नई दिल्ली: अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के अल्पसंख्यक दर्जे को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने आज अपना फैसला सुना दिया है। 7 जजों की बेंच ने 4:3 से अपना फैसला सुनाया है। सुप्रीम अदालत की बेंच ने अलीगढ़ यूनिवर्सिटी का अल्पसंख्यक दर्जा बरकरार रखा है,लेकिन उसके लिए मानदंड बनाए हैं। इसके बाद इसे 3 जजों की रेगुलर बेंच के पास भेज दिया है। इससे पहले सीजेआई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने इस मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था। इस पीठ में सीजेआई के अलावा जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस जे.बी. पारदीवाला, जस्टिस दीपांकर दत्ता, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस एससी शर्मा शामिल थे।
एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे को लेकर बैठी 7 जजों की बेंच ने 4:3 से फैसल सुनाने के बाद अब इसे 3 जजों की नई बेंच के पास भेज दिया गया है। अभी के हिसाब से अलीगढ़ यूनिवर्सिटी के लिए पैमाना सेट किया है। इसका अल्पसंख्यक दर्जा बरकरार रहेगा। 7 जजों की ओर से बनाए नए मानदंडों को ध्यान में रखते हुए नई तीन जजों की बेंच इसपर फैसला लेगी।
अल्पसंख्यक का दर्जा मिला पर मानंदड के साथ
बहुमत के फैसले में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा देने के लिए मानदंड निर्धारित किए गए हैं। इस निर्णय में यह स्पष्ट किया गया है कि AMU के अल्पसंख्यक संस्थान होने का निर्धारण वर्तमान मामले में बताए गए परीक्षणों और मानदंडों के आधार पर किया जाएगा।
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का अल्पसंख्यक दर्जा बरकरार
सुप्रीम कोर्ट की 7-सदस्यीय पीठ ने 4:3 के बहुमत से फैसला दिया है कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) भारत के संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत अल्पसंख्यक का दर्जा पाने का हकदार है। सीजेआई ने कहा कि Azeez Basha के मामले में लिया गया निर्णय रद्द कर दिया गया है, और अब अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) के अल्पसंख्यक दर्जे का निर्धारण वर्तमान मामले में निर्धारित मानदंडों के आधार पर किया जाना चाहिए।
अदालत को संस्थान की उत्पत्ति पर विचार करना होगा-CJI
कुछ विश्वविद्यालय ऐसे थे जो शिक्षण कॉलेज थे और शिक्षण कॉलेजों को शिक्षण विश्वविद्यालयों में बदलने की प्रक्रिया एक शैक्षणिक संस्थान बनाने की प्रक्रिया है और इसलिए इसे इतने संकीर्ण रूप से नहीं देखा जा सकता है। यह नहीं कहा जा सकता कि सिर्फ इसलिए कि अधिनियम की प्रस्तावना ऐसा कहती है, इसलिए एक संस्थान कानून द्वारा बनाया गया है। मौलिक अधिकारों को वैधानिक भाषा के अधीन नहीं किया जा सकता है और औपचारिकता को वास्तविकता के लिए रास्ता देना चाहिए। अदालत को संस्थान की उत्पत्ति पर विचार करना होगा
सीजेआई ने अनुच्छेद 30A का हवाला देकर पूछा सवाल
सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ ने पूछा कि अनुच्छेद 30A के तहत किसी संस्थान को अल्पसंख्यक मानने के क्या मानदंड हैं? सीजेआई ने कहा कि सॉलिसिटर जनरल ने कहा था कि संघ उस प्रारंभिक आपत्ति पर जोर नहीं दे रहा है कि सात न्यायाधीशों को रेफरेंस नहीं किया जा सकता है। यह विवादित नहीं है कि अनुच्छेद 30 अल्पसंख्यकों को भेदभाव न करने का अधिकार देता है। सवाल यह है कि क्या उन्हें भेदभाव न करने के अधिकार के साथ-साथ कोई विशेष अधिकार भी प्राप्त है।
4 जजों का फैसला एक,3 का अलग
एएमयी के अल्पसंख्यक दर्जे पर सुप्रीम कोर्ट में फैसला पढ़ा जा रहा है। इस मु्द्दे पर 4 जजों का एक मत है तो वहीं 3 जज ऐसे हैं जो इसके खिलाफ है।मुख्य न्यायाधीश ने खुद, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, जस्टिस जेडी पार्डीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा के साथ मिलकर बहुमत का फैसला लिखा।जबकि न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा ने असहमति का फैसला दिया। इस मामले को 7 जजों की बेंच सुन रही थी।
इस मामले में कुल 4 अलग-अलग राय हैं। मैंने बहुमत का फैसला लिखा है। तीन जजों ने अलग-अलग असहमति के फैसले लिखे हैं। न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति शर्मा ने अपनी-अपनी असहमति की राय लिखी है। इसलिए यह 4:3 का फैसला है।
सीजेआई के नेतृत्व वाली संविधान पीठ सुनाएगी फैसला
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ इलाहाबाद हाई कोर्ट के 2006 के एक फैसले के संबंध में सुनवाई कर रही थी। हाई कोर्ट के आदेश में कहा गया था कि एएमयू अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है। साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की पीठ ने इस मामले को सात जजों की पीठ को सौंप दिया था।
क्या है पूरा मामला
साल 1968 के एस. अजीज बाशा बनाम भारत संघ के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एएमयू को केंद्रीय विश्वविद्यालय माना था, लेकिन साल 1981 में एएमयू अधिनियम 1920 में संशोधन लाकर संस्थान का अल्पसंख्यक दर्जा बहाल कर दिया गया था। बाद में इसे इलाहाबाद हाई कोर्ट में चुनौती दी गई और यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया।