पुश्तैनी धंधा बंद होने के चलते सपेरा समुदाय के लोगों का जीवन संकट में
जिला में सपेरा समुदाय के हैं 8 हजार से अधिक परिवार
सिरसा गांव बप्प की करीब 70 वर्षीय अमरवती को आज से करीब चार दशक पहले हुई शादी में उसके पिता ने सांपों का जोड़ा, एक बैंगी और गिद्दड़ङ्क्षसही उपहारस्वरूप भेंट की थी। अमरवती सपेरा सम्प्रदाय से ताल्लुक रखती हैं और अब सपेरों का पुश्तैनी धंधा नैपथ्य में चला गया है। साथ ही जीव-जंतुओं के प्रति पिछले कुछ समय में बनाए गए कानून एवं एक्ट के चलते सपेरों के रीति-रिवाज भी विलुप्त हो गए हैं। कभी सुबह-सवेरे कंधों पर बैंगी लटका एवं हाथ में कमंडल लेकर सपेरा समुदाय के लोग सांपों का करतब दिखाकर एवं जड़ी-बुटियों की बिकवाली कर अपना जीवनयापन करते थे। अब ऐसा नहीं रहा है। जिला में भी नाथ संप्रदाय के करीब 8 हजार परिवार रहते हैं। आज इन 8 हजार परिवारों को जीवनयापन में बहुत मुश्किलें आ रही हैं। मसलन गांव बप्प का ही बंसीनाथ आज दिहाड़ी करता है। पहले ये लोग जड़ी-बुटियों और सांपों के जरिए अच्छी कमाई कर लेते थे। इनका धंधा नेपथ्य में चले जाने के बाद सरकार ने इनके कारोबार के विकल्प की ओर कोई गौर नहीं की।
दरअसल सिरसा जिला में काफी तादाद में सपेरा समुदाय के लोग रहते हैं। सिरसा, रानियां, डबवाली, कालांवाली, ऐलनाबाद के अलावा बप्प, पन्नीवाला मोटा, मंगाला, मोरीवाला, दौलतपुर खेड़ा, मौजू की ढाणी, मल्लेकां, कुत्ताबढ़, बनावाली, सुल्तानपुरिया, ममेरां खुर्द, हुमायूंखेड़ा, खोखर, तारुआना सहित अनेक इलाकों में 8 हजार सपेरा परिवार रहते हैं। नई पीढ़ी में से तो लगभग 90 फीसदी अपना पुश्तैनी धंधा छोड़ ही चुके हैं। कुछेक लोग जो घरों, दुकानों आदि जगहों पर सांप पकडक़र थोड़ा बहुत कमा लेते हैं। सपेरा जाति से ताल्लुक रखने वाला प्रेम नाथ आज ड्राइवरी कर रहा है तो महेश नाथ एक कंपनी में जॉब कर रहा है। पर एक खास किस्म के संप्रदाय और एक विशेषता ग्रहण किए हुए सपेरा परिवारों के लिए अपने पुश्तैनी धंधें से हटकर काम करना बेहद जटिल हो जाता है। गांव बप्प के ही मुकेश नाथ बताते हैं कि सरकार ने सांपों के पकडऩे पर प्रतिबंध लगा दिया है। अब वे न तो सांप पकड़ सकते हैं और न ही दवाइयां बना सकते हैं। पहले सांप को पिटारे में कैद कर वे कंधे पर बैंगी लटकाकर जिस भी गांव में जाते थे, लोग अच्छी दान-दक्षिणा दे देते थे। मुकेश बताते हैं सांपों से जाड़ दर्द, आंखों की बीमारियों से लेकर कैंसर तक की बीमारियों की दवाएं बनाई जाती थी। अब ये सब बंद हो गया है। 42 वर्षीय मुकेश सांप काटने वाले करीब 1000 से अधिक लोगों का इलाज कर चुके हैं। अपने पिता सरुपनाथ से उन्हें यह कला विरासत में मिली है। पर उन्हें मलाल है कि उनके पुनर्वास की ओर से सरकार ने कोई ध्यान नहीं दिया। पर अब मुकेश जैसे विरले ही बचे हैं तो सांप के काटे का जहर चूसकर निकाल लेते हैं। सपेरा समुदाय के ही टोनीनाथ का कहना है कि संप्रदाय की नई पीढ़ी भटक रही है। पुश्तैनी धंधे के छीन जाने के बाद उनके लिए बड़ी विकट स्थिति पैदा हो गई है। 85 वर्षीय पुन्नूनाथ का कहना है जिला में हजारों परिवारों पर संकट है। सपेरा समुदाय चुङ्क्षक घुमक्कड़ किस्म की प्रजाति रही है। ऐसे में 70 फीसदी के पास स्वयं के मकान नहीं है। बहुतेरे परिवारों के राशन कार्ड और वोटर कार्ड नहीं बने हुए हैं। पुन्नूनाथ कहते हैं कि सर्वे करवाकर सभी के कार्ड बनने चाहिए। आॢथक स्थिति कमजोर है इसलिए सरकारी अनुदान पर मकान उपलब्ध करवाकर सरकार को उनके पुनर्वास का प्रबंध करना चाहिए।
कचहरी नहीं पंचायत में निपटाते हैं मामले
सपेरे एकत्रित होकर सामूहिक भोज रोटड़ा का आयोजन करते हैं। ये आपसी झगड़ों का निपटारा कचहरी में न करके अपनी पंचायत में करते हैं। जो सर्वमान्य होता है। आधुनिक चकाचौंध में इनकी प्राचीन कला लुप्त होती जा रही है। बच्चे भी सांप का तमाशा देखने की बजाय टीवी देख कर या वीडियो खेलना पसंद करते हैं। ऐसे में इनको दो जून की रोटी जुगाड़ कर पानी मुश्किल हो रहा है। मुकेश नाथ व प्रेमनाथ को सरकार व प्रशासन से शिकायत है कि इन्होंने कभी भी सपेरों की सुध नहीं ली। काम की तलाश में इन्हें दर-दर भटकना पड़ता है। इनकी आॢथक स्थिति दयनीय है। बच्चों को शिक्षा व स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं मिल पा रही है। सरकार की किसी भी योजना का इन्हें कोई लाभ नहीं मिल सका।