अब चेन्नई में धड़केगा कैथल के साहिल का दिल, दुनिया से जाते-जाते 4 की जिंदगी में बिखेरी खुशियां

Parmod Kumar

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कैथल के रहने वाले 20 साल के साहिल 10 मार्च को एक मोटर साइकिल एक्सीडेंट में घायल हो गए। हादसे में साहिल को काफी गंभीर चोट आई और पीजीआई रैफर किया गया। पीजीआई में इलाज के बावजूद साहिल की हालात में कोई सुधार नहीं हो पा रहा था। ऐसे में सही प्रोटोकॉल के बाद उसे 13 मार्च को ब्रेन डेड घोषित किया गया। ब्रेन डेड होने से पहले ही साहिल के पेरेंट्स से ऑर्गन डोनेट करने के लिए बात की गई।

ट्रांसप्लांट कोर्डिनेटर से बात होने के बाद परिवार ने साहिल के ऑर्गन डोनेट करने का फैसला लिया। फिर ऑर्गन डोनेट होने के बाद बाकी अंगों को ट्रांसप्लांट करने के लिए तो पीजीआई में ही रिसिपिएंट मिल गए लेकिन साहिल का दिल डोनेट होने के बाद पीजीआई में उसका कोई मैचिंग रिसीपियंट नहीं मिल रहा था। फिर पीजीआई रोटो ने देश भर के अपने सहायक संस्थानों नोटो से सपर्क किया। फिर पता चला कि चैन्नई में एक मैचिंग रिसीपियंट है। 14 मार्च की सुबह 4 बजे एमजीएम चेन्नई में एडिमट मरीज्ज के लिए साहिल का दिल भेजा गया। सही समय पर पूरी टीम और जरूरी प्रोटोकॉल के साथ भेजा गया साहिल का दिल चैन्नई में 50 साल के एक व्यक्ति को ट्रांस्प्लांट किया गया।

20 साल के साहिल के पिता मनोज का कहना है कि हमने अपने बेटे के ऑर्गन अपनी मानसिक शांति और संतुष्टि के साथ ये सोचकर दान किए कि किसी और को एक नया जीवन मिल सके। हमे ऑर्गन ट्रांसप्लांट और डोनेशन के बारे में पता था और यह भी पता था कि शरीर मर सकता है लेकिन ऑर्गन किसी और के शरीर में लगाकर जिंदा रह सकते हैं। यही बड़ा रास्ता था हमे लगा कि बेटा तो इस दुनिया से चला गया लेकिन वह किसी और के जरिए इस दुनिया में रहेगा। उसका दिल अब किसी और के शरीर में धड़कन देगा। उन्हें इस फैसले से उन्हें उम्मीद है कि और ज्यादा लोग ऑर्गन डोनेशन के प्रति जागरूक होंगे। कैथल के रहने वाले इस परिवार ने अपने बेटे के ऑर्गन PGI में डोनेट किए।

पीजीआई रोटो के इंचार्ज डॉ. विपिन कौशल बताते हैं कि इस तरह के मामले में वक्त एक बड़ी चुनौती होता है। एक बार ऑर्गन शरीर से बाहर निकालने के बाद वक्त बहुत कम होता है ऐसे में मरीज तक पहुंचना आसान नहीं खास कर जब ऑर्गन दूसरे हॉस्पिटल से शेयर करना हो। पीजीआई में हमारे पास मैचिंग मरीज नहीं था। परिवार के फैसले को बेकार नहीं होने देना चाहते थे। 14 मार्च को पीजीआई से शाम 4 बजे के करीब एयरपोर्ट तक ग्रीन कॉरिडोर बनाकर दिल को एयरलिफ्ट कर चेन्नई भेजा गया। यूटी एडमिंस्ट्रेशन,  पीजीआई स्टाफ का इसमें बड़ा सहयोग मिला जिससे आसानी से और जल्द से जल्द ऑर्गन को भेज पाए। चैन्नई में 50 साल के मरीज को साहिल को हार्ट ट्रांसप्लांट हुआ है। पीजीआई पिछल काफी साल से ऑर्गन होनेशन में बेहतर काम कर रहा है। इस साल अभी तक पीजीआई में 4 ब्रेन डेड मरीजों के ऑर्गन डोनेट हो चुके हैं।

साहिल का हार्ट चैन्नई में ट्रांस्प्लांट हुआ तो साहिल की किडनी और कॉर्निया पीजी आई में जरूरतमंदों को ट्रांसप्लांट हुई हैं। साहिल की दोनों किडनी डोनेट हुए लेकिन निकालने के वक्त डॉक्टर्स ने पाया कि एक किडनी ही ट्रांस्प्लांट के लायक थी। ऐसे में एक किडनी ही डोनेट हो पाई। दोनों कॉर्निया मरीजों को ट्रांसप्लांट हुआ। डॉक्टर्स की मानें तो जिस मरीज को किडनी ट्रांसप्लांट हुई है, वो मरीज अपनी बीमारी की वजह से जिंदगी और मौत के करीब था। ऐसे में ट्रांसप्लांट ने उसे जीने की एक नई उम्मीद दी है। साहिल की वजह से 4 लोगों को एक नया जीवन मिल पाया है।

ऑर्गन डोनेशन के बारे में कहना और सुनना बड़ा आसान है लेकिन दुःख की घड़ी में इस फैसले को लेना बहुत मुश्किल है। इन परिवारों में बड़ी हिम्मत है जो अपने दुःख में दूसरों का सोचते हैं। इनके साहस की वजह से ही कई लोगों को जिंदगी मिल पाती है। इस परिवार को मेरा आभार। वही पीजीआई का इसमें बड़ा योगदान रहता है। यह एक टीम वर्क है जिसमे न्यूरोसर्जन, ब्रेन डेथ करने वाली कमेटी, ट्रांसप्लांट कोर्डिनेटर, टेस्टिंग लैब, ट्रांसप्लांट सर्जन, डॉक्टर्स जो डोनर को मुश्किल वक्त में भी बनाए रखती है उनके ऑर्गन को इस लायक रख पाती है ताकि वह किसी दूसरे को इस्तेमाल हो सके।