करेंसी नोट के लिए महात्मा गांधी नहीं थे पहली पसंद, फिर कब और कैसे छपी उनकी तस्वीर?

parmodkumar

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आजादी के बाद करेंसी नोट्स पर छपने के लिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की तस्वीर स्वाभाविक पसंद होनी चाहिए थी। शुरू में यह महसूस किया गया कि इंग्लैंड के राजा की तस्वीर के बदले महात्मा गांधी की तस्वीर लगानी चाहिए। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

नई दिल्ली: हर देश की करेंसी में उसके इतिहास, संस्कृति और विरासत की झलक देखने को मिलती है। दुनिया के कई देशों पर उनके संस्थापकों की तस्वीर अंकित होती है। मसलन अमेरिकी डॉलर में जॉर्ज वाशिंगटन, पाकिस्तान के रुपये में मोहम्मद अली जिन्ना और चीन में माओत्से तुंग की तस्वीर लगी है। इसी तरह भारत में हमारे करेंसी नोटों पर महात्मा गांधी की तस्वीर है। लेकिन स्वतंत्र भारत में करेंसी नोटों के लिए गांधी की तस्वीर को शुरुआत में नकार दिया गया था। बहुत बाद में नोटों पर गांधी की तस्वीर आनी शुरू हुई थी।

आजादी के बाद हमारे करेंसी नोटों पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की तस्वीर लगना स्वाभाविक था लेकिन वे इसके लिए पहली पसंद नहीं थे। भारतीय रिजर्व बैंक के मुताबिक 14 अगस्त, 1947 की मध्यरात्रि को भारत को अंग्रेजों की दासता से मुक्ति मिली और 26 जनवरी, 1950 को भारत गणतंत्र बना। इस अंतराल के दौरान रिजर्व बैंक ने आजादी के पहले से चले आ रहे नोटों का चलन जारी रखा। भारत सरकार ने 1949 में नए डिजाइन का 1 रुपये का नोट निकाला। स्वतंत्र भारत के लिए प्रतीकों का चयन किया जाना था।

आम सहमति नहीं बनी

शुरू में यह महसूस किया गया कि इंग्लैंड के राजा की तस्वीर के बदले महात्मा गांधी की तस्वीर लगानी चाहिए। इसके लिए डिजाइन तैयार किए गए थे। लेकिन फाइनल एनालिसिस में गांधी के बजाय सारनाथ के सिंह स्तंभ पर आम सहमति बनी। नोटों का नया डिजाइन काफी हद तक पहले की तर्ज पर था। स्वतंत्रता के बाद कई वर्षों तक बैंक नोटों ने भारत की समृद्ध विरासत और प्रगति को जगह दी गई। 1950 और 1960 के दशक के नोटों पर बाघ और हिरण जैसे जानवरों की तस्वीर छापी गईं। साथ ही हीराकुंड बांध और आर्यभट्ट उपग्रह जैसे औद्योगिक उन्नति के प्रतीक और बृहदेश्वर मंदिर को भी जगह मिल।

ये डिजाइन भारत के विकास और आधुनिकीकरण के साथ-साथ इसकी सांस्कृतिक विरासत को दर्शाते थे। 1969 में गांधी की जन्म शताब्दी के मौके पर पहली बार उनकी तस्वीर करेंसी नोट पर दिखाई दी थी। इस डिजाइन में गांधी बैठे हुए थे और इसके बैकग्राउंड में उनका सेवाग्राम आश्रम था। 1987 में जब राजीव गांधी सरकार ने 500 रुपये के नोट को फिर से शुरू किया गया तो इसमें पहली बार गांधी की फोटो को जगह मिली। RBI ने 1996 में महात्मा गांधी सीरीज लॉन्च की जिसमें वॉटरमार्क और सुरक्षा धागा जैसे सेफ्टी फीचर्स थे।

गांधी नहीं तो कौन

यह भारत के करेंसी इतिहास में एक महत्वपूर्ण क्षण था, क्योंकि गांधी भारतीय नोटों के सभी मूल्यवर्गों पर स्थायी चेहरा बन गए। करेंसी नोटों पर गांधी की तस्वीर को बदलने की मांग भी समय-समय पर उठती रही है। जवाहरलाल नेहरू, सुभाष चंद्र बोस, सरदार पटेल और यहां तक कि देवी लक्ष्मी और गणेश की प्रतिमाओं को भी विकल्प के तौर पर प्रस्तावित किया गया है। 2016 में जब पूछा गया कि क्या सरकार करेंसी नोटों पर अन्य महापुरुषों की तस्वीरें लगाने या बदलने का इरादा रखती है, तो वित्त राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा, ‘यूपीए के दौरान एक समिति बनाई गई थी, जिसने पहले ही तय कर लिया है कि करेंसी नोटों पर महात्मा गांधी की तस्वीर बदलने की कोई ज़रूरत नहीं है।’

तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा, ‘सरकार समय-समय पर आरबीआई के परामर्श से यह निर्णय लेती है कि किस मुद्रा को प्रचलन में लाया जाए। बैंक नोटों के डिजाइन और सुरक्षा विशेषताओं को सरकार समय-समय पर आरबीआई के परामर्श से तय करती है। देश में बैंक नोटों के प्रचलन के बारे में निर्णय आरबीआई द्वारा लिया जाता है। जब पूछा गया कि क्या सरकार बी.आर. अंबेडकर की 125वीं जयंती मनाने के लिए उनकी तस्वीर वाला करेंसी नोट या सिक्का पेश करने का प्रस्ताव रखती है, तो मेघवाल ने जवाब दिया कि सरकार पहले ही 125 रुपये का गैर-प्रचलन स्मारक सिक्का और 100 रुपये का प्रचलन सिक्का जारी कर चुकी है। अंबेडकर की जयंती के अवसर पर 10 रुपये के नोट जारी किए गए, जिसे प्रधानमंत्री ने 6 दिसंबर, 2015 को जारी किया था।