धान की पराली जलाने से होने वाले नुकसान को अब किसान भी समझने लगे हैं. कृषि वैज्ञानिकों और सरकार के प्रयासों से उन्हें यह पता चल गया है कि इसे जलाने से उनके खेत की उर्वरा शक्ति को नुकसान पहुंचेगा. साथ ही कार्रवाई अलग से होगी. इसलिए उन्होंने अब मशीनों और पूसा डी-कंपोजर (Pusa Decomposer) से इसका प्रबंधन करना शुरू कर दिया है. भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि पराली जलाने की घटनाएं पिछले साल के मुकाबले कितनी कम हो गई हैं. इस मामले में सबसे शानदार काम दिल्ली और राजस्थान ने किया है.
कृषि वैज्ञानिकों ने 2020 और 2021 में 15 सितंबर से 8 अक्टूबर तक पराली जलाने की घटनाओं का विश्लेषण किया है. इसके मुताबिक पंजाब में पिछले साल भी सबसे ज्यादा पराली जलाने (Stubble Burning) की घटनाएं हो रही थीं और इस साल भी हो रही हैं. साल 2020 में इस अवधि के दौरान पंजाब में पराली जलाने की कुल 2227 घटनाएं दर्ज की गई थीं. जबकि इस साल सिर्फ 500 रह गई हैं. ऐसा सरकार, किसानों और कृषि वैज्ञानिकों के सामूहिक प्रयास से ही संभव हो पाया है.
अन्य राज्यों का क्या है हाल?
-साल 2020 में हरियाणा में पराली जलाने की 268 केस सामने आए थे. जबकि इस बार सिर्फ 62 रह गए हैं.
-उत्तर प्रदेश में 2020 में पराली जलाने की 167 घटनाएं हुई थीं. जबकि इस साल सिर्फ 76 हुई हैं.
-2020 में पूरे राजस्थान में पराली जलाने की 99 घटनाएं थीं, जबकि इस बार सिर्फ 2 रह गई हैं.
-साल 2020 में मध्य प्रदेश में 143 घटनाएं थीं. जबकि इस बार अब तक सिर्फ 13 हुई हैं.
-2020 में दिल्ली में इस अवधि के दौरान पराली जलाने की 3 घटनाएं थीं. लेकिन इस एक भी घटना नहीं है.
(15 सितंबर से 8 अक्टूबर तक)
आठ अक्टूबर को कितनी घटनाएं
-कुल 148 जगहों पर पराली जलाने की घटनाओं की जानकारी मिली है.
-पंजाब में सबसे अधिक 108 जगहों पर पर.
-यहां के तरनतारन में 34 और अमृतसर 30 केस रिपोर्ट किए गए हैं. –
-पटियाला में 10 एवं कपूरथला में 9 घटनाएं सामने आई हैं.
-हरियाणा में 27 केस सामने आए हैं.
-जिसमें करनाल में सबसे अधिक 10 हैं. कुरुक्षेत्र में 7, कैथल में 5, जींद में 2 घटनाएं हुई हैं.
-अंबाला, पानीपत और यमुनानगर में एक-एक केस सामने आए हैं.
-मध्य प्रदेश पराली जलाने की सिर्फ 2 घटनाएं सामने आई हैं.
-दिल्ली और राजस्थान में एक भी केस नहीं है.
डी-कंपोजर: सबसे बेहतरीन विकल्प
पराली निस्तारण के लिए 50 रुपये का पूसा डी-कंपोजर कैप्सूल किसानों के लिए सबसे अच्छा विकल्प है. इसके चार कैप्सूल से एक हेक्टेयर खेत की पराली सड़कर खाद बन जाती है. खेत में फसल अवशेषों के प्रबंधन से मिट्टी को और भी अधिक उर्वर बनाने में मदद मिलती है.
12 कंपनियों को दिया गया है लाइसेंस
पराली निस्तारण के लिए पूसा डी-कंपोजर का दाम पहले 20 रुपये (4 कैप्सूल) था. जिसमें वृद्धि करके अब 50 रुपये कर दिया गया है. कृषि मंत्रालय (Ministry of Agriculture) के मुताबिक पूसा डिकंपोजर के व्यापक मार्केटिंग के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने 12 कंपनियों को इस प्रौद्योगिकी का लाइसेंस दिया है. इसके अलावा संस्थान ने अपनी स्वयं की सुविधाओं पर किसानों के उपयोग के लिए इसके करीब 20,000 पैकेटों का उत्पादन किया है.