कांग्रेस में मुख्यमंत्री पद को लेकर छिड़ा घमासान चरणजीत सिंह चन्नी के मुख्यमंत्री बनाने के बाद तो थम गया है लेकिन कांग्रेस पार्टी में विवादों का सिलसिला अभी भी जारी है। पंजाब प्रभारी और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के सिद्धू के चेहरे पर चुनाव में जाने की बात का विरोध सुनील जाखड द्वारा ट्वीट के ज़रिए किया गया। इन सब बातों को देखने के बाद यह बात साफ़ हो गई है कि कांग्रेस के कथनी और करनी में कोई ताल मेल नहीं है, जो कुछ भी हो रहा है अपने आप चल रहा है। वन इंडिया हिंदी ने चुनावी रणनीतिकार बद्री नाथ से इन सब मुद्दों पर बात की उन्होंने बहुत ही बेबाकी से पंजाब के सियासी घमासन पर अपनी बात रखी। 2017 विधानसभा चुनाव से शुरू हुआ था खेल चुनावी रणनीतिकार बद्री नाथ ने बताया कि पंजाब कांग्रेस में जो कुछ भी हो रहा है वो महज अचानक से हुआ घटनाक्रम नहीं है बल्कि एक निश्चित प्लान के तहत की गई कार्यवाही का नतीजा है। पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के हटाए जानें की प्रक्रिया के बीज सिद्धू के कांग्रेस में जॉइनिंग के साथ ही पड़ गए थे। वर्तमान पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू पिछले चुनाव में इसी शर्त पर कांग्रेस में आये थे कि अगली बार पार्टी उन्हें अहम जिम्मेदारी देगी वहीं नवजोत सिंह सिद्धू के कांग्रेस में शामिल होने के बाद कैप्टन अमरिंदर सिंह ने यह बात सार्वजनिक तौर पर कही थी कि यह उनका अंतिम चुनाव है। बद्री नाथ ने बताया कि चुनावी प्रबंधन में चुनावी रणनीतिकार की कई मजबूरियां भी होती हैं और ऊपर से चुनाव जीताने का दबाव भी होता है। किसी को जोड़ना हो या तोड़ना हो इसका एप्रोच और कार्यान्वयन अब चुनावी मैनेजर ही करते हैं। ठीक इसी क्रम में सिद्धू को कांग्रेस में लानें के लिए पीके टीम नें फील्डिंग लगाई और आप की तरफ उन्मुख सिद्धू को कांग्रेस से जोड़ा। कैप्टन की छवि को सुधारने के लिए ज़मीन पर उतारा पार्टी के अन्दर के लोगों से व्यक्तित्व के रूप में कैप्टन की छवी दिन पर दिन सबसे मज़बूत होती गई। अन्ततः 2 सालों से जमीन और पार्टी की माथापच्ची से पार पाते हुए कैप्टन मुख्यमंत्री बने। मौत से पहले महंत नरेंद्र गिरि ने बनाया था वीडियो, शिष्य का दावा- सुसाइड नोट से जुड़ी बातें उसमें भी कैप्टन अमरिंदर सिंह और सिद्धू विवाद नवजोत सिंह सिद्धू को मंत्री तो बनाया गया लेकिन ताल मेल नहीं बन सका। लोकसभा चुनाव में भी सिद्धू की नहीं चली कैप्टन के नेतृत्व में पार्टी ने अच्छा प्रदर्शन भी किया और यह साबित किया कि पंजाब में कैप्टन के इतना मज़बूत कोई दूसरा नेता नहीं है। पूरे देश में हारने वाली कांग्रेस को पंजाब की 12 सीटों में से 8 सीटें मिलीं। इसी दरम्यान आम आदमी पार्टी के कई विधायकों ने कांग्रेस का दामन थामा। दोबारा कांग्रेस से उपचुनाव में जीत कर भी आये, नतीजतन कांग्रेस की सीटें 77 से 80 हों गई। इन सारे प्रकरणों में कैप्टन बड़े ही मज़बूत नेता के तौर पर स्थापित हुए। यहां तक माना जाने लगा कि कैप्टन को हटा दो तो कांग्रेस का पंजाब में कोई अस्तित्व नहीं। इसी बीच सिद्धू को मंत्री पद से भी हटा दिया गया। पंजाब का विवाद सुलझाकर हाईकमान की उम्मीदों पर खरे उतरे हरीश रावत, अब उत्तराखंड में चला नया दांव आलाकमान को कैप्टन पर भरोसा नहीं नवजोत सिंह सिद्धू भी हर मौकों पर कैप्टन को मात देनें में कोई मौका नहीं गंवाते थे। साथ ही खुद को कैप्टन का उत्तराधिकारी साबित करने की हर कोशिश करते। अगर ऐसा नहीं कर पाते तो कैप्टन की कमज़ोरियों को एक विपक्षी नेता के रूप में उठा देते। उदहारण के तौर करतारपुर कॉरीडोर खोलने का पूरा श्रेय भी लिए और जनता के बीच यह मैसेज पहुचाने में भी कामयाब रहे कि यह कार्य इनके द्वारा किया गया है। साथ ही अकाली दल और आम आदमी पार्टी को हर फ्रंट पर कमज़ोर देख ख़ुद बेअदबी के मुद्दे को उठाते रहे। कैप्टन की जो सबसे बड़ी कमजोरी थी दिल्ली दरबार से दूरी। उसका नवजोत सिंह सिद्धू ने फ़ायदा उठाने के लिए प्लान तैयार किया और हर मौके पर पंजाब की बातों को दिल्ली ले जाते रहे। पंजाब में कैप्टन को न घेर पाने वाले सिद्धू नें कैप्टन को दिल्ली से घेरना शुरू किया इसमें