इस वक्त दिल्ली में जो वायु प्रदूषण है उसमें पराली जलाने की घटनाओं का सिर्फ 6 फीसदी योगदान है. दिल्ली की जहरीली हवा के कारण कुछ और भी हैं. किसानों को इसके लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता. केंद्र सरकार की एक रिपोर्ट बताती है कि इस साल पराली जलाने की घटनाएं 2020 के मुकाबले काफी कम हैं. इसी साल 15 सितंबर से 1 नवंबर तक पंजाब, हरियाणा, यूपी, राजस्थान और एमपी में 20729 जगहों पर पराली जलाई गई है. यह 2020 के मुकाबले 54.8 फीसदी कम है.
दिल्ली के वायु प्रदूषण में पराली के योगदान की यह रिपोर्ट सफर (SAFAR-सिस्टम ऑफ एयर क्वालिटी एंड वेदर फॉरकास्टिंग एंड रिसर्च) की है. यह वायु प्रदूषण (Air Pollution) के बारे में जानकारी देने वाली पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की एक संस्था है. हालांकि, इस वक्त प्रदूषण से दिल्ली के हालात बेहद खराब हैं. यहां पीएम-10 का स्तर 252 एवं पीएम-2.5 का स्तर 131 तक पहुंच गया है. जबकि पीएम 10 का सामान्य लेवल 100 माइक्रो ग्राम क्यूबिक मीटर (एमजीसीएम) होना चाहिए. इसी तरह पीएम 2.5 का नॉर्मल लेवल 60 एमजीसीएम होता है.
मान नहीं रहे पंजाब के किसान
कृषि वैज्ञानिकों और सरकार की तमाम कोशिशों के बाद भी पंजाब (Punjab) के किसान पराली जलाने (Stubble Burning) से बाज नहीं आ रहे हैं. मंगलवार को अकेले इसी राज्य में पराली जलाने की 3001 घटनाएं रिपोर्ट की गईं. इस मामले में 214 घटनाओं के साथ मध्य प्रदेश दूसरे और 203 के साथ हरियाणा तीसरे स्थान पर रहा. पंजाब की बात करें तो सबसे ज्यादा घटनाएं तरनतारन, अमृतसर और फिरोजपुर में हो रही हैं. वहीं हरियाणा में कैथल और करनाल हॉट स्टॉट बने हुए हैं.
किसानों की क्या है समस्या
पराली निस्तारण के लिए सरकार ने न सिर्फ मशीनों का इंतजाम किया है बल्कि सस्ता विकल्प भी दिया है. सिर्फ 50 रुपये के पूसा डी कंपोजर कैप्स्यूल का घोल बनाकर उसमें डालने से काम चल जाएगा लेकिन इन जिलों के किसान इतनी सी बात समझने के लिए तैयार नहीं हैं. हालांकि, पंजाब के किसानों का कहना है कि सरकार पराली निस्तारण मशीनों पर सब्सिडी (Subsidy) देने के नाम पर बेवकूफ बना रही है. पराली बांधने की मशीन की कीमत सवा लाख रुपये है, इसे किसान कैसे खरीदेगा. किसानों की परेशानी यह भी है कि उनके पास रबी फसलों की बुवाई के लिए ज्यादा वक्त नहीं है.