त्योहारों के सीजन में आम आदमी को राहत देने के लिए केंद्र सरकार ने बड़ा कदम उठाते हुए दालों को लेकर नया आदेश जारी किया है. सरकार ने सभी राज्यों को दाल पर लगी हुई स्टॉक लिमिट का सख्ती से पालन कराने के निर्देश दिए है. 17 राज्यों में 217 व्यापारियों के पास स्टॉक लिमिट से ज्यादा दाल है. आपको बता दें कि दलहन और तिलहन का बड़ा उत्पादक देश होने के बावजूद भारत को विदेशों से दाल आयात करना पड़ता है. यहां दाल उत्पादन की बात करें तो वर्ष 2019-20 में तूर की दाल 38.90 मीट्रिक टन, उड़द की दाल 20.80 मीट्रिक टन, मसूर की दाल 11 मीट्रिक टन, मूंग की दाल 25.10 मीट्रिक टन और चना की दाल 118 मीट्रिक टन रहा था. इसी वर्ष तूर, उड़द, मसूर, मूंग और चना की दाल क्रमश: 4.50 मीट्रिक टन, 3.12 मीट्रिक टन, 8.54 मीट्रिक टन, 0.69 मीट्रिक टन और 3.71 मीट्रिक टन दूसरे देशों से आयात करनी पड़ी थी.
…तो क्या अब त्योहारी सीजन में नहीं बढ़ेंगे दाल के दाम
सरकार दालों की कीमतों को लेकर फुल एक्शन में आ गई है. सभी राज्यों को चिट्ठी लिख दाल की स्टॉक लिमिट का पालन कराने के निर्देश दिए है. 17 राज्यों में 217 व्यापारियों के पास स्टॉक लिमिट से ज्यादा दाल है. अब तक व्यापारियों ने 31 लाख मैट्रिक टन दाल का स्टॉक घोषित किया है. सरकार ने 500 मेट्रिक टन दाल की स्टॉक लिमिट लगाई हुई है.अब तक 7.59 मैट्रिक टन दाल का आयात हुआ.
विदेशों से दाल खरीद रही है सरकार
बफर स्टॉक बनाने के लिए सरकार दाल आयात करेगी. सरकार ने 1 लाख टन मसूर दाल के आयात का ऑर्डर दिया. रूस से भी दालों का आयात करेगी.
वहीं, पिछले वित्तीय वर्ष 2020-21 की बात करें तो वर्ष 2019-20 में देश में तूर की दाल 38.80 मीट्रिक टन, उड़द की दाल 24.50 मीट्रिक टन, मसूर की दाल 13.50 मीट्रिक टन, मूंग की दाल 26.20 मीट्रिक टन और चना की दाल 116.20 उत्पादित की गई थी.
जबकि तूर, उड़द, मसूर, मूंग और चना की दाल क्रमश: 4.40 मीट्रिक टन, 3.21 मीट्रिक टन, 11.01 मीट्रिक टन, 0.52 मीट्रिक टन और 2.91 मीट्रिक टन की मात्रा में आयात करना पड़ा था.
बड़ा उत्पादक होने के बावजूद कम पड़ जाती हैं दाल-प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में 5 वर्ष पहले जब केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मोजांबिक से दलहनों के दीर्घावधिक आयात संबंधित एमओयू को मंजूरी दी थी, तभी कहा गया था कि अगले 5 वर्षों में आयात दोगुना किया जाएगा.
हालांकि, भारत दुनिया में दलहनों का सबसे बड़ा उत्पादक देश है, लेकिन अपनी घरेलू मांग को पूरा करने के लिए देश को हर वर्ष लाखों टन दाल की कमी पड़ती है. कभी सूखे के कारण तो कभी अन्य कारणों से घरेलू उत्पादन में गिरावट दर्ज की जाती रही है.