आगरा के किसान कारीगर महेश और माला देवी ने एनबीटी को बताया कि बताया कि बिहार के बासों में गांठें बहुत नजदीक होती हैं, जबकि असम और उत्तराखंड के बसों की गांठों में काफी दूर होती है। किसान आंदोलन में बैठीं महिलाएं
किसान आंदोलन में रचनात्मक कला भी देखने को मिल रही है। किसान कारीगरों ने बांस के सहारे बेहद लुभावने 4 फव्वारे बनाए हैं। उसमें असम और उत्तराखंड के बांसों का विशेष रूप से इस्तेमाल किया गया है। ऑल इंडिया किसान महासभा के टैंट में लगे हुए ये फव्वारे सभी के आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। यह बंबू फव्वारा और फर्नीचर फव्वारा के रूप में पहचाने जाते हैं। इनके बारे में पता करने पर आपको बांसों के संबंध में कई नई व रोचक जानकारियां भी मिलेगी। यह फव्वारे बनते ही बांसों से हैं, लेकिन इसमें सभी प्रकार के बांसों का इस्तेमाल नहीं होता है। असम और उत्तराखंड के बांसों से फव्वारा बनाना कारीगर अधिक इन नंबरों को बनाने में कारीगर सबसे अधिक पसंद करते हैं। आकार-प्रकार के कारण यह बिहार और अन्य राज्यों के बांसों से काफी अलग हैं।
आगरा के किसान कारीगर महेश और माला देवी ने एनबीटी को बताया कि बताया कि बिहार के बासों में गांठें बहुत नजदीक होती हैं, जबकि असम और उत्तराखंड के बसों की गांठों में काफी दूर होती है। इसके अलावा बिहार के बांसों के बीच में खाली स्थान काफी कम होता है। उन राज्यों के बांसों में काफी जगह होती है, जिससे फव्वारा का पानी बना रहता है। साथ ही फव्वारा का डिजाइन भी आकर्षक बना रहता है। माला देवी ने बताया कि पानी के बहाव के लिए एक छोटी मोटर लगाई जाती है। इसे इलेक्ट्रिक सामानों की सामान्य जानकारी रखने वाला भी आसानी से बना सकता है। देसी साधनों के कारण इन फव्वारों की कीमत अधिक नहीं है। एकमुखी से लेकर 5 मुखी तक के फव्वारों की कीमत क्रमश 500 से लेकर 2200 रुपए तक बताई गई है। फव्वारों की सुंदरता बढ़ाने के लिए उसके आसपास छोटे गमलों में पौधे लगाकर रखे जा सकते हैं। फव्वारा के साथ पौधे रहने से उनमें नमी बनी रहती है।