अकाली दल में बगावत! सुखबीर बादल और बिक्रम मजीठिया के बीच तकरार, जानें साले की किस बात से नाराज हैं जीजा

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अकाली दल में बगावत! सुखबीर बादल और बिक्रम मजीठिया के बीच तकरार, जानें साले की किस बात से नाराज हैं जीजा

 

### दो तख्त जत्थेदारों की बर्खास्तगी पर असहमति
शिरोमणि अकाली दल के पूर्व अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल और उनके साले बिक्रम सिंह मजीठिया के बीच विवाद खुलकर सामने आ गया है। शनिवार रात यह तकरार तब और उजागर हो गई जब मजीठिया ने शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति (SGPC) द्वारा दो तख्त जत्थेदारों की बर्खास्तगी का विरोध किया। सुखबीर खेमे ने इस असहमति को तख्ता पलट की कोशिश के रूप में देखा, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि अकाली दल के भीतर दरार गहरी हो चुकी है।

### सुखबीर खेमे से आई तीखी प्रतिक्रिया
बिक्रम मजीठिया के इस कदम पर सुखबीर खेमे की तीखी प्रतिक्रिया आई। अकाली दल के कार्यकारी अध्यक्ष बलविंदर सिंह भूंदड़ की ओर से जारी बयान में ‘पीठ में छुरा घोंपने’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया गया। इसके कुछ ही घंटों के भीतर सुखबीर खेमे के समर्थकों और अकाली दल के आईटी सेल ने मजीठिया के खिलाफ मोर्चा खोल दिया।

अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक, यह तनातनी तब और स्पष्ट हो गई जब 17 फरवरी को चंडीगढ़ में अपनी बेटी के विवाह समारोह में सुखबीर ने मजीठिया विरोधी दो अहम नेताओं – तलबीर सिंह गिल और पूर्व कांग्रेस विधायक इंदरबीर सिंह बोलारिया – को बुलाया। इससे मजीठिया के अलावा अन्य नेताओं को भी एक संकेत देने की कोशिश की गई।

### सुखबीर भी कमजोर स्थिति में
एक वरिष्ठ अकाली नेता के अनुसार, दोनों के बीच अनबन की चर्चा पहले से ही पार्टी हलकों में चल रही थी। 2 दिसंबर को अकाल तख्त की कार्यवाही के दौरान भी इसके संकेत मिले थे। मजीठिया ने खुद को उन नेताओं के साथ खड़ा किया जो शिअद-भाजपा सरकार के दौरान विवादास्पद फैसलों में शामिल नहीं थे।

एसजीपीसी के फैसले पर मजीठिया की खुली असहमति तब आई जब जत्थेदारों की बर्खास्तगी को लेकर सिख समुदाय में विरोध बढ़ रहा था। दूसरी ओर, सुखबीर भी कमजोर स्थिति में हैं, क्योंकि शिरोमणि अकाली दल की सदस्यता और चुनाव प्रक्रिया अभी जारी है और वे अब तक औपचारिक रूप से अध्यक्ष नहीं बने हैं।

### जेल से बाहर आने के बाद ज्यादा सक्रिय हुए मजीठिया
राजनीतिक हलकों में आमतौर पर यह माना जाता था कि सुखबीर की बहन और बठिंडा की सांसद हरसिमरत कौर बादल, मजीठिया की ताकत का एक बड़ा कारण थीं। सुखबीर ने भी उन्हें सरकार और पार्टी में महत्वपूर्ण अधिकार दिए थे।

हालांकि, अगस्त 2022 में जमानत पर जेल से बाहर आने के बाद मजीठिया ने अपनी राजनीतिक दिशा खुद तय करनी शुरू कर दी। उन्होंने एक आक्रामक विपक्षी नेता की भूमिका निभाई और राज्य सरकार पर लगातार हमले किए। ऐसा माना जाता है कि उनके पास सरकार की आंतरिक गतिविधियों की काफी जानकारी थी, जिसे वे राजनीतिक हमलों के लिए इस्तेमाल कर रहे थे।

### अकाली दल के भीतर गहराती दरार
अकाली दल में इस समय असमंजस की स्थिति बनी हुई है। पार्टी के भीतर दो बड़े नेताओं के बीच खुली तकरार से यह साफ हो गया है कि आने वाले समय में इसका असर पंजाब की राजनीति पर पड़ सकता है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि पार्टी इस संकट से कैसे उबरती है और सुखबीर-मजीठिया के रिश्तों में कोई सुधार आता है या यह दरार और गहरी होती है।