किसानों के इस आंदोलन में पंजाब के कई सरदार जी, पा जी अपने परिवार समेत आए हैं. 17-18 साल के लड़के हैं, 20-22 के युवा हैं. ये लड़के स्टाइलिश हैं, समृद्धि में पले-बढ़े हैं. इन युवाओं के सपनों में कनाडा और यूरोप है, लेकिन अभी भी इनका आधार खेती किसानी ही है, इन्हें लगता है केंद्र के इन कानूनों ने इन उनके आधार पर ही चोट किया है.
इससे पहले ग्राउंड जीरो की ओर बढ़ते हुए हमें एक कतार से शौच और स्नान के लिए लगी गाड़ियों की लंबी कतार दिखाई दी. ये व्यवस्था दिल्ली सरकार की ओर से की गई है. इन गाड़ियों पर टंगा बैनर बड़ा रोचक है. इन पर लिखा है . “ये शौचालय, पंजाब से दिल्ली आए मेहमानों के लिए है.” यहां मौजूद भीड़ के लिहाज से ये मुकम्मल इंतजाम है.
तीन नाम के चर्चे…अदानी, अंबानी और मोदी के खर्चे
कुछ ही मीटर की दूरी पर पंडाल के अंदर धरना-प्रदर्शन चल रहा है. सिंघु बॉर्डर पर कृषि कानून के विरोध में कई संगठनों ने डेरा डाल रखा है. युवा किसान बैनर पोस्टर लेकर पूरे एरिया में चक्कर लगाते रहते हैं और नारेबाजी कर लोगों का जोश बढ़ाते हैं. पंडाल के अंदर कोई दो-ढाई सौ लोग बैठे हैं. अलग-अलग कद काठी के. जब मैं वहां पहुंचा तो महाराष्ट्र से आई एक युवती सिख किसानों को संबोधित कर रही थी. हालांकि ठेठ पंजाबी किसानों को मराठी टोन वाली हिंदी तो समझ में नहीं आ रही थी लेकिन जब-जब किसान अदानी और अंबानी का नाम सुनते, शोर बढ़ जाता और वे ‘काल्ले कनून’ वापस लो का नारा लगाने लगते. कॉरपोरेट शब्द कई किसानों को नहीं समझ आता, लेकिन इतने दिन बाद वे इतना जरूर समझ गए हैं कि उनके खेत और उससे होने वाली कमाई के बीच कोई आ गया है. इन किसानों की बातें सुनकर ये लगा कि अदानी-अंबानी द्वारा मंडी सिस्टम को कथित रूप से खत्म किए जाने की चर्चा सुनकर ये डरे हुए हैं. इसलिए एकमत से ये इन कानूनों का विरोध कर रहे हैं. पीएम मोदी का जिक्र आते ही उनकी विदेश यात्राओं का जिक्र होता है. किसान कहते हैं, ‘दुनिया घुमने वाले, करोड़ों खर्चने वाले प्रधानमंत्री ने किसानों के लिए कानून बनाते समय उनसे बातचीत भी जरूरी नहीं समझी.’
बिहार से कैसे अलग दिखे पंजाब के किसान
जब मैं हरियाणा की सीमा की ओर और आगे बढ़ा तो कई सिख किसान मिले. मैंने अबतक बिहार-झारखंड और यूपी के ही किसानों को देखा था. बिहार के किसान पतली काया के, धोती पहने…देह के ऊपर हाफ गंजी और कई बार कमर से ऊपर बिना कपड़ों के दिखते थे. किसानों के बारे में अभाव और गरीबी का जो वर्णन हमारे साहित्य में है, ऐसा ही भाव इन किसानों को देखकर उभरता था. लेकिन पंजाब के 6 फूटा, हृष्ट पुष्ट युवा और बुजुर्ग किसानों को देख मुझे अलग एहसास हुआ.
दरअसल गूगल बताता है कि 70 के दशक की हरित क्रांति ने पंजाब-हरियाण को समृद्धि के द्वार पर लाकर खड़ा कर दिया. इससे किसानों के घर लक्ष्मी आई, लेकिन इसके पीछे इन किसानों की मेहनत और उद्यमिता का बड़ा हाथ रहा है.
पंजाब दी पुतर का स्वैग
किसानों के इस आंदोलन में पंजाब के कई सरदार जी, पा जी अपने परिवार समेत आए हैं. 17-18 साल के लड़के हैं, 20-22 के युवा हैं. ये लड़के स्टाइलिश हैं, समृद्धि में पले बढ़े हैं. इन युवाओं के सपने में कनाडा और यूरोप की हवा है, लेकिन अभी भी इनका आधार खेती किसानी ही है, इन्हें लगता है केंद्र के इन कानूनों ने इन उनके आधार पर ही चोट की है इसलिए वे सरकार से हक मांगने दिल्ली आ गए हैं. सिख किसानों और इस आंदोलन को खालिस्तान-पाकिस्तान से जोड़ने की पीड़ा और क्रोध इन युवाओं में साफ दिखाई दे रही है. ये लड़के बैनर लेकर कतार से खड़े हैं. इन बैनरों पर लिखा है, ‘हम किसान हैं आतंकवादी नहीं’. एक और नारा अंग्रेजीदां लोगों के लिए है, “In winter’s chill or summer’s heat, A farmer works so the world can eat.” धरने में शामिल कई नवयुवकों ने एक टीशर्ट पहन रखी है. इन टी-शर्ट पर मूंछों की तस्वीर के साथ ‘प्राउड टू बी फॉर्मर’ लिखा है.