उन्होंने प्रियंका गांधी को अपने पक्ष में किया। चूंकी सिद्धू के ज्वाइनिंग में प्रियंका गांधी की अहम् भूमिका रही थी इसलिए प्रियंका गांधी प्रत्यक्ष रूप से सिद्धू की मदद करती रहीं। उधर नवजोत सिंह सिद्धू कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी से भी मिलते रहे और अध्यक्ष बनते वक़्त सोनिया गांधी को भी बिश्वास में लिया। वहीं कैप्टन का दिल्ली दरबार से संपर्क न के बराबर रहा। चुनावी साल में एक्टिव मोड में BJP, इस तरह से की जा रही है वोट बैंक पर क़ब्ज़ा जमाने की कोशिश कैप्टन ने जेटली को दी थी मात दिल्ली दरबार ने कैप्टन को अमृतसर भेजकर बीजेपी को 2014 में बीजेपी के दिग्गज नेता अरुण जेटली को हरा दिया वह नेता कैसे सिद्धू से हार सकता था। सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी ने कैप्टन को अमृतसर की जंग जीतने के लिए अमृतसर से रण में उतरने का निवेदन किया और कांग्रेस ने अमृतसर सीट मांगी। कैप्टन ने अपनी रणनीति से जेटली को 1 लाख वोट से हराकर यह सीट कांग्रेस की झोली में डाल दी थी। लेकिन जितनी बार सोनिया से दिल्ली में मिले उतनी बार मोदी से भी मिलने वाले कैप्टन ने जब 37 0 के मुद्दे पर कांग्रेस से इतर बयान दिया तो कांग्रेस आलाकमान का कैप्टन से विश्वास घटता गया । इतना ही नहीं कैप्टकन अमरिंदर सिंह ने जम्मू -कश्मीनर से अनुच्छेसद 370 हटाने के बाद चीफ ऑफ डिफेंस स्टॉटफ की नियुक्ति का भी समर्थन किया था। उन्हों ने कहा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) का पद सृजन करने का ऐलान सराहनीय है। यह देश की रक्षा सेनाओं के कमांड ढांचे को मज़बूत बनाने वाला अहम कदम है। कैप्टन के विरोध के बाद भी सिद्धू बने अध्यक्ष 18 जुलाई 2021 को कैप्टन के विरोध के बाद भी सिद्धू को कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष बना दिया गया। कैप्टन इसी दिन कांग्रेस छोड़ देते या विधायकों को तोड़कर अपनी सरकार बना लेते तो अच्छा होता। इसके बाद 5 अगस्त को कैप्टन के मुख्य सलाहकार के पद से प्रशांत किशोर ने भी इस्तीफा दिया फिर भी कैप्टन दिल्ली दरबार की तिकड़म बाजी को नहीं समझ सके या अन्दर खाने विधायकों को जोड़ने की कोशिश नहीं की। लेकिन तब तक गाड़ी प्लेट फॉर्म से आगे जा चुकी थी। अब पंजाब के विधायकों की मीटिंग भी दिल्ली में होने लगी थी जिसमे कांग्रेस कैप्टन को विश्वास में भी नहीं लेती थी। राहुल गांधी से 13 महीने पहले हुई थी मुलाक़ात कैप्टन अमरिंदर सिंह ने इस बात का ज़िक्र अपनी प्रेस कांफ्रेंस में भी किया है कि राहुल गांधी से उनकी मुलाक़ात 13 महीने पूर्व हुई थी। जो भी हो सिद्धू और कैप्टन की यह लड़ाई यहीं समाप्त नहीं हुई है क्योंकि कैप्टन ने बड़े ही सीधे अंदाज में अपनी बात प्रेस कांफ्रेंस में रखी है और अपने लिए सभी राजनीतिक विकल्प खोल दिया है। राष्ट्रीय सुरक्षा की बात करके कैप्टन ने सिद्धू और कांग्रेस दोनों को बैक फूट पर ला दिया है साथ ही साथ बीजेपी में जाने का मार्ग भी खोल लिया है, लेकिन किसानों के मुद्दे पर बीजेपी के खिलाफ माहौल बनाने में उन्हें बीजेपी में जाने से ज़्यादा कुछ हासिल नहीं होने वाला है। इसिलए उन्होंने अपने लोगों से बातचीत करके निर्णय लेने की बात भी कही है। इसमें 2 बातें छुपी हैं कांग्रेस के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव और नए पार्टी का गठन। वैसे अमरिंदर सिंह विधायकों को अपने साथ जोड़कर रख पाने में असफल रहे इस मामले में कैप्टन सत्ता में रहकर भी अपने ही पार्टी के हरियाणा के विपक्ष के नेता हुड्डा से कुछ नहीं सीख पाए। जो विधायकों को जोड़कर हमेशा कांग्रेस आला कमान को अपने दबाव में रखते हैं और दिल्ली से लेकर हरियाणा तक कांग्रेस को अपने हिसाब से चलाते हैं। चुनावी रणनीतिकार बद्रीनाथ का ने कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष अशोक तंवर को हुड्डा नहीं चाहते थे तो उन्हें विधान सभा चुनाव से पूर्व हटाना पड़ा था। वहीं अमरिंदर सिंह के न चाहने पर भी सिद्धू को कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया |
कांग्रेस में सियासी घमासान, कब क्या हुआ और अमरिंदर सिंह का इस्तीफ़ा कैसे हुआ, आगे क्या हैं आसार ?
Parmod Kumar