त्याग और जज्बे की कहानी: पिता ने नौकरी छोड़ बच्चों को सिखाई कबड्डी, पदक जीत बेटी ने सपना किया साकार

lalita soni

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त्याग और जज्बे की कहानी: पिता ने नौकरी छोड़ बच्चों को सिखाई कबड्डी, पदक जीत बेटी ने सपना किया साकार रणबीर सिंह कबड्डी के राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी रहे हैं। अपने खेल के दम पर ही वे बीएसएफ में सिपाही भर्ती हुए। इसके बाद एशियन गेम्स में खेलने का मौका आया तो विशेषज्ञों ने यह कह कर मना कर दिया कि आपका वजन कम है। इस कसक को पूरा करने के लिए नौकरी छोड़ बेटी को खिलाड़ी बनाया।

Story of sacrifice and passion, Father left his job and taught Kabaddi to children, daughter win medal

खेल की दुनिया में खास पहचान रखने वाले रोहतक में एक पिता ऐसा भी है, जिन्होंने अपने बच्चों का भविष्य संवारने के लिए अपनी असिस्टेंट कमांडेंट की नौकरी तक छोड़ दी। बीएसएफ से वीआरएस लेने के बाद मकड़ौली कलां निवासी रणबीर सिंह ने खुद बच्चों को कबड्डी के गुर सिखाए। बेटी अक्षिमा ने कोच पिता से सीखे गुर व अपनी मेहनत के बूते एशियन गेम्स में टीम को स्वर्ण पदक दिलाने में अहम योगदान देकर खुद को साबित किया। एशियन गेम के लिए कम वजन होने के कारण भारतीय टीम का हिस्सा होने के बावजूद खेलने से वंचित रहे पिता को इस बेटी ने पदक के रूप में उनका सपना साकार करने का काम किया।

रणबीर सिंह कम वजन के कारण एशियन गेम में जाने से रहे वंचित
दरअसल, रणबीर सिंह कबड्डी के राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी रहे हैं। अपने खेल के दम पर ही वे बीएसएफ में सिपाही भर्ती हुए। खेल कोटे में भर्ती के बाद भारतीय टीम में जगह बनाने वाले यह खिलाड़ी हर पदक के साथ पदोन्नति प्राप्त करते हुए असिस्टेंट कमांडेंट पद पहुंचे। इसके बाद एशियन गेम्स में खेलने का मौका आया तो विशेषज्ञों ने यह कह कर मना कर दिया कि आपका वजन कम है।
उस समय इनका वजन करीब 58 किलोग्राम था। जबकि स्पर्धा के लिए 70 किलोग्राम से अधिक वजन होना चाहिए। बस यही कसक दिल में घर कर गई। इसके चलते वर्ष 2016 में वीआरएस ले ली। नौकरी छोड़ने के बाद तीन बेटियों में से दो बड़ी बेटियों की शादी की। फिर सबसे छोटे बेटे हैप्पी को कबड्डी का अभ्यास करवाना शुरू किया। इन्होंने बेटे में अपना सपना जीने का प्रयास किया।
अक्षिमा के खेल की स्पीड ने बदल दी सोच
रणबीर सिंह ने बताया कि एक दिन बेटे के साथ कबड्डी के अभ्यास के लिए जाते समय अक्षिमा ने भी साथ चलने को कहा। इस पर उसे भी साथ ले लिया। मैदान पर पहुंच कर वह भी साथ ही खेलने लगी। यहां उसका खेल और उसकी स्पीड देख कर दंग रह गया और उसे कबड्डी चैंपियन बनाना तय किया। वर्ष 2017 में 12वीं के बाद अक्षिमा ने कबड्डी खेलना शुरू किया और करीब एक साल बाद एमडीयू की ओर से ऑल इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स में स्वर्ण पदक लाई।
पहले ही साल में पदक लाने वाली अक्षिमा वर्ष 2018 में एमडीयू की टीम की कप्तान बन गई। दो साल टीम को लीड किया। विवि को पदक दिलाए। अब एशियन गेम में स्वर्ण पदक दिला कर पिता का सपना पूरा किया। बेटा हैप्पी भी बेहतर प्रदर्शन कर रहा है। फिलहाल अक्षिमा का लक्ष्य ओलंपिक में देश को पदक दिलाना है। इसके लिए कड़ा अभ्यास जारी है।