दुनिया भर में लाखों लोग डायबिटीज (शुगर) से पीड़ित हैं, जो एक बहुत ही आम क्रोनिक बीमारी है। इसके बावजूद, डायबिटीज को लेकर कई मिथक और गलत धारणाएँ बनी हुई हैं, जो अक्सर भ्रम पैदा करती हैं और इलाज को प्रभावित करती हैं।
चाहे यह मान्यता हो कि डायबिटीज केवल अधिक मीठा खाने से होता है या यह सोच कि डायबिटिक लोग खास तरह की डाइट नहीं ले सकते। इन भ्रांतियों के कारण सही निदान और उपचार में कठिनाई होती है। वास्तव में, डायबिटीज एक लाइफस्टाइल बीमारी है, जो जेनेटिक्स और अन्य कई कारणों पर निर्भर करती है।
इन मिथकों का पर्दाफाश करने और सच्चाई पर ध्यान केंद्रित करने से डायबिटीज से पीड़ित लोग अपने स्वास्थ्य और उपचार के बारे में बेहतर निर्णय ले सकते हैं। इसलिए, मिथकों और सच्चाई के बीच अंतर करना ज़रूरी है, ताकि लोग सही जानकारी के आधार पर फैसला कर सकें।
यह सबसे आम और प्रचलित मिथकों में से एक है कि ज्यादा मीठा खाने से डायबिटीज हो जाता है। हालांकि, यह पूरी तरह सच नहीं है। टाइप 1 डायबिटीज एक ऑटोइम्यून बीमारी है जो अक्सर बचपन में शुरू होती है और इसका डाइट से कोई संबंध नहीं होता। दूसरी ओर, टाइप 2 डायबिटीज कई कारकों से प्रभावित होती है, जिनमें लाइफस्टाइल, जेनेटिक्स और स्वास्थ्य संबंधी बिमारियां शामिल हैं। सिर्फ मीठे के सेवन से डायबिटीज नहीं होता है, बल्कि खराब खानपान और शारीरिक गतिविधियों की कमी जैसे कारक भी इसमें रोल निभाते हैं।
बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं डायबिटीज के पेशेंट। इसकी मुख्य वजह या यूं कहिए इसके कारको में उम्र, पारिवारिक इतिहास और जेनेटिक्स शामिल हैं। गलत लाइफस्टाइल के कारण जैसे मोटापा, खराब डाइट और इनएक्टिव लाइफस्टाइल, टाइप 2 डायबिटीज के रिस्क को बढ़ा सकते हैं। लेकिन ये अकेले इसके कारण नहीं होते। डायबिटीज की रोकथाम और नियंत्रण के लिए सभी रिस्क फैक्टर्स को समझना बहुत जरूरी है।
एक और आम धारणा है कि डायबिटीज से पीड़ित लोग कार्बोहाइड्रेट, मीठा और अन्य फोरबिडेन डाइट नहीं खा सकते। वास्तव में, डायबिटीज के नियंत्रण के लिए जरूरी है बैलेंस डाइट ना कि प्रतिबंधित डाइट। सही मात्रा में और संतुलित आहार के साथ, डायबिटीज से ग्रस्त लोग भी मिठाई और कार्बोहाइड्रेट को एंजॉय कर सकते हैं। ब्लड शुगर के लेवल को कंट्रोल करने के लिए हेल्दी डाइट और रेगुलर एक्सरसाइज साथ में मेडिकेशन महत्वपूर्ण है।
डायबिटीज से पीड़ित लोग सही जानकारी और रिसोर्स के साथ हेल्दी और बैलेंस लाइफ जी सकते हैं। इसके लिए डाइट के हिस्सों पर ध्यान देना, न्यूट्रिएंट्स का चुनाव करना और रेगुलर रूप से ब्लड शुगर को टेस्ट करना जरूरी है।
यह एक बहुत बड़ा मिथ है कि डायबिटीज केवल बुजुर्गों को होता है। टाइप 1 डायबिटीज किसी भी उम्र में हो सकता है, हालांकि यह अधिकतर बचपन या टीनेज में शुरू होती है। वहीं, टाइप 2 डायबिटीज का रिस्क ऐज के साथ बढ़ता है, खासकर 45 वर्ष के बाद। लेकिन बदलती जीवनशैली और बढ़ती मोटापा फ्रीक्वेंसी के कारण, टाइप 2 डायबिटीज अब युवाओं और यहां तक कि बच्चों में भी देखा जा रहा है।
सच 3: सभी उम्र के लोग डायबिटीज से प्रभावित हो सकते हैं
टाइप 1 और टाइप 2 डायबिटीज किसी भी उम्र के लोगों को प्रभावित कर सकता है। शुरुआती पहचान और समय पर उपचार से बीमारी का बेहतर मैनेजमेंट संभव है।