भगवान श्री कृष्ण, दीनबंधु हैं, करुणा सिंधु हैं। मित्र हों तो श्रीकृष्ण जैसे, जो एक दीन ब्राह्मण सुदामा से भी मित्रता निभाते हैं। हम संसारियों की तरह नहीं कि थोड़ी सी भी पद प्रतिष्ठा पाकर ही अपने पुराने मित्र को हीन भावना से देखने लगते हैं।यह बात मंगलवार को पत्रकार कालोनी, विनय नगर स्थित श्री चलेश्वर महादेव मां शक्ति मंदिर में जारी श्रीमद् भागवत कथा के सातवें दिन कथा व्यास गुंजन वशिष्ठ ने कही। भागवताचार्या ने सुदामा की कथा सुनाते हुए दत्तात्रेय के 24 गुरुओं का वर्णन किया। श्रीकृष्ण-सुदामा के मित्र मिलन की कथा का मार्मिक चित्रण किया गया। करुणामयी, भक्तिमय, संगीतमय कथा का रसपान कर मौजूद सभी श्रद्धालु भाव विभोर हो गए। गुंजन वशिष्ठ ने कहा कि भगवान श्री कृष्ण ने सुदामा चरित्र के माध्यम से भक्तों के सामने दोस्ती की मिसाल पेश की और समाज में समानता का संदेश दिया। साथ ही भक्तों को बताया कि श्रीमद् भागवत कथा का सात दिनों तक श्रवण करने से जीव का उद्धार हो जाता है। वशिष्ठ ने कहा कि बोलने व लिखने से पहले चिंतन करना चाहिए, क्या लिखने जा रहे हैं, उसे समझ लें और क्या बोलने जा रहे हैं उसके विषय में सोच लें। इसके बाद ही कुछ भी बोलने व लिखने में समझदारी है। गुरु की महिमा बताते हुए उन्होंने कहा कि दीक्षा गुरु एक होता है, पर शिक्षा किसी से भी ली जा सकती है। शिक्षा गुरु कोई भी हो सकता है। यदि कोई छोटा बालक भी हमें शिक्षा देता है, ज्ञान की बात कहता है तो वह भी हमारे लिए पूज्य है।