राजस्थान में तहसीलदार दिलीप सिंह प्रजापति को किया सस्पेंड, कहा बहनों से संपत्ति का ‘हक’ त्याग करवाकर रक्षाबंधन को यादगार बनाए।

Parmod Kumar

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राजस्थान में कोटा जिला के दीगोद तहसीलदार दिलीप सिंह प्रजापति को रक्षाबंधन के मौके पर प्रेस रिलीज जारी करना महंगा पड़ गया। प्रेस रिलीज के पत्र में तहसीलदार ने बहनों से पिता की संपत्ति में स्वैच्छिक हक ‘छीनकर’ भाइयों को रक्षाबंधन का त्यौहार यादगार बनाने की बात कही थी। जिससे तहसीलदार का पत्र सोशल मीडिया पर वायरल होने लगा। महिला संगठनों ने आपत्ति जताई। वहीं, इलाके में महिलाएं भी तहसीलदार की खरी-खोटी करने लगीं। जिसके बाद शासन-प्रशासन की तरफ से सफाई दी जाने लगी और आखिर में तहसीलदार दिलीप सिंह प्रजापति को सस्पेंड कर दिया गया। सस्पेंड होने के बाद भी दिलीप सिंह अपने आप को सही ठहरा रहे हैं और कह रहे हैं कि मैं महिला विरोधी नहीं हूं, मैंने तो भाई-बहन में मनमुटाव न होने देने वाली अपील लोगों से की थी। अब अपने शहर में लीजिए सबसे बेहतरीन एसयूवी की टेस्ट ड्राइव – यहां क्लिक करें आइए जानते हैं क्या है यह पूरा मामला, और जो पत्र तहसीलदार ने जारी किया, उसमें क्या लिखा है? पैतृक संपत्ति में महिलाओं को कौन-कौन से अधिकार मिलते हैं?

Tehsildar Dilip Singh Prajapati Suspended

दीगोद तहसील के तहसीलदार का मामला दीगोद तहसील के तहसीलदार दिलीप सिंह प्रजापति ने बीते 21 अगस्त को पत्र जारी किया। इसमें लिखा गया कि रक्षाबंधन के मौके पर बहनें, भाइयों के लिए पैतृक संपत्ति में अपना हक त्याग दें। तहसीलदार ने पत्र में लिखा कि जब किसी खातेदार की मृत्यु हो जाती है, तो उसके उत्तराधिकारी के तौर पर पत्नी, बेटों और बेटियों का नाम दर्ज हो जाता है। महिलाएं तो स्वैच्छिक तौर पर अपना अधिकार त्यागना चाहती हैं, लेकिन उनके परिवार वाले लापरवाही के चलते समय पर यह कदम नहीं उठाते हैं, जिससे बहुत से भाई-बहनों में जिंदगी भर के लिए खटास आ जाती है।” ‘रक्षाबंधन को यादगार बनाइए, बहनों से स्वैच्छिक हक त्याग करवाइए’ ‘रक्षाबंधन को यादगार बनाइए, बहनों से स्वैच्छिक हक त्याग करवाइए’ शीर्षक से जारी किए पत्र में तहसीलदार ने आगे लिखा कि ‘देश के कई हिस्सों में एक परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है कि महिलाएं अपनी पैतृक की बजाय ससुराल की संपत्ति में हिस्सा लेती हैं। वहीं, समय पर स्वैच्छिक त्याग ना कराने पर कई बार ऐसा होता है कि सरकार वो जमीन खरीद लेती है। ऐसे में चेक बहन-बेटियों के नाम जारी हो जाता है। कई बार ये बहन-बेटियां चेक का पैसा अपने पास रख लेती हैं और उनके भाइयों को कुछ नहीं मिलता।” ‘पब्लिक को ऐसी जानकारी देना मेरे कर्तव्यों में आता है’ तहसीलदार दिलीप के पत्र में लिखा गया कि, समय पर बहन-बेटियों का नाम उत्तराधिकारियों की लिस्ट से ना हटने पर मामले अदालत तक पहुंच जाते हैं.. कहीं-कहीं तो हत्या भी हो जाती है। ऐसे में ये जरूरी हो जाता है कि… भाई-बहन आपसी रिश्ते को मजबूत करने के लिए महिलाओं से पैतृक संपत्ति में “स्वैच्छिक त्याग” करें/कराएं। प्रजापति ने कहा कि, पब्लिक को ऐसी जानकारी देना मेरे कर्तव्यों में आता है। मेरे सामने रोज ऐसे केस आते हैं, जिसमें बहनें हक त्यागना चाहती हैं, लेकिन खातेदार समय पर हक त्याग नहीं करवाते। यह क्षणिक लापरवाही बाद में पारिवारिक कलह का रूप ले लेती है।”

