पेट्रोल-डीजल महंगा हो सकता है:कच्चे तेल का उत्पादन घटाएंगे सऊदी अरब समेत 23 देश; जानिए कब और कितनी बढ़ेगी कीमतें

Parmod Kumar

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सऊदी अरब समेत 23 देशों ने तेल के उत्पादन में कटौती करने का फैसला लिया है। सभी देश मिलकर हर रोज 19 करोड़ लीटर क्रूड ऑयल का उत्पादन कम करेंगे। इस वजह से तेल की कीमतों में प्रति बैरल 10 डॉलर तक बढ़ोतरी हो सकती है। इसका सीधा असर भारत समेत दुनिया भर में पेट्रोल और डीजल की कीमतों पर पड़ेगा। सीधे शब्दों में कहें तो आने वाले दिनों में पेट्रोल-डीजल महंगा हो सकता है।

यहाँ हम जानेंगे कि OPEC+ देशों ने क्यों लिया ये फैसला और इसका कितना असर होगा?

सबसे पहले OPEC+ देशों के फैसले को जानिए…
सऊदी अरब, ईरान समेत 23 ओपेक+ देशों ने हर रोज साढ़े 11.6 लाख बैरल यानी करीब 19 करोड़ लीटर तेल के उत्पादन में कटौती करने का फैसला लिया है। अकेले सऊदी अरब पिछले साल की तुलना में 5% कम तेल उत्पादन करेगा। इसी तरह इराक ने रोजाना करीब 2 लाख बैरल तेल का उत्पादन कम करने की बात कही है।

इस बड़े फैसले की वजह को बताते हुए सऊदी अरब के ऊर्जा मंत्रालय ने कहा है कि ये कटौती तेल उत्पादन करने वाले OPEC और गैर OPEC देश मिलकर करेंगे। ये फैसला दुनिया भर के तेल बाजार को मजबूती देने के लिए लिया गया है।

दरअसल, इंटरनेशनल मार्केट में जब भी तेल की कीमत घटने लगती हैं तो ये देश उत्पादन घटाकर दाम बढ़ाने का काम करते हैं।

तेल का उत्पादन घटाकर कीमत बढ़ाने का गणित…
जनवरी 2020 की बात है। अमेरिका में कच्चे तेल का उत्पादन 12.8 मिलियन बैरल प्रति दिन के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया। इसी समय कोरोना महामारी की वजह से दुनिया भर में तेल की मांग घटी। वहीं, तेल के उत्पादन में कोई कमी नहीं हुई। इसकी वजह से तेल की कीमत में भारी गिरावट आ गई।

सऊदी अरब, इराक और अमेरिका के कई तेल ऑपरेटरों ने घाटे को कम करने के लिए अपने कुओं को बंद कर दिया। तेल के उत्पादन में हुई इस कटौती के बाद एक बार फिर से तेल की कीमत बढ़ गई।

अभी तेल उत्पादन घटाने के फैसले के पीछे 3 वजहे हैं…

1. फरवरी 2022 में रूस-यूक्रेन जंग शुरू होने के समय अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत 139 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई थी। 2008 के बाद से कच्चा तेल इस स्तर पर कभी नहीं गया था। इसके बाद तेल के भाव तब नीचे आए जब अमेरिका और रूस जैसे देशों ने इंटरनेशनल मार्केट में अपना रिजर्व तेल बेचना शुरू कर दिया। इसका परिणाम ये हुआ कि मार्च 2023 में क्रूड ऑयल की कीमत गिरकर 75 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई।

2. पूरी दुनिया में क्रूड ऑयल का ग्लोबल स्टोरेज 18 महीने के सबसे उच्च स्तर पर पहुंच गया है। ऐसे में स्टोरेज ज्यादा होने और मांग कम होने की वजह से तेल की कीमत घटी है।

3. 2008-2009 में फाइनेंशियल क्राइसिस की वजह से महज 5 महीने के भीतर क्रूड का भाव 148 डॉलर से गिरकर 32 डॉलर हो गया था। अब अमेरिका में सिलिकॉन वैली, सिग्नेचर और फर्स्ट रिपब्लिक जैसे बड़े बैंकों के डूबने की वजह से एक बार फिर से तेल की कीमत में गिरावट की आशंका जताई जा रही है।

इन्हीं वजहों को ध्यान में रखकर OPEC+ देशों ने उत्पादन कम करके इंटरनेशनल मार्केट में तेल की कीमत को गिरने से रोकने का फैसला किया है।

फैसले का असर: 850 रुपए प्रति बैरल तक बढ़ सकती है कीमत
OPEC+ देशों के इस फैसले के बाद पूरी दुनिया में तेल की कीमत बढ़ने का रास्ता साफ हो गया है। कीमत को लेकर दुनिया की 2 बड़ी संस्थाओं और एक एक्सपर्ट ने अपने अनुमान जाहिर किए हैं…

  • इंवेस्टमेंट फर्म पिकरिंग एनर्जी पार्टनर्स ने बताया कि तेल के दाम में 10 डॉलर यानी 850 रुपए प्रति बैरल का इजाफा हो सकता है। अगर इसी तरह से तेल का उत्पादन कम होता रहा तो आने वाले दिनों में कीमत और ज्यादा बढ़ सकती है।
  • गोल्डमैन सैच ने कहा है कि OPEC+ देशों के इस फैसले के बाद ही इंटरनेशनल मार्केट में क्रूड ऑयल की कीमत 86 डॉलर प्रति बैरल पहुंच गई। ये कीमत पिछले एक महीने में सबसे ज्यादा है। दिसंबर 2023 तक क्रूड ऑयल की कीमत 95 डॉलर प्रति बैरल से ज्यादा होने की संभावना जताई है।

