पंजाब में धान की खरीद (Paddy Procurement) को लेकर ‘खेला’ शुरू हो गया है. खरीफ मार्केटिंग सीजन (KMS) 2021-22 में 11 नवंबर तक 165.18 लाख मिट्रिक टन की खरीद हो चुकी है. सरकार ने 11 नवंबर से धान की खरीद बंद करने का आदेश जारी किया है. इसके बावजूद आवक जारी है. अब तक मंडियों में कम से कम 190 लाख टन उपज आ चुकी है. बताया जा रहा है कि अभी भी और आवक होनी है. संयोग से किसान आंदोलन (Farmers Protest) के बीच यह चुनावी सीजन भी है. विधानसभा चुनाव सिर पर हैं. इसलिए राज्य सरकार ने केंद्र पर खरीद का लक्ष्य बढ़ाने के लिए दबाव बनाना शुरू कर दिया है.
राज्य के खाद्य और नागरिक आपूर्ति मंत्री भारत भूषण आशु ने केंद्रीय खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय से खरीद लक्ष्य को बढ़ाकर 191 लाख टन करने का अनुरोध किया है. जबकि केंद्र ने पिछले कुछ वर्षों में कथित फर्जी बिलिंग को देखते हुए इस साल 168.65 लाख टन धान खरीदने का ही टारगेट दिया है. हालांकि, पंजाब कृषि विभाग ने केंद्र को 197 एलएमटी धान उत्पादन का अनुमान दिया था. ऐसे में देखना ये है कि केंद्र सरकार इसकी अनुमति देती है या नहीं. फिलहाल बताया जा रहा है कि राज्य सरकार केंद्र को खरीद लक्ष्य में वृद्धि करने का रिमाइंडर भेजेगी.
पिछले साल उत्पादन से अधिक हुई थी खरीद
खरीफ मार्केटिंग सीजन (KMS) 2020-21 के दौरान पंजाब में उत्पादन से अधिक खरीद हुई थी. इस पर केंद्र ने सवाल भी उठाए थे. बताया गया था कि सूबे में धान की कुल पैदावार 1.82 करोड़ टन हुई थी. जबकि पंजाब ने 202.82 लाख मीट्रिक टन धान खरीदा. यानी उत्पादन से करीब 20 लाख टन ज्यादा धान सरकार को बेच दिया गया. पंजाब के 14,89,986 किसानों को इतना धान बेचकर न्यूनतम समर्थन मूल्य के रूप में 38,284.86 करोड़ रुपये मिले थे.
क्या है आरोप
भारतीय खाद्य निगम (FCI) के कुछ अधिकारी ऐसा मानते हैं कि पंजाब (Punjab) और हरियाणा (Haryana) दोनों राज्यों में काफी ऐसा धान भी खरीदा जाता है जो यूपी, बिहार से कम दाम पर लाया जाता है. आढ़तिया, राइस मिलर और अधिकारी सब इस खेल में शामिल होते हैं. हालांकि, अब कई राज्यों में फसलों की बुवाई के हिसाब से किसानों से धान खरीदने का कोटा तय होने लगा है. यह भी तर्क दिया जा रहा है कि सरकारी अनुमान से अधिक धान पैदा होता है इसलिए ऐसा लगता है कि उत्पादन से अधिक धान की खरीद हो रही है.













































