Ravidas Ji: ‘मन चंगा, तो कठौती में गंगा’ क्यों लिखी ये कहावत, दिलचस्प है इसकी कहानी जानें

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Ravidas Ji: ‘मन चंगा, तो कठौती में गंगा’ क्यों लिखी ये कहावत, दिलचस्प है इसकी कहानी जानें

 

संत रविदास की यह कहावत आज भी हमें सिखाती है कि सच्ची भक्ति बाहरी आडंबरों मेंरविदास जी: ‘मन चंगा, तो कठौती में गंगा’ कहावत की दिलचस्प कहानी

संत रविदास का जीवन और विचारधारा
संत रविदास भारतीय संत परंपरा के महान संतों में से एक थे। उन्होंने समाज में फैली कुरीतियों और भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाई। उनका जीवन सादगी, भक्ति और प्रेम का प्रतीक माना जाता है। उनकी शिक्षाएं समाज को एक नई दिशा देने वाली थीं।

‘मन चंगा, तो कठौती में गंगा’ का अर्थ
संत रविदास की यह प्रसिद्ध कहावत बताती है कि यदि मन शुद्ध और पवित्र हो, तो ईश्वर की कृपा किसी भी स्थान पर प्राप्त की जा सकती है। यह कथन बताता है कि आंतरिक शुद्धता बाहरी कर्मकांडों से अधिक महत्वपूर्ण है।

इस कहावत की पृष्ठभूमि
कहा जाता है कि एक बार संत रविदास चमड़े का काम कर रहे थे। उसी समय, कुछ लोग गंगा स्नान के लिए जा रहे थे। उन्होंने संत रविदास से भी साथ चलने का अनुरोध किया, लेकिन संत ने कहा कि जब मन शुद्ध होता है, तो जहां भी हम होते हैं, वहीं पर गंगा की कृपा प्राप्त हो सकती है। यह सुनकर लोग आश्चर्यचकित हो गए और उनकी भक्ति भावना को नमन किया।

संत रविदास की शिक्षाओं का प्रभाव
संत रविदास की शिक्षाएं समाज में आज भी प्रेरणा का स्रोत हैं। उन्होंने जात-पात और ऊँच-नीच के भेदभाव का विरोध किया और समानता का संदेश दिया। उनके विचारों ने सामाजिक समरसता को बढ़ावा दिया और लोगों को आंतरिक पवित्रता का महत्व समझाया।

निष्कर्ष नहीं, बल्कि आंतरिक पवित्रता और सद्भाव में निहित है। यदि मन चंगा हो, तो किसी तीर्थस्थल की आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि ईश्वर हर स्थान पर विद्यमान हैं।