एनर्जी एक्सपर्ट नरेंद्र तनेजा का कहना है कि OPEC+ देशों के इस फैसले से पेट्रोल-डीजल की कीमत बढ़ेगी, लेकिन कितना ये अभी कहना मुश्किल है। तनेजा का कहना है कि किसी देश में तेल की कीमत 3 चीजों से तय होती है…

1. जियोपॉलिटिकल: इसे ऐसे समझें कि जंग के बाद अपने अच्छे संबंधों की वजह से रूस से भारत को सस्ता क्रूड ऑयल मिला। इसी तरह अंतराष्ट्रीय स्तर पर होने वाली राजनीति भी तेल की कीमतों को प्रभावित करती है। इसका कोई आधार नहीं होता है। बाजार के नजरिए के आधार पर तेल की कीमत तय होती है।

2. डिमांड और सप्लाई: तेल की मांग बढ़ जाए और उत्पादन कम हो। इस स्थिति में भी तेल की कीमत बढ़ जाती है। इसके अलावा महंगाई भी डिमांड और सप्लाई को प्रभावित करती है।

3. तेल उत्पादक देशों का नजरिया: ये इस बात पर निर्भर करता है कि तेल उत्पादक देश को कितना पैसा चाहिए और दुनिया उसके लिए कितना पैसा देने के लिए तैयार है। अभी OPEC+ देशों ने हर रोज 16 लाख बैरल कम तेल उत्पादन करने का फैसला भी इसी वजह से लिया है।

ओपेक + देशों के फैसले का भारत पर भी पड़ेगा असर
अप्रैल से दिसंबर 2022 के बीच भारत ने कुल 1.27 अरब बैरल तेल खरीदा था। इसमें से करीब 19% तेल भारत ने रूस से खरीदा था। इन 9 महीनों में भारत ने तेल आयात करने में सऊदी अरब और इराक से ज्यादा रूस से तेल खरीदा है। इसकी वजह से भारत को प्रति बैरल 2 डॉलर तक की बचत हुई है।

एक्सपर्ट नरेंद्र तनेजा बताते हैं कि ओपेक+ देशों के इस फैसले का निश्चित तौर पर भारत पर भी असर पड़ेगा। इसकी वजह ये है कि इस ग्रुप में रूस भी शामिल है। तेल के उत्पादन में कमी की वजह से जब दुनिया भर में क्रूड ऑयल की कीमत बढ़ेगी। ऐसे में डिस्काउंट प्राइस पर रूस से मिल रहे तेल की कीमत भी बढ़ जाएगी।

भारत सरकार के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन का मानना है कि एक बैरल तेल की कीमत में 10 डॉलर की वृद्धि का मतलब है कि देश की GDP ग्रोथ 0.2%-0.3% कम हो जाती है। वहीं, जियोजित फाइनेंशियल सर्विस से जुड़े डॉक्टर विजय कुमार का कहना है कि एक बैरल कच्चे तेल की कीमतों में 10 डॉलर बढ़ने से देश की महंगाई दर 0.1% तक बढ़ जाती है।

तेल के लिए ओपेक+ पर दुनिया के देशों की निर्भरता
इस वक्त दुनिया भर में 50% से ज्यादा क्रूड ऑयल का उत्पादन ओपेक + देशों में होता है। दुनिया के कुल तेल भंडार का 90% हिस्सा इन्हीं देशों में रिजर्व है। इसमें रूस, सऊदी अरब समेत 23 देश शामिल हैं। वहीं, 13 ओपेक देश इस समय 40% तेल का उत्पादन करते हैं।

अमेरिकी एनर्जी इंफार्मेशन एडमिनिस्ट्रेशन ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि दुनिया भर में 100 देश क्रूड ऑयल का उत्पादन करते हैं। इनमें से सिर्फ 5 देश अमेरिका, रूस, सऊदी अरब, कनाडा और इराक में ही 51% तेल का प्रोडक्शन होता है।

ओपेक देशों के संगठन ने जब अमेरिका की इकोनॉमी को कर दिया था तबाह
ओपेक+ देशों के इस फैसले से अमेरिका को झटका लगा है। इसकी वजह ये है कि रूस-यूक्रेन जंग के बाद अमेरिका तेल की कीमत नहीं बढ़ने देना चाहता है। इसके लिए जरूरी है कि ओपेक देश तेल का उत्पादन कम नहीं करें। इससे पहले 1960 में भी तेल उत्पादक देशों ने अमेरिका को जोरदार झटका दिया था। अब 62 साल पुराने इस किस्से को जानिए…

1960 में ओपेक देशों के संगठन बनने के बाद 1973 में सऊदी अरब, ईरान और इराक के नेतृत्व वाले कुछ देशों ने अमेरिका जैसे ताकतवर देशों की इकोनॉमी को पूरी तरह से ठप कर दिया था। दरअसल, 1973 में होने वाले योम किपुर की लड़ाई में अमेरिका ने इजराइल का समर्थन किया था। दूसरी तरफ मिस्र और सीरिया के नेतृत्व वाले अरब देश शामिल थे।

इन देशों ने जब अमेरिका को तेल देना बंद किया तो अमेरिका की इकोनॉमी अपने सबसे बुरे दौर में जा चुकी थी। इसी समय ओपेक दुनिया के ताकतवर तेल संगठन के रूप में दुनिया के सामने उभर कर आया। तभी से यह माना गया कि ओपेक वर्ल्ड इकोनॉमी को सीधा प्रभावित करता है।