अदालत ने कहा कि जो लोग संयुक्त पंजाब में थे और जो हरियाणा के अलग राज्य के तौर पर पुनर्गठन के बाद हरियाणा में रहे उन्हें अनुसूचित जाति के दर्जे से इनकार नहीं किया जा सकता। जिस जाति से याची है वह हरियाणा व पंजाब दोनों में ही अनुसूचित जाति की श्रेणी में रखी गई है।
पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने अहम फैसला सुनाते हुए यह स्पष्ट कर दिया है कि हरियाणा से जारी अनुसूचित जाति प्रमाण पत्र धारण करने वाले आवेदक को पंजाब में आरक्षण के लाभ से वंचित नहीं रखा जा सकता है। हरियाणा के निवासी पंजाब में प्रवासी नहीं माने जा सकते क्योंकि विभाजन से पहले दोनों एक राज्य थे।
अदालत ने कहा कि जो लोग संयुक्त पंजाब में थे और जो हरियाणा के अलग राज्य के तौर पर पुनर्गठन के बाद हरियाणा में रहे उन्हें अनुसूचित जाति के दर्जे से इनकार नहीं किया जा सकता। हाईकोर्ट ने कहा कि गौर करने लायक बात यह भी है कि जिस जाति से याची है वह हरियाणा व पंजाब दोनों में ही अनुसूचित जाति की श्रेणी में रखी गई है।
क्लर्क पद पर पंजाब में आवेदन करते हुए याचिकाकर्ता श्रीश ने आरक्षित श्रेणी में आरक्षण की मांग की थी। पंजाब सरकार ने यह कहते हुए आरक्षण का लाभ देने से इनकार कर दिया कि उसका अनुसूचित जाति प्रमण पत्र हरियाणा सरकार द्वारा जारी किया गया था। याची ने बताया कि उसके पिता पंजाब सरकार में कार्यरत थे और वहीं से सेवानिवृत्त हुए थे। हालांकि वह हरियाणा में बसे हुए थे। कोर्ट ने कहा कि हरियाणा का गठन 1 नवंबर, 1966 को हुआ था। उससे पहले याची के पिता ने अनुसूचित श्रेणी में ही पंजाब में रोजगार प्राप्त किया था। हाईकोर्ट ने कहा कि याची के प्रति प्रवासन की अवधारणा को इस मामले पर लागू नहीं किया जा सकता क्योंकि वाल्मीकि समाज के लोगों को दोनों राज्यों में अनुसूचित जाति के रूप में अधिसूचित किया गया था। ऐसे में याची को इस लाभ से वंचित नहीं रखा जा सकता।
We use cookies to ensure that we give you the best experience on our website. If you continue to use this site we will assume that you are happy with it.Ok