‘मैंने सिर्फ समाज की भलाई के लिए ऐसा पत्र जारी किया’ तहसीलदार दिलीप ने कहा कि, मैंने सिर्फ समाज की भलाई के लिए ऐसा पत्र जारी किया था, लेकिन इसी बात पर मेरी छवि बिगाड़ने की कोशिश की जा रही है। जबकि मेरी छवि एक ईमानदार और कर्मठ कर्मचारी की रही है। मेरे पत्र में कुछ भी महिला विरोधी नहीं है, मैंने केवल उन भाइयों से अपील की थी, जिनकी बहनें स्वेच्छा से अपनी पैतृक संपत्ति का हक त्यागना चाहती हैं लेकिन वो लापरवाही बरत रहे हैं। मेरी इस अपील को तो आमजन ने बहुत सराहा है। लोग इस अपील के बाद स्वेच्छा से अपना हक त्यागने के लिए तैयार बहनों से जल्द से जल्द कानूनी प्रक्रिया भी पूरी कराएंगे। और, सरकार को भी आसानी होगी क्योंकि इन मामलों में फिर मुकदमे दायर नहीं होंगे। अदालत में चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे।” महिलाओं संगठनों ने बताया- शर्मनाक उधर, महिला संगठनों का कहना है कि, ‘तहसीलदार ने शर्मनाक बयान दिया है। “विकल्प” एनजीओ की चीफ प्रमुख ऊषा चौधरी ने कहा कि, आखिर रिश्ते बचाने के नाम पर केवल महिलाएं ही क्यों अपने प्रॉपर्टी छोड़ें? कानून के मुताबिक पैतृक संपत्ति में महिलाओं को बराबर का हक मिला हुआ है। तहसीलदार ने जो किया है, वो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है। तहसीलदार की तरफ से लिखा गया पत्र हिंदू उत्तराधिकार संशोधन अधिनियम, 2005 का भी उल्लंघन है। उूषा बोलीं कि, समाज हित में तहसीलदार की जिम्मेदारी है कि वे इन तमाम कानूनों का पालन कराएं। लेकिन वे तो उल्टा ही कानूनों का उल्लंघन करने की अपील कर रहे हैं।” मुजफ्फरनगर दंगा: 77 अपराधिक मामले यूपी सरकार ने लिए वापस, नहीं बताया कोई कारण आखिर में सस्पेंड कर दिए गए तहसीलदार वहीं, कुछ वकीलों ने भी तहसीलदार के पत्र को महिलाओं के अधिकार छीनने वाला बताया। एक वकील केवी उपाध्याय ने कहा कि, “दीगोद तहसील के तहसीलदार दिलीप सिंह प्रजापति के उक्त पत्र में उनका पर्सनल बायस दिखता है। ऐसा पत्र सुप्रीम कोर्ट की अवमानना है। जहां, सुप्रीम कोर्ट कहता है कि भाई-बहन सब बराबर हैं…वहीं ये कह रहे हैं कि बहनें अपने अधिकार भाइयों को दे दें। उनका कहना है कि परिवार में झगड़ा रोकने के लिए बहनें अपना अधिकार छोड़ दें, लेकिन झगड़ा ही रोकना है, तो क्यों न भाई अपने अधिकार छोड़ दें।”