पंजाब में अमृतपाल के बहाने खालिस्तान चर्चा में

Parmod Kumar

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खालिस्तान आंदोलन की कहानी 1929 में शुरू होती है। कांग्रेस के लाहौर सेशन में मोतीलाल नेहरू ने पूर्ण स्वराज का प्रस्ताव रखा। इस दौरान तीन तरह के समूहों ने इस प्रस्ताव का विरोध किया।पहला- मोहम्मद अली जिन्ना की अगुआई में मुस्लिम लीग। दूसरा समूह दलितों का था। जिनकी अगुआई डॉ. भीमराव अंबेडकर कर रहे थे। अंबेडकर दलितों के लिए अधिकारों की मांग कर रहे थे। तीसरा गुट मास्टर तारा सिंह की अगुआई में शिरोमणि अकाली दल का था।

तारा सिंह ने पहली बार सिखों के लिए अलग राज्य की मांग रखी। 1947 में यह मांग आंदोलन में बदल गई। इसे नाम दिया गया पंजाबी सूबा आंदोलन। आजादी के समय पंजाब को दो हिस्सों में बांट दिया गया।शिरोमणि अकाली दल भारत में ही भाषाई आधार पर एक अलग सिख सूबा यानी सिख प्रदेश मांग रहा था। स्वतंत्र भारत में बने राज्य पुनर्गठन आयोग ने यह मांग मानने से इनकार कर दिया। पूरे पंजाब में 19 साल तक अलग सिख सूबे के लिए आंदोलन और प्रदर्शन होते रहे।

इस दौरान हिंसा की घटनाएं बढ़ने लगीं। आखिरकार 1966 में इंदिरा गांधी सरकार ने पंजाब को तीन हिस्सों में बांटने का फैसला किया। सिखों की बहुलता वाला पंजाब, हिंदी भाषा बोलने वालों के लिए हरियाणा और तीसरा हिस्सा चंडीगढ़ था।

चंडीगढ़ को केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया। इसे दोनों नए प्रदेशों की राजधानी बना दिया गया। इसके अलावा पंजाब के कुछ पर्वतीय इलाके को हिमाचल प्रदेश में मिला दिया गया। इस बड़े फैसले के बावजूद कई लोग इस बंटवारे से खुश नहीं थे। कुछ लोग पंजाब को दिए गए इलाकों से नाखुश थे, तो कुछ साझा राजधानी के विचार से खफा थे। खालिस्तान आंदोलन की कहानी 1929 में शुरू होती है। कांग्रेस के लाहौर सेशन में मोतीलाल नेहरू ने पूर्ण स्वराज का प्रस्ताव रखा। इस दौरान तीन तरह के समूहों ने इस प्रस्ताव का विरोध किया।

पहला- मोहम्मद अली जिन्ना की अगुआई में मुस्लिम लीग। दूसरा समूह दलितों का था। जिनकी अगुआई डॉ. भीमराव अंबेडकर कर रहे थे। अंबेडकर दलितों के लिए अधिकारों की मांग कर रहे थे। तीसरा गुट मास्टर तारा सिंह की अगुआई में शिरोमणि अकाली दल का था।तारा सिंह ने पहली बार सिखों के लिए अलग राज्य की मांग रखी। 1947 में यह मांग आंदोलन में बदल गई। इसे नाम दिया गया पंजाबी सूबा आंदोलन। आजादी के समय पंजाब को दो हिस्सों में बांट दिया गया।

शिरोमणि अकाली दल भारत में ही भाषाई आधार पर एक अलग सिख सूबा यानी सिख प्रदेश मांग रहा था। स्वतंत्र भारत में बने राज्य पुनर्गठन आयोग ने यह मांग मानने से इनकार कर दिया। पूरे पंजाब में 19 साल तक अलग सिख सूबे के लिए आंदोलन और प्रदर्शन होते रहे।

इस दौरान हिंसा की घटनाएं बढ़ने लगीं। आखिरकार 1966 में इंदिरा गांधी सरकार ने पंजाब को तीन हिस्सों में बांटने का फैसला किया। सिखों की बहुलता वाला पंजाब, हिंदी भाषा बोलने वालों के लिए हरियाणा और तीसरा हिस्सा चंडीगढ़ था।

चंडीगढ़ को केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया। इसे दोनों नए प्रदेशों की राजधानी बना दिया गया। इसके अलावा पंजाब के कुछ पर्वतीय इलाके को हिमाचल प्रदेश में मिला दिया गया। इस बड़े फैसले के बावजूद कई लोग इस बंटवारे से खुश नहीं थे। कुछ लोग पंजाब को दिए गए इलाकों से नाखुश थे, तो कुछ साझा राजधानी के विचार से खफा थे।

एक साल बाद 23 जून 1985 में कनाडा में रह रहे खालिस्तान समर्थकों ने एअर इंडिया की फ्लाइट को बम रखकर उड़ा दिया। इस दौरान 329 लोगों की मौत हो गई। बब्बर खालसा के उग्रवादियों ने इसे भिंडरांवाले की मौत का बदला करार दिया। 10 अगस्त 1986 को ऑपरेशन ब्लूस्टार को लीड करने वाले पूर्व सेना प्रमुख जनरल एएस वैद्य की पुणे में दो बाइक सवार उग्रवादियों ने हत्या कर दी थी। खालिस्तान कमांडो फोर्स ने इस हत्या की जिम्मेदारी ली थी। 31 अगस्त 1995 को एक सुसाइड बॉम्बर ने पंजाब के CM बेअंत सिंह की कार के पास खुद को उड़ा लिया था। इसमें बेअंत सिंह की मौत हो गई थी। सिंह को सिख अतिवाद का सफाया करने का श्रेय दिया जाता था।