मानसून के समय बारिश के चलते कपास की फसल में जल प्रबंधन बहुत जरूरी है, वरना फसल खराब होने का अंदेशा रहता है. ऐसे में अधिक बारिश के बाद फसल से पानी की निकासी जरूर करनी चाहिए. इसके साथ ही खाद का भी संतुलित इस्तेमाल करना चाहिए. चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कांबोज ने किसानों को यह सलाह दी है.
कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति ने कहा कि अगस्त माह में जिन किसानों ने फसल में खाद नहीं डाली है वे जमीन के बत्तर आने पर एक बैग डीएपी, एक बैग यूरिया, आधा बैग पोटाश व 10 किलोग्राम 21 प्रतिशत वाली जिंक सल्फेट प्रति एकड़ के हिसाब से डाल दें, ताकि फसल अच्छी खड़ी रहे. उन्होंने किसानों को सलाह देते हुए कहा कि रेतीली मिट्टी में खाद की मात्रा दो बार डालें. ड्रिप विधि से लगाई गई फसल में हर सप्ताह ड्रिप के माध्यम से घुनलशील खाद, जिसमें दो पैकेट 12:6:0, तीन पैकेट 13:0:45 के, 6 किलो यूरिया व सौ ग्राम जिंक प्रति एकड़ के हिसाब से 10 हफ्तों में अवश्य डालें.
कीटनाशकों, उर्वरकों के इस्तेमाल में रखें सावधानी
प्रो. कांबोज ने कहा कि बारिश के दौरान अगर रेतीली मिट्टी में मैगनीशियम के लक्षण हों तो आधा प्रतिशत मैगनीशियम सल्फेट का छिड़काव अवश्य करें. किसान अपनी फसल में विश्वविद्यालय की ओर से सिफारिश किए गए कीटनाशकों व उर्वरकों का ही प्रयोग करें ताकि फसल पर विपरीत प्रभाव न पड़े. रेतीली जमीन में नमी एवं पोषक तत्वों पर खास ध्यान देने की आवश्यकता है. पिछले वर्ष किसानों द्वारा बिना कृषि वैज्ञानिकों की सिफारिश के फसल पर कीटनाशकों के मिश्रणों का प्रयोग किया गया, जिससे कपास की फसल में नमी एवं पौषण के चलते समस्या उत्पन हुई थी.
मौसम का ध्यान रखते हुए करें फफूंदनाशकों का प्रयोग
कुलपति ने किसानों से अनुरोध किया कि वे विश्वविद्यालय के कृषि मौसम विभाग द्वारा समय-समय पर जारी मौसम पूर्वानुमान को ध्यान में रखकर ही कीटनाशकों व फफूंदनाशकों का प्रयोग करें. कुलपति ने कहा कि फसलों में रस चूसने वाले कीटों की निगरानी के लिए प्रति एकड़ 20 प्रतिशत पौधों की तीन पत्तियों (एक ऊपर, एक मध्यम एवं एक निचले भाग) पर सफेद मक्खी, हरा तेला एवं थ्रिप्स (चूरड़ा) की गिनती साप्ताहिक अंतराल पर करते रहें. जरूरत हो तो विश्वविद्यालय द्वारा सिफारिश किए गए कीटनाशकों का ही प्रयोग करें.