स्वामी विवेकानंद एक ऐसा नाम है जिससे पूरी दुनिया भलीभांति परिचित है। उनका जन्म 12 जनवरी, 1863 को कलकत्ता में विश्वनाथ दत्त और माता भुवनेश्वरी देवी के यहां पर हुआ था। विवेकानंद के रूप में पहचान बनाने से पहले सभी उन्हें नरेन्द्रनाथ दत्त के नाम से जानते थे। उन्हें विवेकानंद का नाम राजस्थान के झुंझुनूं जिले के खेतड़ी के महाराजा अजीत सिंह ने दिया था। उन्हें अमेरिका भी भेजने का श्रेय महाराजा अजीत सिंह को ही जाता है। शिकागो में दिए भाषण से जो उनकी पहचान बनी वो अमर हो गई। खेतड़ी के महाराजा ने उन्हें अपना गुरू माना था। शिकागो के विश्व धर्म सम्मेलन में जाने का पूरा खर्च भी महाराजा अजीत सिंह ने ही उठाया था। शिकागो में दिए गए भाषण के बाद अमेरिकी मीडिया ने उन्हें साइक्लोन हिंदू का नाम दिया था।
आपको बता दें कि महज 25 वर्ष की आयु में स्वामी विवेकानंद ने भगवा धारण कर पैदल ही पूरे भारत का भ्रमण किया था। उन्होंने इसकी शुरुआत 31 मई 1893 को मुंबई से की थी। उनके जन्मदिन को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। उनके बारे में कहा जाता है कि एक बार एक व्यक्ति ने उनके चरणों में गिरकर पूछा कि वो बहुत मेहनत करता है इसके बाद भी उसे उसको सफलता नहीं मिल पाती है। इस पर स्वामी जी ने कहा कि पहले तुम अपने कुत्ते को घुमाकर ले आओ, फिर में इस सवाल का जवाब दूंगा। ये सुनकर वो व्यक्ति वहां से चला गया। कुछ देर बाद वो व्यक्ति वापस आया तो उसका कुत्ता काफी हांफ रहा था। इस पर स्वामी जी ने पूछा कि ये इतना हांफ क्यों रहा है जबकि तुम बिल्कुल ठीक हो। तब उस व्यक्ति ने कहा कि मैं तो अपने सीधे रास्ते पर चल रहा था जबकि ये इधर-उधर भाग रहा था। इस पर स्वामी जी ने कहा कि यही आपके सवाल का भी जवाब है। जब आप अपने लक्ष्य को तय कर उस पर सीधा आगे बढ़ते हो तो सफलता हासिल होती है नहीं तो केवल थकान ही होती है। इस पर उस व्यक्ति ने स्वामी जी के चरण पकड़ लिए और कहा कि आगे से वो इस बात का पूरा ध्यान रखेगा।