MCD: सदन में हुए हंगामे के पीछे की क्या है राजनीति, स्टैंडिंग कमेटी के सदस्यों के चुनाव पर क्यों हुआ बवाल?

Parmod Kumar

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दिल्ली नगर निगम में बुधवार को स्थायी समिति के सदस्यों के चुनाव के दौरान सदन में हंगामा शुरू हो गया। पूरे हंगामे की वजह चुनाव के दौरान सदस्यों को फोन लेकर जाने की अनुमति थी।सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद आखिरकार बुधवार को एमसीडी को मेयर और डिप्टी मेयर मिल गए। मेयर के चुनाव में आप पार्षद शैली ओबेरॉय तो डिप्टी मेयर के चुनाव में आप के ही आले मोहम्मद इकबाल ने जीत हासिल की। इन दोनों पदों का चुनाव तो शांतिपूर्ण हो गया लेकिन शाम के वक्त जब स्टैंडिंग कमेटी के सदस्यों का चुनाव शुरू हुआ तो बीच में ही हंगामा मच गया। दरअसल स्टैंडिंग कमेटी के चुनाव के दौरान सदस्यों को फोन लेकर जाने की अनुमति मिल गई थी जिसका भाजपा ने विरोध किया। इसी मुद्दे ने इतना तूल पकड़ा जिसके चलते सदन में रातभर हंगामा हुआ और आज सुबह सदन को कल तक के लिए स्थगित कर दिया गया।

दिल्ली नगर निगम में बुधवार को मेयर चुनाव से शुरू हुई चुनाव की प्रक्रिया उप मेयर के चुनाव तक तो सुचारू रूप से चली थी लेकिन इसके बाद स्थायी समिति के सदस्यों के चुनाव के दौरान सदन में हंगामा शुरू हो गया। शाम से शुरू हुआ यह हंगामा पूरी रात चला। इस दौरान आम आदमी पार्टी के पार्षदों और भाजपा के पार्षदों में हाथपाई और धक्का मुक्की भी हुई।रात से सुबह तक सदन की कार्यवाही 12 से ज्यादा बार स्थगित हुई। जैसे ही कार्यवाही शुरू होती है पार्षदों का हंगामा शुरू हो जाता। सदन के अंदर हाथापाई हुई और बोतलें फेंकी गईं और सवेरे तक सदन में कागजी गोले रुक-रुक कर चलते रहे। महिला पार्षद भी आपस में भिड़ती रहीं। सदन का हंगामा थमता न देखकर सदन को कल (24 फरवरी) सुबह तक के लिए स्थगित कर दिया गया।

पूरे हंगामे की वजह स्टैंडिंग कमेटी के चुनाव के दौरान सदस्यों को फोन लेकर जाने की अनुमति थी। भाजपा ने मोबाइल लेकर वोट डालने का विरोध किया। भाजपा का कहना था कि वोटिंग के दौरान सदस्यों को फोन न ले जाने दिया जाए। आप सांसद संजय सिंह ने कहा कि एमसीडी के चुनाव में लिखा था कि पोल बूथ पर वोटर मोबाइल ले जा सकता है। अगर गोपनीयता का वायलेशन होता, तो चुनाव आयोग ऐसा क्यों कहता?

