बहादुरगढ़ मंडी में सरसों की सरकारी खरीद आज से शुरू होने जा रही है, लेकिन इस बार यहां किसान सरकार को सरसों नहीं बेचेंगे. किसानों ने ये फैसला इसलिए लिया है, क्योंकि इस बार प्राइवेट खरीददार सरकार के एमएसपी से ज्यादा भाव दे रहे हैं. किसानों की सरसों एमएसपी से करीबन 700 रुपए प्रति क्विंटल ज्यादा के भाव में बिक रही है. आज से बहादुरगढ़ में सरसों की सरकारी खरीद शुरू होनी है.
वहीं हम आपको बता दें कि यहां एक अप्रैल से गेहूं की खरीद शुरू होनी है. हरियाणा सरकार की वेबसाइट fasal.haryana.gov.in में मेरी फसल मेरा ब्यौरा पर रजिस्टर्ड किसानों की फसल सरकार खरीदेगी. वहीं बहादुरगढ के नजदीकी दिल्ली के गांवों के किसानों की फसल पर असमंजस अब भी बरकरार है. आढ़तीयों का कहना है कि जब किसान को कहीं भी जाकर फसल बेचने की आजादी है तो दिल्ली के किसानों को भी बहादुरगढ अनाज मंडी में फसल बेचने की आजादी मिलनी चाहिए. फसल खरीदने के लिए अभी तक यहां कोई व्यवस्था नहीं की गई है, जिससे आढ़ती भी परेशान हैं, इधर बहादुरगढ़ अनाज मंडी के हालात भी बदहाल हैं. यहां करीबन 20 दिनों से सफाई नहीं हुई है. जगह जगह कूड़े के ढेर लगे हुए हैं. इससे उड़ने वाली बदबू से लोगों का बुरा हाल है. यहां न तो किसानों के बैठने के लिए जगह है और ना पानी की व्यवस्था. शैड की व्यवस्था नहीं होने से किसानों की फसल भीगने का भी खतरा बना हुआ है. बदहाली के बीच किसान अपनी फसल बेचने को मजबूर है.
वहीं हम आपको बता दें कि यहां एक अप्रैल से गेहूं की खरीद शुरू होनी है. हरियाणा सरकार की वेबसाइट fasal.haryana.gov.in में मेरी फसल मेरा ब्यौरा पर रजिस्टर्ड किसानों की फसल सरकार खरीदेगी. वहीं बहादुरगढ के नजदीकी दिल्ली के गांवों के किसानों की फसल पर असमंजस अब भी बरकरार है. आढ़तीयों का कहना है कि जब किसान को कहीं भी जाकर फसल बेचने की आजादी है तो दिल्ली के किसानों को भी बहादुरगढ अनाज मंडी में फसल बेचने की आजादी मिलनी चाहिए. फसल खरीदने के लिए अभी तक यहां कोई व्यवस्था नहीं की गई है, जिससे आढ़ती भी परेशान हैं, इधर बहादुरगढ़ अनाज मंडी के हालात भी बदहाल हैं. यहां करीबन 20 दिनों से सफाई नहीं हुई है. जगह जगह कूड़े के ढेर लगे हुए हैं. इससे उड़ने वाली बदबू से लोगों का बुरा हाल है. यहां न तो किसानों के बैठने के लिए जगह है और ना पानी की व्यवस्था. शैड की व्यवस्था नहीं होने से किसानों की फसल भीगने का भी खतरा बना हुआ है. बदहाली के बीच किसान अपनी फसल बेचने को मजबूर है.