बम-बम भोले, हर-हर महादेव के जयकारे लगाते हुए गंगातट से कांवड़ भरकर लौटने लगे कांवड़िया !

parmod kumar

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अंचल में कांवड़ भरने का महत्व है। अमूमन अंचल के शिवभक्त सौरो व हरिद्वार के गंगातट के कांवड़ भरकर लाते हैं। अपने गांव व शहर के प्राचीन मंदिर उसी गंगाजल से अभिषेक कर देवाधिदेव महादेव से मनवांछित फल की कामना करते हैं।

कुछ श्रद्धालु किसी कामना व कुछ मनोकामना पूर्ण होने पर कांवड़ भरकर गंगा तट से लाते हैं। कावंड लाना एक कठोर तप है। कावंड़िये पूरा सफर पैदल नंगे पैर पूर्ण करते हैं। वर्ष में दो बार कांवड़ भरने का महत्व है, इसमें पहला श्रावण मास व दूसरा महाशिवरात्रि पर है।

 

 

अंचल में कांवड़ भरने का महत्व है। अमूमन अंचल के शिवभक्त सौरो व हरिद्वार के गंगातट के कांवड़ भरकर लाते हैं। अपने गांव व शहर के प्राचीन मंदिर उसी गंगाजल से अभिषेक कर देवाधिदेव महादेव से मनवांछित फल की कामना करते हैं।

कुछ श्रद्धालु किसी कामना व कुछ मनोकामना पूर्ण होने पर कांवड़ भरकर गंगा तट से लाते हैं। कावंड लाना एक कठोर तप है। कावंड़िये पूरा सफर पैदल नंगे पैर पूर्ण करते हैं। वर्ष में दो बार कांवड़ भरने का महत्व है, इसमें पहला श्रावण मास व दूसरा महाशिवरात्रि पर है।