मुंबई: राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ अपने 65 से भी ज्यादा सहयोगी संगठनों के जरिए महाराष्ट्र में ‘सजग रहो’ नाम से एक अभियान चला रहा है। इस अभियान का मकसद सिर्फ विधानसभा चुनावों में बीजेपी को मजबूत करना ही नहीं है, बल्कि इसे ‘हिंदुओं को बांटने और उन्हें और भी छोटे-छोटे समूहों में विभाजित करने के बड़े प्रयास’ के खिलाफ एक जवाबी कार्रवाई के तौर पर भी देखता है। आरएसएस का मानना है कि इस प्रयास का असर राजनीति से भी आगे तक होगा। यह अभियान ऐसे समय में चलाया जा रहा है जब महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों की सुगबुगाहट तेज हो गई है। इस दौरान बीजेपी और महायुति को हिंदू वोट बैंक को अपने पाले में लाने की कोशिशें भी तेज़ होती दिखाई दे रही हैं।
पीएम ने धुले में दिया था ये बयान
प्रधानमंत्री मोदी ने ‘एक है तो सेफ है’ टिप्पणी धुले में की थी, जहां बीजेपी-आरएसएस का कहना है कि मालेगांव में मुस्लिम वोटों के एकजुट होने के कारण लोकसभा चुनावों में बीजेपी उम्मीदवार को मामूली अंतर से हार का सामना करना पड़ा था। इसी कड़ी में योगी आदित्यनाथ ने महाराष्ट्र के वाशिम में कहा था ‘एक है तो नेक हैं’। यहां ‘नेक’ का मतलब है कि अगर हिंदुओं को बांटा नहीं गया तो वे नेक बने रहेंगे।
“किसी के खिलाफ नहीं है ये अभियान’
हालांकि संघ के सूत्रों ने कहा कि ‘सजग रहो’ और ‘एक है तो सेफ हैं’ किसी के खिलाफ नहीं हैं, बल्कि इनका मकसद हिंदुओं के बीच जाति विभाजन को खत्म करना है। बीजेपी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा कि आरएसएस के ‘स्वयंसेवकों’ और 65 से ज़्यादा गैर सरकारी संगठनों द्वारा इस संदेश को लोगों तक पहुंचाने के लिए बैठकें आयोजित की जा रही हैं। संघ के सूत्रों के मुताबिक, हालांकि इस अभियान का तात्कालिक उद्देश्य महाराष्ट्र चुनाव हैं, लेकिन यह एक बड़ी घटना के जवाब में वैचारिक और बौद्धिक प्रतिक्रिया के उभार को दर्शाता है।
इस अभियान में ये शामिल
इस अभियान में शामिल समूहों में चाणक्य प्रतिष्ठान, मातंग साहित्य परिषद और रणरागिनी सेवाभावी संस्था शामिल हैं। महाराष्ट्र में संघ की सभी चारों ‘प्रांत’ या क्षेत्रीय इकाइयां- कोंकण (मुंबई और गोवा सहित), देवगिरि (मराठवाड़ा), पश्चिम महाराष्ट्र (जिसमें नासिक और उत्तरी महाराष्ट्र के कुछ हिस्से शामिल हैं) और विदर्भ (जहां RSS का मुख्यालय है) शाखा स्तर पर बैठकें आयोजित करके इस अभियान में शामिल हैं। इस अभियान के मुख्य आकर्षणों में से एक है धुले लोकसभा और मुंबई उत्तर पूर्व लोकसभा सीट के नतीजों का उदाहरण के तौर पर इस्तेमाल करना। यह उस चीज़ की ओर इशारा करता है जिसे संघ ‘मालेगांव मॉडल’ कहता हैकि इससे ‘बंटे हुए’ हिंदू समुदाय को नुकसान पहुंचा है।
आधिकारित तौर पर इस अभियान की जिम्मेदारी नहीं ले रहा आरएसएस
आरएसएस आधिकारिक तौर पर संगठन के तौर पर इस अभियान की ज़िम्मेदारी नहीं ले रहा है, बल्कि इसे केवल ‘स्वयंसेवकों की एक पहल’ बता रहा है। आरएसएस के एक पदाधिकारी ने कहा कि स्वयंसेवकों ने हिंदू समाज को यह बताने की अगुवाई की है कि उन्हें जाति के आधार पर विभाजित नहीं होना चाहिए, खास तौर पर ऐसे समय में जब राज्य में मराठा-ओबीसी विभाजन गहरा गया है।