देश में कृषि मॉनसून आधारित रही है. फसलों के उत्पादन में मॉनसून का अहम रोल होता है. मॉनसून की देरी से कृषि उपज प्रभावित होती है. कारण कि देश के वैसे कई हिस्सों में सिंचाई की समस्या रहती है, जहां पानी की कमी रहती है. सामान्यत: देखा जाए तो भूगर्भ जल, नदी, तालाबों के जलस्तर में भी लगातार कमी हो रही है. इन कारणों से देश के कई हिस्सों में सिंचाई की समस्या गंभीर होती जा रही है.
किसानों की इन्हीं समस्याओं को दूर करने के लिए बिहार की बेटी ने सिंचाई की नई तकनीक विकसित की है. परंपरागत सिंचाई की बदहाल होती व्यवस्था और खेती में समस्याओं का सामना करते किसानों को देख एमटेक की छात्रा प्रियंवदा प्रकाश ने ‘पानी की गोली’ तैयार करने में सफलता पाई है. इसके जरिये पानी की कमी वाले क्षेत्र में आसानी से सिंचाई हो सकेगी.
क्या है ये पानी की गोली?
बिहार के नालंदा की बेटी प्रियंवदा प्रकाश वर्तमान में त्रिपुरा विश्वविद्यालय के केमिकल साइंस डिपार्टमेंट से एमटेक कर रही हैं. उन्होंने अपने सहपाठी दीपांकर दास के साथ मिलकर हाइड्रोजैल यानी पानी की गोली तैयार की है और किसानों के लिए सिंचाई की समस्या का तोड़ निकाला है. यह 35 से 40 डिग्री सेल्सियस में भी यह कारगर है.
4 किलो हाइड्रोजैल से होगी एक हेक्टेयर खेत की सिंचाई
गोविंद बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण, सतत विकास संस्थान कोसी-कटारमल के राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन के तहत त्रिपुरा विश्वविद्यालय के इन दोनों शोधार्थियों ने हाइड्रोजैल को विकसित किया है. चार किलो हाइड्रोजैल से एक हेक्टेयर खेत की सिंचाई हो सकती है. उन्होंने सेल्यूलोज नैनोक्रिस्टल निकालने में सफलता अर्जित की है. अब इन हाइड्रोजैल गोलियों की अवशोषण क्षमता को 600 फीसदी तक बढ़ाने में सफलता मिल गयी है. प्रयोगशाला से बाहर आते ही यह अनुसंधान कृषि क्षेत्र के लिए क्रांतिकारी कदम होगा.
30 फीसदी तक बढ़ जाएगी कृषि उपज?
जैल की गोलियां मिट्टी में आठ माह से एक साल तक कारगर हो सकती है. इसके प्रयोग से कृषि में 30 प्रतिशत तक उत्पादन वृद्धि का भी अनुमान है. बता दें कि वर्ष 2018-19 में भारत सरकार के पर्यावरण मंत्रालय की ओर से राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन के तहत भूमि की सिंचाई में पानी की बर्बादी को रोकने, सूखे की मार को कम करने, उर्वरकों की क्षमता बढ़ाने के उद्देश्य से यह शोध परियोजना स्वीकृत की गई थी.
क्या है ये तकनीक, कैसे काम करती है?
जीबी पंत अनुसंधान केंद्र की ओर से प्रयोगशाला अनुसंधान पर आधारित इस परियोजना पर त्रिपुरा विश्वविद्यालय में शोध कराया गया. गहन अनुसंधान के बाद विश्वविद्यालय के केमिकल और पॉलीमर इंजीनियरिंग विभाग के डॉ सचिन भलाधरे के नेतृत्व में प्रियंवदा प्रकाश और दीपांकर दास की टीम ने हाइड्रोजैल बनाने में सफलता अर्जित की है. इस हाइड्रोजैल से निर्धारित मात्रा में पानी विवरण के कारण पृथ्वी में पानी का ठहराव 50 से 70 प्रतिशत बढ़ जाता है.
इसके इस्तेमाल से मिट्टी का घनत्व भी 10 फीसदी तक कम होता है. जैल देने से अर्ध शुष्क और शुष्क भागों में खेती पर चमत्कारी प्रभाव आने की संभावना जताई जा रही है. यह मिट्टी में वाष्पीकरण, बनावट आदि को भी प्रभावित करता है. साथ ही बीज, फूल और फलों की गुणवत्ता के साथ सूक्ष्म जीवों की गतिविधियां भी बढ़ जाएंगी. सूखे से भी खेती बची रहेगी.
हाइड्रोजैल से नहीं होता पर्यावरण प्रदूषण
इसके इस्तेमाल से फसल जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को झेलने में कारगर होगी. प्राकृतिक रूप से नष्ट होने वाले सेल्यूलोज आधारित हाइड्रोजैल आसानी से प्रकृति में सूर्य के प्रकाश से क्षय हो जाते हैं और इनसे कोई पर्यावरण प्रदूषण भी नहीं होता है. यह आसानी से पानी को सोखता है और जमीन में पानी का रिसाव भी करता है. 35 से 40 सेल्सियस में भी यह हाइड्रोजैल प्रभावी ढंग से कारगर है.