पंजाब और हरियाणा दिल्ली से सीखेंगे पराली प्रबंधन, हर जिले में बनेगा बायो डी कंपोजर केंद्र 

Parmod Kumar

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पराली जलाने की समस्या से परेशान हैं हरियाणा और पंजाब
दोनों राज्यों के अफसरों ने किया बायो डी कंपोजर तकनीक के जरिए पराली प्रबंधन का अध्ययन
दोनों राज्यों में पराली प्रबंधन को लेकर हर जिले में बायो डी कंपोजर केंद्र खोले जाएंगे पराली जलाने की समस्या से परेशान हरियाणा और पंजाब अब दिल्ली से सबक लेंगे। दोनों राज्यों के अफसर बायो डी कंपोजर तकनीक के जरिए पराली प्रबंधन का अध्ययन करने में जुट गए हैं। सब कुछ ठीक ठाक रहा तो दोनों राज्यों में पराली प्रबंधन को लेकर हर जिले में बायो डी कंपोजर केंद्र खोले जाएंगे। पराली की समस्या से निपटने के लिए हाल ही में हरियाणा और पंजाब से वरिष्ठ अधिकारियों का एक प्रतिनिधिमंडल दिल्ली गया था, जहां उन्होंने दिल्ली सरकार के मंत्री गोपाल राय से मुलाकात की थी। मुलाकात के दौरान बायो डी कंपोजर का छिड़काव कितना कारगर रहा, इस बारे में चर्चा भी की। साथ ही पराली जलाने के लिए खेतों में बायो डी कंपोजर छिड़काव कराने वाले किसानों से भी उनके अनुभव पता किए। इस महत्वपूर्ण दौरे के बाद अधिकारियों ने अपनी रिपोर्ट उच्च अधिकारियों को सौंप दी है। रिपोर्ट में बायो डी कंपोजर के आए परिणामों को साझा किया गया है। प्रतिनिधिमंडल में शामिल कुछ अधिकारियों ने बताया कि पराली प्रबंधन की दिशा में बायो डी कंपोजर के सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं। रिपोर्ट में अधिकारियों ने सरकार को इस तकनीक को बढ़ावा देने के लिए राज्य के हर जिले में बायो डी कंपोजर केंद्र खोलने की सलाह दी है। दोनों राज्यों की सरकार भी आने वाले धान के सीजन से पहले अपने-अपने राज्यों में ऐसे केंद्र खोलने का फैसला ले सकती हैं। क्या है तकनीक
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने पराली से खेत में ही सीधे खाद बनाने की बायो डी कंपोजर तकनीक विकसित की है। यह तकनीक पूसा डी कंपोजर कही जाती है। फसल वाले खेतों में तकनीक के तहत छिड़काव किया जाता है। 8-10 दिन में फसल के डंठल के विघटन को सुनिश्चित करने और जलाने की आवश्यकता को रोकने के लिए छिड़काव किया जाता है।

93 प्रतिशत जलाई जाती है पराली
हरियाणा में 38.5 लाख एकड़ पर और पंजाब में 26.60 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में हर साल धान की पैदावार की जाती है। यह क्षेत्रफल हर साल बढ़ता जा रहा है। इसके साथ ही पराली जलाने की घटनाएं भी बढ़ रही हैं। पंजाब में हर साल लगभग 200 लाख मीट्रिक टन पराली पैदा होती है जिसमें से 93 प्रतिशत पराली को जला दिया जाता है। वहीं हरियाणा में 600 लाख मीट्रिक टन पराली पैदा होती है। यहां 50 प्रतिशत पराली को आग के हवाले कर दिया जाता है। क्यों गंभीर हैं राज्य पराली प्रबंधन को लेकर हरियाणा और पंजाब के गंभीर होने की एक वजह केंद्र द्वारा पांच महीने पहले जारी किए गए एक अध्यादेश को भी माना जा रहा है। इस अध्यादेश में केंद्र सरकार ने प्रावधान किया है कि यदि दिल्ली-एनजीआर में प्रदूषण फैलाया जाता है तो एक करोड़ रुपये तक का जुर्माना और पांच साल की सजा भी हो सकती है।