सरकार ने मसूर पर कृषि सेस को घटा दिया है. पहले मसूर पर कृषि सेस 20 फीसदी था जिसे घटाकर 10 परसेंट कर दिया गया है. अमेरिका के अलावा दूसरे देशों से भी एक्सपोर्ट ड्यूटी खत्म की गई है. मसूर पर लगने वाली इंपोर्ट ड्यूटी को भी घटाकर 20 परसेंट कर दिया गया है. अभी हाल में सरकार ने आयातकों को दलहनों के स्टॉक की सीमा से छूट देने का फैसला किया था. साथ ही मिलों, थोक व्यापारियों के लिए भी नियमों में ढील दी गई थी. यह कदम दलहन कीमतों में नरमी और राज्यों के प्रतिनिधियों से मिली राय के बाद उठाया गया. थोक व्यापारियों के लिए स्टॉक की सीमा 500 टन की होगी. किसी एक दाल की किस्म के लिए स्टॉक की सीमा 200 टन से अधिक नहीं होगी. वहीं मिलों के लिए स्टॉक की सीमा छह माह का उत्पादन या 50 प्रतिशत की स्थापित क्षमता, जो भी अधिक है, रहेगी. वहीं खुदरा व्यापारियों के लिए स्टॉक की सीमा पांच टन की रहेगी
इसे लेकर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने राज्यसभा में एक अधिसूचना जारी की. मसूर दाल पर बेसिक कस्टम ड्यूटी को घटाकर 10 परसेंट से जीरो कर दिया गया है. यह नियम अमेरिका के अलावा अन्य देशों पर लागू होगा. अगर अमेरिका से मसूर दाल का आयात होता है तो कस्टम ड्यूटी को 30 परसेंट से घटाकर 20 परसेंट कर दिया गया है. अप्रैल महीने में मसूल दाल की कीमत 70 रुपये से बढ़कर 100 रुपये तक हो गई थी जिसे रोकने के लिए सरकार ने कई कदम उठाए हैं. भारत हर साल लगभग 25 मिलियन टन दालों का आयात करता है. अंतरराष्ट्रीय बाजार में दालों की कीमतें बढ़ने से घरेलू बाजार में भी असर देखा जाता है.
दाल में कीमतें घटाने की कोशिश
देश में दाल की कीमतों में तेजी देखी जा रही है जिसे देखते हुए यह कदम उठाया गया है. कृषि सेस और इंपोर्ट ड्यूटी घटाने से दाम गिरेंगे और आम लोगों को सस्ती दर पर दालें मिल सकेंगी. इंपोर्ट ड्यूटी और कृषि सेस घटाने से व्यापारी बड़ी मात्रा में दालों का आयात करेंगे और इससे सप्लाई बढ़ेगी. लिहाजा दालों के दाम तेजी से गिरेंगे. स्टॉक सीमा पर लिए गए फैसले का भी असर दिखा है और दालों की कीमतें पहले की तुलना में घटी हैं. कृषि सेस घटने के बाद और भी असर देखा जा सकता है.
पहले से हो रही थी तैयारी
कुछ दिन पहले ऐसी खबर आई थी कि सरकार की अंतर मंत्रालयी बैठक में कृषि सेस घटाने पर फैसला हो सकता है. सूत्रों के हवाले से ऐसी खबर आ रही है कि फिलहाल मसूल दाल पर कृषि सेस को 20 परसेंट से घटाकर 10 परसेंट कर दिया गया है. साथ ही इंपोर्ट ड्यूटी भी 20 परसेंट कर दी गई है. माना जा रहा है कि पूर्व में जो भी फैसले लिए गए जिनमें दालों के आयात की मंजूरी से लेकर स्टॉक सीमा की जानकारी देने तक, उससे दाम घटाने में बड़ी मदद नहीं मिली. इसके बाद ही सरकार ने कृषि सेस घटाने का फैसला किया.
मसूर, काबुली चना जैसी दालों पर अभी 10 प्रतिशत की ड्यूटी लगती है. इसके अलावा 20 से 50 प्रतिशत तक कृषि सेस लगाया जाता है. विशेषज्ञों का मानना है कि दालों के आयात में तेजी लाने के लिए सरकार ने सेस में कटौती का फैसला लिया ताकि बड़ी मात्रा में दाल की आवक बढ़े और कीमतों को नियंत्रित किया जा सके.
स्टॉक सीमा पर फैसला
इससे पहले सरकार ने अपने फैसले में कहा था कि आयातकों, मिलों, खुदरा और थोक व्यापारियों को स्टॉक की घोषणा पोर्टल पर करना जारी रखना होगा. यदि उनके पास तय सीमा से अधिक स्टॉक है, तो उन्हें 19 जुलाई को जारी अधिसूचना के 30 दिन के अंदर इसे तय सीमा में लाना होगा. सरकार ने दो जून को थोक और खुदरा व्यापारियों, आयातकों और मिलों के लिए अक्टूबर तक मूंग को छोड़कर सभी दलहनों के लिए स्टॉक की सीमा की घोषणा की थी.
आयातकों और थोक व्यापारियों के लिए स्टॉक की सीमा 200 टन और खुदरा व्यापारियों के लिए पांच टन तय की गई थी. वहीं मिलों के मामले में स्टॉक की सीमा पिछले तीन माह के उत्पादन या वार्षिक उत्पादन क्षमता के 25 प्रतिशत के बराबर में जो भी अधिक हो, उसके बराबर तय की गई थी. भारतीय दलहन एवं अनाज संघ (आईपीजीए) के वाइस चेयरमैन विमल कोठारी ने इस फैसले पर कहा कि हमें विश्वास है कि इससे आगामी महीनों में दलहनों की आपूर्ति सुगम होगी और कीमतों में स्थिरता आएगी.