कुछ किसान संगठनों का कृषि सुधार कानून विरोधी आंदोलन कोमा में जाने लगा है। इसके कई कारण हैं, लेकिन सबसे प्रमुख आंदोलन के नेताओं में उभरा मतभेद और मनभेद है। अब कोरोना संक्रमण को लेकर भी उनके अलग-अलग बयान आ रहे हैं। इनमें से हरियाणा के कुछ जिलों में प्रभाव रखने वाली भारतीय किसान यूनियन (चढ़ूनी) के अध्यक्ष गुरनाम सिंह चढूनी ने हास्यास्पद बात कही है। उनके अनुसार, ‘कोरोना जैसी कोई बीमारी नहीं है। यह तो एक बहुत बड़ा घोटाला है, जो सरकार कर रही है, लोगों का हार्मोन परिवíतत करने के लिए। जो भी व्यक्ति कोरोना से बचाव के लिए वैक्सीन लेगा, उसके हार्मोन बदल जाएंगे। वह सरकार के पक्ष में हो जाएगा।’ यह बात किसी की समझ में नहीं आ रही है। राकेश टिकैत तो चढू़नी के बयान से दो दिन पहले ही सरकार से यह आग्रह कर चुके थे कि धरनास्थलों पर आंदोलनकारियों को वैक्सीन लगवाने की सरकार को व्यवस्था करनी चाहिए। हरियाणा सरकार ने कुंडली बॉर्डर (सोनीपत) और टीकरी बॉर्डर (झज्जर) पर ऐसी व्यवस्था कर भी दी है। वहां कोरोना संक्रमण की जांच की भी सुविधा है, लेकिन आंदोलनकारियों को मंच से वैक्सीन लेने से मना किया जा रहा है। यह बात अलग है कि भारतीय किसान यूनियन एकता उगराहां के अध्यक्ष जोगेंद्र सिंह उगराहां कोरोना संक्रमित हो गए तो उनके संगठन के फेसबुक पेज पर अपील जारी हो गई कि जिनमें लक्षण दिखें, वे अपनी जांच जरूर करा लें। अब आंदोलनकारी किसकी बात मानें, चढ़ूनी की या टिकैत की या फिर उनकी जो जांच कराने की बात तो कहते हैं, लेकिन वैक्सीन पर मौन साधे हुए हैं। टीकरी बॉर्डर पर धरनास्थलों पर कुछ ही लोग बचे हैं, जो ईंटों की दीवार बना रहे हैं, बोरिंग कर रहे हैं। विचारणीय है कि आंदोलनकारी नेताओं के बीच मतभेद केवल वैक्सीन अथवा कोरोना को लेकर ही नहीं है। थोड़ा-सा अतीत में लौटें तो राजनीतिक दलों से संबंध रखने के आरोप में जब संयुक्त किसान मोर्चे की सात सदस्यीय कमेटी ने चढ़ूनी पर कार्रवाई का फैसला किया तो उसकी घोषणा मध्य प्रदेश के किसान नेता शिवकुमार शर्मा उर्फ कक्का से कराई गई। सात सदस्यीय समिति में चढ़ूनी भी शामिल थे, लेकिन वह बैठक में अनुपस्थित थे। इसके बाद चढ़ूनी ने कक्का पर आरोपों की बौछार कर दी थी। बाद में सुलह हुई, लेकिन वह क्या है कि कमान से निकले तीर और जुबान से निकली बात वापस नहीं लौटती। वैसे भी टूट जाने के बाद धागा नहीं जुड़ता है। जुड़ता है तो गांठ पड़ जाती है। गांठ पड़ी भी और दिन प्रतिदिन मजबूत होती गई। एक और घटना का उल्लेख जरूरी है। देशद्रोह के आरोप में बंद शरजील इमाम और उमर खालिद सहित कई लोगों की रिहाई की मांग के पोस्टर टीकरी बॉर्डर पर लगे थे। तब उगराहां गुट ने कहा था कि इसमें कुछ भी गलत नहीं है। हमारे मांग पत्र में यह सातवें नंबर पर दर्ज है। दूसरी तरफ भारतीय किसान यूनियन (टिकैत) के राष्ट्रीय अध्यक्ष राकेश टिकैत के बड़े भाई नरेश टिकैत ने स्पष्ट किया था कि इस तरह की किसी मांग का समर्थन हम नहीं करते हैं। एक और घटना का जिक्र आवश्यक है। राकेश टिकैत आंसू बहाकर हीरो बन गए और हरियाणा के आंदोलनकारियों में उनकी लोकप्रियता उछाल मारने लगी तो चढ़ूनी ने टिकैत की आलोचना करते हुए अपना एक वीडियो जारी कर दिया। हालांकि बाद में वह उस वीडियो से मुकर गए, लेकिन किसी ने उनकी बात पर विश्वास नहीं किया। यह बात अलग है कि राकेश टिकैत के कुछ कार्यक्रमों में वह शामिल हुए तो कुछ में जाने से परहेज किया। जिनमें साथ भी रहे उनमें उन्होंने राकेश टिकैत से दूरी बनाकर रखी। रही बात पंजाब के नेताओं की तो उन्होंने राकेश टिकैत को तब वरीयता देनी शुरू की, जब उनकी वजह से आंदोलन पुन: उठ खड़ा हुआ। उसके पहले संयुक्त किसान मोर्चे की सात सदस्यीय कोर कमेटी में टिकैत के संगठन का कोई प्रतिनिधि नहीं था। बाद में कमेटी को नौ सदस्यीय किया गया और टिकैत की यूनियन को प्रतिनिधित्व दिया गया। पंजाब के संगठनों को ऐसा करना इसलिए भी जरूरी लगा, क्योंकि अधिकतर आंदोलनकारी वापस लौटने लगे थे। पंजाब के आंदोलनकारी नेताओं की बात करें तो गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में हुए उपद्रव के बाद सरवन सिंह पंधेर से अन्य नेताओं ने दूरी बना ली थी, क्योंकि उनके लोगों पर आरोप है कि वे दिल्ली में तय रूट पर न जाकर अलग रूट पर गए और हिंसा का कारण बने। बलबीर सिंह राजेवाल से भी हरियाणा के लोग तभी खफा हो गए थे जब उन्होंने दिल्ली में हिंसा का मिथ्यारोप हरियाणवी युवाओं पर जड़ दिया था। अभी स्थिति यह है कि टिकैत बंगाल घूम रहे हैं। शिवकुमार शर्मा उर्फ कक्का जी मध्य प्रदेश जा चुके हैं। चढूनी को गंभीरता से लिया नहीं जा रहा। जो बचे हैं, एक खास विचारधारा के हैं। वे सड़कों पर पक्के निर्माण और बोरिंग कर सरकार से टकराव मोल लेना चाहते हैं। ताकि सरकार बलप्रयोग करे और वे अपने कुत्सित इरादों में कामयाब हो जाएं।