हरियाणा विधानसभा में मनोहर सरकार ने भी बुधवार को इतिहास दोहराया। अविश्वास प्रस्ताव के जरिए मुख्यमंत्री मनोहर लाल के सियासी किले में सेंध लगाने की पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा की कोशिश नाकाम हो गई। कांग्रेस का अविश्वास प्रस्ताव सदन में औंधे मुंह गिरा। हरियाणा का इतिहास है कि आज तक अविश्वास प्रस्ताव धराशायी ही होते आए हैं। सत्ता पक्ष के विधायकों ने किसान हितैषी होने का दावा तो खूब किया, लेकिन सरकार के विरुद्ध जाने का रिस्क नहीं लिया। जजपा विधायक भले ही किसान आंदोलन के समर्थन और नए कृषि कानूनों के खिलाफ हों, लेकिन पार्टी के खिलाफ जाने का दम वे भी नहीं भर पाए। उनकी जुबान पर एक ही बात रही कि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता। उन्हें विधायक बने हुए अभी सवा साल से थोड़ा अधिक समय ही हुआ है, इसलिए किसी ने व्हिप को तोड़ने के बारे में सोचा तक नहीं। अगर कोई व्हिप के खिलाफ जाता तो विधानसभा सदस्यता तक गंवानी पड़ सकती थी। पहली बार सितंबर 1995 में तत्कालीन भजनलाल सरकार के विरुद्ध ओम प्रकाश चौटाला अविश्वास प्रस्ताव लेकर आए थे। उस समय ईश्वर सिंह हरियाणा विधानसभा के स्पीकर थे। स्पीकर ने अविश्वास प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया था, जिसके बाद सदन में वोटिंग के दौरान चौटाला का प्रस्ताव गिर गया था, क्योंकि उस समय भजनलाल सरकार के पास पूर्ण बहुमत था। 1999 के दौरान तत्कालीन बंसीलाल सरकार के विरुद्ध विपक्ष के नेता ओम प्रकाश चौटाला सदन में अविश्वास प्रस्ताव लेकर आए। चौधरी बीरेंद्र सिंह उस समय तिवारी कांग्रेस में होते थे, उन्होंने बंसीलाल को समर्थन देकर सरकार को बचा लिया था। इसके बाद बंसीलाल सरकार के विरुद्ध फिर से ओम प्रकाश चौटाला अविश्वास प्रस्ताव लेकर आए। हालांकि उस समय बंसीलाल को इस बात का आभास हो गया था कि सदन में वह विश्वास का मत हासिल नहीं कर सकते हैं। यही वजह रही कि उन्होंने अविश्वास प्रस्ताव का सामना ही नहीं किया और विधानसभा के बाहर ही इस्तीफा दे दिया था। बुधवार को पेश कांग्रेस के अविश्वास प्रस्ताव को दो निर्दलीय विधायकों बलराज कुंडू और सोमवीर सांगवान का समर्थन जरूर मिला, लेकिन कुंडू ने साफ कर किया कि वह कांग्रेस के साथ नहीं, किसानों के समर्थन में लाए प्रस्ताव के साथ हैं, इसलिए इसके पक्ष में मतदान कर रहे हैं। सांगवान पहले ही सरकार से किसानों के मुद्दे पर समर्थन वापस ले चुके हैं, ऐसे में उनको भी सरकार के खिलाफ ही जाना था।