13 की उम्र में बेच दिया; 14 में जुड़वां बच्चे, घरों में बर्तन मांजे, अब पदक जीत रहीं नीतू

lalita soni

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नीतू ने 17 साल की उम्र में खेल को गंभीरता से लिया और 19 साल की उम्र में सीनियर वर्ग में राष्ट्रीय पदक विजेता बन गईं। दो साल बाद ब्राजील में जूनियर विश्व चैंपियनशिप में भारत का प्रतिनिधित्व किया। वर्ष 2015 में केरल में आयोजित राष्ट्रीय खेलों में भी उन्होंने कांस्य पदक जीता। नीतू ने पिछले साल गुजरात में आयोजित राष्ट्रीय खेलों के 36वें संस्करण में 57 किग्रा वर्ग में रजत पदक जीता था।

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खेलने-कूदने की 13 साल की उम्र में मुझे 43 वर्षीय व्यक्ति को बेचा दिया। भागकर घर पहुंची तो माता-पिता ने एक बेरोजगार से शादी करा दी। सास की पेंशन से घर चलता था। एक साल बाद जुड़वां बच्चे हो गए। घर चलाने के लिए लोगों के घरों में नौकरानी, दर्जी का काम किया। फिर मैरीकॉम की कहानी सुनी और तय किया कि मुझे अपनी जिंदगी बदलनी है। 37वें राष्ट्रीय खेलों में रजत पदक जीतकर शहर लौटीं महिला पहलवान नीतू अपना जीवन संघर्ष बताते हुए भावुक हो उठीं।

नीतू सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) में कांस्टेबल के पद पर कार्यरत हैं। उन्होंने कहा कि मैं बहुत कुछ झेल चुकी हूं। जिंदगी हर किसी को दूसरा मौका देती है। आज मैं गर्व से कह सकती हूं कि मैंने कड़ी मेहनत और खेल के प्रति समर्पण से यह पदक जीता है। उन्होंने बताया कि वह मूलरूप से भिवानी (हरियाणा) की रहने वालीं हैं। उनका बचपन आभावों में गुजरा। परिवार आर्थिक रूप से बेहद कमजोर था।
13 साल की उम्र में मानसिक समस्या के कारण उन्हें 43 वर्षीय व्यक्ति को बेच दिया गया लेकिन वह किसी तरह अपने माता-पिता के पास वापस आने में सफल रहीं। माता-पिता ने जल्द ही उनके लिए एक दूल्हा ढूंढ दिया, जो पूरी तरह बेरोजगार था और अपनी मां की पेंशन से घर चलाता था।
पहलवान नीतू ने कहा कि थोड़े से पैसों में घर का गुजारा करना बेहद कठिन था। ऐसे में उन्होंने छोटी-मोटी नौकरी करने का फैसला किया। सबसे पहले ब्यूटीशियन का काम किया। फिर लोगों के घरों में नौकरानी और दुकान में दर्जी के रूप में काम किया। यही नहीं पैसों के लिए उन्होंने टाइलें लगाने का भी काम भी किया। इसी बीच महज 14 वर्ष की उम्र में उन्होंने जुड़वां लड़कों को जन्म दिया। इसके बाद उनके कंधों पर जिम्मेदारी और बढ़ गई। इसी बीच गांव में उनकी मुलाकात एक योग शिक्षिका से हुई। उन्होंने नीतू को कुश्ती कोच जिले सिंह के पास भेजा। कोच ने नीतू को प्रेरित करने के लिए मुक्केबाज मैरीकॉम की कहानी सुनाई, जिसके बाद उनकी जिंदगी हमेशा के लिए बदल गई।

सुबह साढ़े तीन बजे लोगों से छिपकर करती थी अभ्यास

पहलवान नीतू ने बताया कि मैंने केवल सातवीं कक्षा तक पढ़ाई की । मुझे पता था कि इतनी कम पढ़ाई के बाद मैं किसी भी नौकरी के लिए योग्य नहीं हूं। ऐसे में मैंने पति से खेलों से जुड़ने की बात कही। समझाने-बुझाने पर वह मदद के लिए तैयार हो गए लेकिन शर्त रखी कि मैं परिवार और गांव वालों के सुबह जागने से पहले अपना अभ्यास पूरा कर लूं। ऐसे में मैंने अल सुबह करीब साढ़े तीन बजे लगभग 10 किलोमीटर की जॉगिंग शुरू की और सबके उठने से पहले घर पहुंचकर रोज के कामों में व्यस्त हो जाती थी।

अब पेरिस ओलंपिक के ट्रायल पर नजर

नीतू ने 17 साल की उम्र में खेल को गंभीरता से लिया और 19 साल की उम्र में सीनियर वर्ग में राष्ट्रीय पदक विजेता बन गईं। दो साल बाद ब्राजील में जूनियर विश्व चैंपियनशिप में भारत का प्रतिनिधित्व किया। वर्ष 2015 में केरल में आयोजित राष्ट्रीय खेलों में भी उन्होंने कांस्य पदक जीता। नीतू ने पिछले साल गुजरात में आयोजित राष्ट्रीय खेलों के 36वें संस्करण में 57 किग्रा वर्ग में रजत पदक जीता था। अब उनकी नजर पेरिस ओलंपिक 2024 के ट्रायल पर है।