टीनएज ना सिर्फ़ बच्चे के लिए बल्कि माता-पिता के लिए भी चुनौती के रूप में सामने आती है। क्या मुश्किलें, कैसी समस्याएं सामने आती हैं, इनको समझने की कोशिश हम इस लेख में करेंगे…

Parmod Kumar

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‘मम्मी-पापा से छोटी-बड़ी बातों पर विवाद करना, उनकी बातों को अनदेखा करना, घर के नियमों पर सवाल उठाना और पलटकर जवाब देना, अब तो जैसे यह रोज़मर्रा की बात हो गई है। इसके चलते 15 वर्षीय रोहन और उसके मम्मी-पापा के बीच तनावपूर्ण माहौल बना ही रहता है। नतीजा : कभी रोहन ख़ुद को कमरे में बंद कर लेता है, तो कभी छोटी बहन पर ग़ुस्सा निकालता है।’ ऐसी ही या मिलती-जुलती तस्वीर शायद हर उस परिवार की होती है, जहां किशोरावस्था से गुज़रता कोई सदस्य होता है। किशोरावस्था समय है परिवर्तन का, जब शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक, सामाजिक- कई तरह के बदलाव हो रहे होते हैं। किसी भी प्रकार का बदलाव सामंजस्य से जुड़ी चुनौतियां तो लाता ही है। किशोरों की परवरिश भी इससे अछूती नहीं है। इन चुनौतियों को कुछ माता-पिता अच्छी तरह संभाल लेते हैं, तो कुछ के लिए ये विकट स्थितियां पैदा कर देती हैं। कई बार परवरिश से जुड़ी ये चुनौतियां गंभीर समस्याओं का रूप ले लेती हैं और मानसिक स्वास्थ्य को बुरी तरह प्रभावित करती हैं। इस तरह का व्यवहार इतना आम क्यों होता है? किशोर इस तरह की विद्रोही प्रवृत्ति क्यों दिखाते हैं? क्या इन स्थितियों को बेहतर तरीक़े से संभाला जा सकता है? अभिभावकों को कब सचेत हो जाना चाहिए? ऐसे कई प्रश्न मन में कौंध जाते हैं।
मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से समझें, तो इस क्षेत्र के जाने-माने विशेषज्ञ एरिक एरिकसन ने विकास के इस चरण को स्वतंत्र पहचान निर्माण का समय माना है। इसमें भूमिका होती है बढ़ती शारीरिक, बौद्धिक और सामाजिक क्षमताओं की। मस्तिष्क और हॉर्मोन संबंधी विकास का यह दौर भावनात्मक अस्थिरता भी पैदा करता है। कुल मिलाकर, किशोरवय लड़के/लड़की के रूप में हमारे सामने आता है परिपक्वता की ओर बढ़ रहा एक व्यक्तित्व, जिसके पास नए विचार होते हैं तो वह वैचारिक भिन्नता भी दिखाता है। ख़ुद निर्णय लेने की तत्परता में ग़ुस्से से भरा व्यवहार और असहमति दिखाना भी शुमार हो जाता है। नए शौक़ और दोस्तों में दिलचस्पी के बीच घर के नियमों को लेकर सवाल उठाना, आपत्ति जताना सामान्य बात हो जाती है। यहां से शुरू होती है अभिभावकों के लिए असमंजस की स्थिति। बहरहाल, यदि सकारात्मक माहौल और सूझबूझ से इस स्थिति को संभाला जाए, तो बच्चे इस दौर में कई जीवन कौशल सीख सकते हैं। जीवन में कई ऐसे मौक़े आते हैं, जब भावनात्मक संतुलन बनाए रखते हुए परिस्थितियों और विविधताओं के साथ तालमेल बनाने की ज़रूरत पड़ती है। कई बार ‘नहीं’ बोलना पड़ता है और ‘नहीं’ सुनना भी पड़ता है। यानी दृढ़ता से अपनी बात रखना और रिजेक्शन को स्वीकार करना भी ज़रूरी हो जाता है। किशोरों के ग़ुस्से से भरे व्यवहार को धैर्य से संभाला जाए तो उनमें सही-ग़लत का आकलन, ज़रूरत और इच्छा में अंतर करना, प्राथमिकता तय करना, शांत लेकिन प्रभावी ढंग से अपनी बात रखना, असहमति जताना जैसे कई कौशलों का विकास संभव है।