उत्तराखंड में एक बार फिर संवैधानिक संकट गहराने लगा है। संवैधानिक नियम अनुसार, मुख्यमंत्री को 6 महीने के भीतर विधानसभा का निर्वाचित सदस्य बनना है। कांग्रेस पार्टी का दावा है कि अब मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत चुनाव नहीं लड़ सकते हैं। कांग्रेस दलील दे रही है कि लोकप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 151(क) के तहत जिस प्रदेश में आम चुनाव होने में 1 साल से कम का समय शेष हो, वहां पर उपचुनाव नहीं हो सकता। उत्तराखंड में मार्च 2022 में विधानसभा चुनाव है। संवैधानिक संकट टालने के लिए मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत को 10 सितंबर से पहले विधानसभा सदस्य की शपथ लेना अनिवार्य है। 10 मार्च को तीर्थ सिंह रावत ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी।
‘CM बनने का अवसर गंवाया’
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रीतम सिंह का कहना है कि उत्तराखंड में मुख्यमंत्री छह महीने के भीतर विधानसभा सदस्य बनने का अवसर गंवा चुके हैं। ऐसे में उत्तराखंड में एक बार फिर संवैधानिक संकट पैदा हो सकता है। वहीं, बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक का कहना है मुख्यमंत्री ने जिस दिन शपथ ली, उस दिन एक साल से अधिक समय विधानसभा चुनाव के लिए है। शपथ के 6 माह के भीतर चुनाव लड़ना होता है। जानकारों का कहना है कि राज्य की दो सीटें खाली होने के चलते सीएम तीरथ के पास दो विकल्प हैं। वे हल्द्वानी या गंगोत्री से चुनाव लड़ सकते हैं। अधिक संभव है कि वे गंगोत्री से लड़ें, क्योंकि उन्होंने पिछले दिनों गंगोत्री की हवा का अनुमान लगाने को अपने मुख्य सलाहकार को पांच दिन के दौरे पर भेजा भी था।
क्या कहता है संविधान?
उत्तराखंड में मार्च 2022 से पहले विधानसभा चुनाव प्रस्तावित है। जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 151 ए के तहत आम चुनाव के लिए केवल एक साल का समय ही बाकी होने पर उप-चुनाव नहीं हो सकता। इसलिए विधानसभा का कार्यकाल पूरा होने में महज 9 महीने ही बचे हैं।