सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को ओला, उबर, जोमैटो, स्विगी जैसे ऑनलाइन फूड डिलीवरी, कूरियर और टैक्स एग्रीगेटर्स एप्लिकेशन की ओर से नियोजित ‘गिग वर्कर्स’ के लिए सामाजिक सुरक्षा अधिकारों की मांग वाली एक रिट याचिका को लेकर केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है. न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति बीआर गवई की पीठ ने इंडियन फेडरेशन ऑफ ऐप बेस्ड ट्रांसपोर्ट वर्कर्स (आईएफएटी) की ओर से दायर रिट याचिका में ये नोटिस जारी किया.
याचिकाकर्ता संगठन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने कोर्ट से कहा कि हम एक घोषणा चाहते हैं कि ड्राइवर या डिलीवरी कर्मचारी वास्तव में कामगार शब्द में अर्थ वाले काम करने वाले हैं. दुनियाभर में उबर के लिए उन्हें श्रमिक माना जाता है. ब्रिटेन की सुप्रीम कोर्ट ने अनुबंध (उबेर और कर्मचारी के बीच) का विश्लेषण किया कि ये केवल एक छलावा है और वास्तविक संबंध कर्मचारी और नियोक्ता का है.
‘पहले से मौजूद कानूनों के तहत भी सुरक्षा के हकदार’
पीठ ने तब बताया कि पिछले साल संसद की ओर से पारित नए कानून सामाजिक सुरक्षा संहिता 2020 में ‘गिग वर्कर्स’ के कल्याण के लिए समर्पित एक अध्याय है. वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने जवाब दिया कि याचिकाकर्ता एक घोषणा की मांग कर रहे हैं कि ‘गिग वर्कर्स’ पहले से मौजूद कानूनों के तहत भी असंगठित श्रमिकों के रूप में सुरक्षा के हकदार हैं.
साथ ही कहा कि मैं आपका ध्यान मौजूदा कानून की ओर आकर्षित करना चाहती हूं. मौजूदा कानून के तहत भी वो असंगठित श्रमिकों के अंतर्गत आएंगे. कृपया असंगठित कर्मकार अधिनियम देखें. अगर आप एक असंगठित श्रमिक की परिभाषा देखें. धारा 2 (j). इसके बाद पीठ ने याचिका पर नोटिस जारी किया. याचिका में ये तर्क दिया गया है कि ‘गिग वर्कर्स’ और ‘प्लेटफॉर्म वर्कर्स’ सभी सामाजिक सुरक्षा कानूनों के अर्थ में ‘वर्कमैन’ की परिभाषा के अंतर्गत आते हैं. वहीं सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई अब अगले साल जनवरी 2022 में होगी.