प्रमोद कुमार फतेहाबाद.
इनेलो की टिकट पर पहली बार विधायक बनने के बाद कभी बलवान सिंह दौलतपुरिया ने नहीं सोचा होगा की उनको भाजपा में शामिल होना पड़ सकता है, दौलतपुरिया इनेलो नेता अभय सिंह चौटाला के काफी करीबी माने जाते थे, शायद इसी कारण बलवान सिंह दौलतपुरिया को अभय चौटाला ने टिकट दिया और वे चुनाव जीत गए, फतेहाबाद हलके की बात करें तो ये काफी लम्बा चौड़ा है, कभी भट्टू हलका जो जाट बाहुल्य इलाका था अब इसी हलके का हिस्सा है, इसी का बड़ा फायदा दौलतपुरिया को मिला, इसके साथ पिछले चुनाव में जब दौलतपुरिया को टिकट मिला तो यहां तिकोना मुकाबला हो गया था, कांग्रेस से प्रह्लाद सिंह गिल्लाखेड़ा को टिकट मिला तो भाजपा से यहां फतेहाबाद की ही रहने वाली स्वतंत्र बाला को चुनावी मैदान में उतारा था, भाजपा के उम्मीदवार को जितवाने के लिए खुद मनोहरलाल यहां आकर चुनावी जनसभा को सम्बोधित करके गए थे, इसके अलावा यहां से एक मजबूत चेहरा थे चौधरी धूड़ाराम, वे चौधरी भजनलाल में भतीजे हैं जो हरियाणा जनहित कांग्रेस से चुनाव लड़ रहे थे, कुल मिलकर मुकाबला इनेलो के बलवान सिंह दौलतपुरिया और हजकां के चौधरी धुडाराम में रहा, हाँ फतेहाबाद शहर के वोट लेने में भाजपा की स्वतंत्र बाला कामयाब रही, शायद इसी कारण इनेलो के बलवान सिंह दौलतपुरिया चुनाव जीत गए थे. लेकिन जब इनेलो और जेजेपी अलग-अलग हुई तो कई विधायकों ने जेजेपी का दामन थामा तो कइयों ने भाजपा को ज्वाइन कर लिया लेकिन किसी ने भी ऐसा नहीं सोचा होगा की अभय सिंह चौटाला के खास विधायक बलवान सिंह दौलतपुरिया भी उनको छोड़ जायेंगे, दौलतपुरिया ने भाजपा ज्वाइन करके सभी को चौंका दिया, लेकिन जब से बलवान सिंह भाजपा के हुए हैं, एक बात तो खास है की विधायक जी का लाइफ स्टाइल बिलकुल बदल गया है, इनदिनों वे अपने हलके में ही भाजपा के नेताओं के साथ इनेलो के वर्कर को भाजपा में शामिल करवाने के लिए मेहनत कर रहे हैं, हर रोज कई कई गावों में जाकर जनसभा कर रहे हैं, सुबह सवेरे उठकर वे गावों के वर्कर से भी बातचीत कर रहे हैं, इसके अलावा गावों में जाकर भारत माता के नारे लगाते हुए नजर आ रहे हैं.
फतेहाबाद से हो सकते हैं भाजपा के उम्मीदवार
माना ये जा रहा है की बलवान सिंह दौलतपुरिया की सक्रियता इस बात के संकेत दे रही है की वे विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुट गए हैं, अपने हलके में जाकर कार्यकर्ताओं की नब्ज टटोल रहे हैं, हालाँकि भाजपा से स्वतंत्र बाला यहां चुनाव लड़ चुकी है मगर वे ज्यादा प्रभावी नहीं दिख रही हैं, इसलिए जाट नेता होने के चलते भाजपा दौलतपुरिया पर दांव खेल सकती है. दौलतपुरिया के इस कदम ने कई नेताओं का खेल यहां बिगड़ दिया है, क्योंकि देखा जाये तो भाजपा में जाने के लिए कई नेता तैयार थे लेकिन दौलतपुरिया ने समय रहते फैसला लिया और अब जो नेता भाजपा में शामिल होना चाहते थे वे एक बारगी अपने कदम पीछे खिंच गए हैं, जिसका फायदा निश्चित रूप से दौलतपुरिया को मिल सकता है.