रोटियों की तह पर घी छिड़कते सरदार जी…
कई जगह रात के भोजन की तैयारी देखने को मिली. लुधियाना से आए सरदार जी ने रोटी बनाने की मशीन ले आई है. इस मशीन से घंटे भर में हजार लोगों की रोटी बनाई जा सकती है. एक सरदार जी मशीन से निकल रही गर्म गर्म रोटियों की तह एक भगोने में लगाते हैं उस पर घी छिड़कते हैं और दबा-दबा कर रखते जाते हैं ताकि रात को जब लंगर लगे तो खाने वालों को गर्म-नर्म और मुलायम रोटियां मिले. लगभग दो तीन स्थानों पर तो दिन भर लोगों को खाना खिलाया जा रहा है. पंगत में बैठकर यहां कोई भी रोटी-चावल खा सकता है.बगल में किसानों को शाम की चाय दी जा रही है. दरअसल ये चाय ही नहीं स्नैक्स की व्यवस्था है. चाय के साथ लोगों को पारले की बिस्किट, मट्ठी, बेकरी बिस्किट दी जा रही है. एक और जगह ब्रेक पकौड़ा तला जा रहा है. किसान आते हैं अपनी पसंद की चीज मांगते हैं और चाय लेकर फिर धरने में चले जाते हैं. गर्म पकौड़े की खेप आती है, 15-20 लोग एक साथ टूट पड़ते हैं और फिर लोगों की नजर खौलती कड़ाही की ओर. दरअसल पंजाबी अपनी भव्यता, ताम-झाम और मस्ती भरा अंदाज साथ लेकर चलते हैं. ऐसा ही नजारा यहां देखने को मिल रहा है.
इसी के बगल में संयुक्त किसान मोर्चा का बड़ा सा मंच सजा है. यहां पर लगातार भाषण हो रहा है. 15 दिन से ज्यादा समय से बैठे-बैठे किसानों के बीच उबासी हावी है. यू तों किसान चुप रहते हैं लेकिन जैसे ही मंच से ‘जो बोले सो निहाल की आवाज आती है’, सभा में हलचल सी मच जाती है, नीचे से लोग समवेत स्वर में बोलते हैं ‘सत श्री अकाल’. फिर ‘वाहे गुरु जी दा खालसा’, ‘वाहे गुरु जी दी फतेह’ का जयकारा लगता है और सभा में बिजली दौड़ जाती है. और एक बार फिर नारा लगता है ‘काल्ले कनून’ वापस लो.
धरना स्थल पर दिल्ली-हरियाणा के कई शहरी सिख परिवारों को देखा जा सकता है. पूरे परिवार के साथ यहां पहुंचे ये सिख पंजाब के सिखों को श्रद्धा के भाव से देखते हैं. दिल्ली के ये सिख यहां अपने बच्चों को खेती-किसानी की बारिकियां समझाते हुए देखे जा सकते हैं. सड़क पर लेटे किसानों को देखकर इन्होंने अपने बच्चों को बताया कि किसान होने का संघर्ष क्या होता है.
गेहूं चावल की बोरियों का ढेर
सड़क किनारे-तिरपाल में ढके सैकड़ों चावल-गेहूं की बोरियां साफ बताती हैं कि ये आंदोलन निर्णायक ही होगा. जरूरत पड़ा तो लंबा खिंचेगा. कई स्थानों पर सैकड़ों बोरे चावल गेहूं के रखे गए हैं. रिफाइन के बड़े पैकेट हैं, घी के कनस्तर हैं और गाजर-गोभी आलू टमाटर की देसी सप्लाई है.
ट्रैक्टर में सिमटा सारा संसार
पंजाब से निकले इन किसानों ने अपना संसार फिलहाल ट्रैक्टरों में समेट लिया है. यहां ट्रैक्टरों की लंबी कतार है. ट्रैक्टर को इन्होंने अस्थायी घर का रूप दे दिया है. कई बुजुर्ग किसान दिन को भी ठंड की वजह से इन ट्रैक्टर ट्रालियों में ही सिमटे रहते हैं. पंजाब के ग्रामीण इलाकों से आए इन लोगों को मीडिया की इतनी चकाचौंध पसंद नहीं. लिहाजा इनका ज्यादा वक्त अरदास में और ट्रालियों में ही गुजरता है. मौसम मे बढ़ती नमी इनके लिए चुनौती पेश कर रही है. लेकिन किसानों का इरादा अडिग दिखता है.
हुक्के पर हरियाणा की चौपाल
इस प्रदर्शन में हरियाणा के किसानों की मौजूदगी कम है. लेकिन एक जगह पर हुक्के के बीच हरियाणा के किसानों की चौपाल जरूर नजर आई. एक स्थानीय पत्रकार ने कहा कि किसान आंदोलन ने जाति, गोत्र और खाप में बंटे हरियाणा किसानों को एक कर दिया है.
किसानों को नाराज नहीं कर सकती सरकार
किसान वो शब्द है जिसे लेकर हर दिल में नरमी ही होती है. हमारे साहित्य, कहानियों और गीतों ने किसानों की जिंदगी के कैनवस पर दुख और संघर्ष के रंग भरे हैं. इसलिए लोग इनकी मांगों के जायज-नाजायज होने पर विचार किये बिना ही इनसे सहानुभूति ही जताते हैं. एक औसत भारतीय को किसानों की जिंदगी में अपनी लड़ाई की छाया दिखती है. लिहाजा सरकार इन्हें नाराज करने का जोखिम नहीं उठा सकती. पंजाब में गेहूं की फसल लगनी शुरू हो गई है. इस वक्त इन्हें सिंघु बॉर्डर पर नहीं बल्कि अपने खेत पर, अपनी मिट्टी में होना चाहिए.