बढ़ते हुए बच्चों के अभिभावक उम्र के इस पड़ाव में आने वाले परिवर्तनों को लेकर समस्या होने से पहले से ही जागरूक रहें, तो इन स्थितियों को बेहतर तरीक़े से संभाला जा सकता है। – मूल रूप से शारीरिक, मानसिक और सामाजिक बदलाव का यह दौर व्यवहारगत समस्या और सामंजस्य में कमी के रूप में सामने आता है। लेकिन अभिभावक हमेशा ध्यान रखें, हर समस्या का समाधान संभव है। – अभिभावक होने के नाते संतान से अपेक्षा स्वाभाविक है, किंतु ख़्याल रहे, यह इतनी अधिक भी न हो कि बच्चे के लिए दबाव और तनाव का सबब बन जाए। – यह स्वीकार करें कि आपका और आपके किशोरवय बच्चे का व्यक्तित्व, रुचि, पसंद-नापसंद अलग हो सकते हैं। भले ही किशोर बड़े हो रहे हैं और उनके सामाजिक दायरे का विकास हो रहा है, लेकिन माता-पिता के साथ, भरोसे और मार्गदर्शन की उन्हें हमेशा ज़रूरत होती है। इसलिए प्रोत्साहन की ऊर्जा बनाए रखें। – आज़ादी और नियमों का एक संतुलित वातावरण हो। नियमों के पीछे कारण बताना अच्छा होगा। माता-पिता दोनों ही समान तरीक़े से स्वतंत्रता और नियमों को लागू करें, तो अनुशासन और व्यवस्था बनाए रखने में आसानी होगी। यानी कोई एक भी ढील न दे। – घर में संवाद का सकारात्मक माहौल बनाकर रखना बेहद ज़रूरी है। बच्चों को उम्र के मुताबिक़ ज़िम्मेदारी देना, छोटे-मोटे निर्णय लेने के अवसर देना, उनके विचार/राय को सुनना और सबसे ज़रूरी है जब बच्चे बात करने आएं तो उन्हें प्राथमिकता देना। जानने की कोशिश करें कि कहीं वे किसी प्रकार के तनाव का सामना तो नहीं कर रहे। – दूसरों के सामने उनकी कमी की चर्चा करने से बचें। हीन भावना या दबा हुआ आक्रोश विद्रोही प्रवृत्ति को बढ़ा सकता है। – सज़ा, डांट, पिटाई आदि तरीक़े समस्या को बढ़ा सकते हैं। इनसे यथासंभव बचा जाना चाहिए। – आपके किशोरवय पुत्र/पुत्री का व्यवहार आपको कितना भी उत्तेजित करे, आपके लिए ज़रूरी है अपना धैर्य बनाए रखना और अपने ग़ुस्से पर नियंत्रण रखना। आपका ख़ुद का शांतिपूर्ण-संयमित व्यवहार किशोरों को संतुलित व्यवहार सिखाने में मददगार हो सकता है। – यदि बच्चे में लगातार चिड़चिड़ाहट, आक्रामकता, कहना ना मानने, उदासी जैसे व्यवहार और ख़ुद को नुक़सान पहुंचाने की प्रवृत्ति दिखे, तो अवश्य किसी मनोविशेषज्ञ की सलाह लें। चुनौतियां कई आती हैं। अभिभावक-किशोरवय पुत्र/पुत्री का संबंध मुश्किल भी है। लेकिन चुनौतियों में ही अवसर छिपे होते हैं। धीरज के साथ, सक्रिय और सकारात्मक तरीक़े से समाधान खोजे जा सकते हैं।