला अध्यक्ष रश्मि सामंत ने दिया इस्तीफा, जानें कारण
इसके बाद ऑक्सफर्ड कैम्पेन फॉर रेशियल अवेयरनेस एंड इक्वलिटी (CRAE) और ऑक्सफर्ड LGBTQ+ कैम्पेन ने उनके इस्तीफे की मांग कर दी। सामंत ने एक खुले पत्र में माफी भी मांगी लेकिन जब विवाद नहीं थमा तो उन्होंने इस्तीफा देने का फैसला किया। वह भारत लौट आई हैं और पुराने पोस्ट्स भी हटा दिए।
भारत लौटने के बाद सामंत ने एक इंटरव्यू में कहा, “अगर मैं एक खास तरह की दिखती होती तो मुझे पूरा यकीन है कि मुझे संदेह का लाभ मिलता… मेरे मामले में वे फौरन नतीजों पर पहुंच गए। नस्लवाद अब खुले तौर पर नहीं छिपे व्यवहार के जरिए होता है।”
दिल्ली की सीमाओं पर किसान प्रदर्शन कर रहे हैं। इसे लेकर ब्रिटेन की संसद में चर्चा हुई। इस दौरान कंजर्वेटिव पार्टी की थेरेसा विलियर्स ने साफ कहा कि कृषि भारत का आंतरिक मामला है और उसे लेकर किसी विदेशी संसद में चर्चा नहीं की जा सकती। हालांकि लेबर पार्टी के सांसद तनमनजीत सिंह धेसी के नेतृत्व में 36 ब्रिटिश सांसदों ने किसान आंदोलन के समर्थन में चिट्ठी लिखकर भारत पर दबाव बनाने की बात कही थी। अब भारतीय संसद में एक यूनिवर्सिटी के विवाद पर प्रतिक्रिया दिए जाने को यूके के लिए एक संदेश की तरह देखा जा रहा है। नस्लवाद को किसी भी देश का आंतरिक मसला नहीं कहा जा सकता।