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‘मुझे कोई भी जंगलों से बेदखल नहीं कर सकता’, उलगुलान। उलगुलान!

lalita soni

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स्वतंत्रता सेनानी बिरसा मुंडा की जयंती पर बुधवार को चौधरी रणबीर सिंह विश्वविद्यालय (सीआरएसयू)जींद में हिंदी एवं अंग्रेजी विभाग के संयुक्त तत्वावधान में ‘जनजातीय गौरव दिवस’ मनाया गया। भारत सरकार द्वारा हर 15 नवम्बर को बिरसा मुंडा की जयंती के उपलक्ष्य एवं बहादुर आदिवासी स्वतंत्रता सेनानियों की स्मृति को समर्पित ‘जनजातीय गौरव दिवस’ के रूप में घोषित किया गया है। कार्यक्रम की शुरुआत छात्राओं ने आदिवासी कविताओं से की तथा आदिवासियों के बलिदान को याद करते हुए उन्हें नमन किया। कुलपति डॉक्टर रणपाल सिंह ने कहा कि स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भारत भूमि पर ऐसे कई नायक पैदा हुई जिन्होंने इतिहास में अपना नाम स्वर्ण अक्षरों से लिखवाया। भारत के आदिवासी उन्हें भगवान मानते हैं और उन्हें ‘धरती आबा’ के नाम से भी जाना जाता है। अपने संबोधन में डा. मंजूलता ने बिरसा मुण्डा के छोटे से पच्चीस वर्षीय जीवन को अनुपम बताया।

डॉ. देवेन्द्र सिंह ने आदिवासी कवि हरिराम मीणा की पक्तियों से शुरुआत करते हुए किया – मैं केवल देह नहीं, मैं जंगल का पुश्तैनी दावेदार हूं, पुश्तें और उनके दावे मरते नहीं, मैं भी मर नहीं सकता,मुझे कोई भी जंगलों से बेदखल नहीं कर सकता, उलगुलान, उलगुलान। डॉ. देवेन्द्र सिंह ने बताया कि उलगुलान शब्द का मतलब भारी कोलाहल और उथल-पुथल करने वाला होता है और ऐसा हुआ भी।

बिरसा मुंडा के नेतृत्व में उलगुलान या कहें मुंडा आंदोलन झारखंड के इतिहास का अंतिम और खोंड आदिवासी विद्रोह था जिसमें हजारों की संख्या में आदिवासी शहीद भी हुए। अपनी जमीन, जंगल और जल की रक्षा के लिए उलगुलान का आह्वान हुआ, बिरसा मुंडा के साथ हुजूम शामिल हुआ,जो बिरसा के एक इशारें पर मरने और मारने को तैयार थे। इस मौके पर डॉ. सुनील कुमार, डॉ. ब्रजपाल, डॉ. सुमन, डॉ. सीमा, डॉ. अनु, डॉ. संदीप ने भी संबोधित किया।