एमसीडी की सबसे बड़ी चुनौती बजट और प्रशासनिक फैसलों को मंजूरी दिलाने की होती है। विभिन्न स्थानीय निकायों को संचालित करने की ‘कार्यात्मक’ शक्ति ‘स्टैंडिंग कमेटी’ के पास होती है। इसमें 18 सदस्य और एक अध्यक्ष होता है जिनके पास वास्तविक निर्णय लेने की शक्तियां होती हैं। दिल्ली विधानसभा छह सदस्यों का चुनाव करती है और बाकी 12 एमसीडी के दर्जन भर क्षेत्रों से चुने गए पार्षद होते हैं, इस प्रकार स्टैंडिंग कमेटी में कुल 18 सदस्य होते हैं।हर सदन चाहे वह देश की संसद हो, राज्यों की विधानसभा हो या निगम की स्टैंडिंग कमेटी हो बेहद ताकतवर होती है। मालूम हो कि दिल्ली के मेयर और डिप्टी मेयर के पास भी फैसले लेने की उतनी शक्तियां नहीं होतीं जितनी स्टैंडिंग कमेटी के पास होती है।
इसकी एक बड़ी वजह ये है कि 18 सदस्यों वाली स्टैंडिंग कमेटी ही निगम के अधिकतर चाहे वो आर्थिक हों या प्रशासनिक फैसले लेती है। इस कमेटी से ही सभी तरह के प्रस्तावों को सदन से पास करवाने के लिए भेजा जाता है। इस तरह एमसीडी की स्टैंडिंग कमेटी के चेयरमैन का पद काफी शक्तिशाली हो जाता है और पूरे निगम पर इसका दबदबा होता है।

स्टैंडिंग कमेटी में कुल 18 सदस्य होते हैं जिनमें से छह का चुनाव तो निगम के पार्षद सदन की पहली बैठक में वोटिंग के माध्यम से करते हैं। यह वोटिंग गुप्त होती है और इनका चुनाव राज्यसभा सदस्यों की तरह वरीयता के आधार पर होता है। दरअसल पार्षदों को अपने उम्मीदवारों को बैलेट पेपर पर वरीयता के हिसाब से 1,2,3 नंबर देने होते हैं। अगर पहली वरीयता के आधार पर चुनाव नहीं हो पाता तो दूसरे और तीसरे वरीयता के वोट की काउंटिंग आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के आधार पर की जाती है। 
निगम पार्षदों की पहली बैठक में छह सदस्यों का चुनाव होना था। सदस्य संख्या के हिसाब से आप छह में से चार सीटें जीत सकती थी। भाजपा अपने पक्ष में क्रॉस वोटिंग होने का दावा कर रही थी। ऐसा होने पर स्टैंडिग कमेटी में आप सदस्यों की संख्या घट सकती थी। वहीं, 18 में से 12 सदस्यों को अलग-अलग जोन से चुनकर लाया जाता है। जोन की मीटिंग में मनोनीत पार्षदों को भी वोटिंग का अधिकार मिल जाता है। विशेषज्ञों का कहना है कि बिना मनोनीत पार्षदों के आम आदमी पार्टी 12 में से आठ सीट पर अपने सदस्य आसानी से ले आती, वहीं भाजपा को चार जोन में जीत हासिल होती। लेकिन उपराज्यपाल द्वारा जारी नोटिस के बाद मनोनीत पार्षदों को सिर्फ तीन जोन में नियुक्त किया गया है जिससे भाजपा की चार के बजाय सात सीट जीतने की संभावना प्रबल है। ऐसा होने पर स्टैंडिंग कमेटी में भाजपा का दबदबा हो सकता है। यही दोनों पक्षों के बीच टकराव की मूल वजह है।

भाजपा अगर छह में से तीन सीट भी जीत लेती है और उसके सात सदस्य यदि अगल-अलग जोन से चुनकर आते हैं तो भाजपा का स्टैंडिंग कमेटी में 10 सीटों के साथ बहुमत हो जाएगा। ऐसे में आम आदमी पार्टी मेयर और डिप्टी मेयर पद हासिल करके भी अपने प्रस्ताव स्टैंडिंग कमेटी से पास नहीं करवा सकेगी। अगर ऐसा नहीं हुआ तो वह सदन के पटल पर भी नहीं मान्य होगा और फिर मेयर बनवाने का भी कोई फायदा आप को नहीं मिलेगा और दिल्ली सरकार की तरह निगम में भी टकराव की स्थिति बढ़ती जाएगी।