भारत में कृषि मॉनसून पर आधारित रही है. देश के कई हिस्सों में पानी की कमी है और इस वजह से खेतों को पर्याप्त पानी नहीं मिल पाता और फसलों की सिंचाई नहीं हो पाती है. इससे कृषि उपज काफी हद तक प्रभावित होती है. ऐसे में किसान कम पानी में सिंचाई का रास्ता निकालते हैं. वहीं दूसरी ओर सरकार की ओर से भी मदद की जाती है.
सरकार की ऐसी ही एक पहल है- ‘बूंद-बूंद सिंचाई पद्धति’ याानी ड्रिप इरीगेशन सिस्टम. किसानों को सिंचाई और जल संरक्षण की पहल से जोड़ने के लिए ड्रिप इरीगेशन प्रणाली को कई प्रदेशों में बढ़ावा दिया जा रहा है. केंद्र सरकार द्वारा चलाई जा रही प्रधानमंत्री सिंचाई योजना के तहत ‘पर ड्रॉप मोर क्रॉप’ सिंचाई योजना जल संरक्षण के क्षेत्र में काफी मुफीद साबित हो रही है.
क्या है बूंद-बूंद या टपक सिंचाई?
सिंचाई में पानी एक-एक बूंद का प्रयोग करने के लिए सरकार ने प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना चलाई है. इसके अंतर्गत सिंचाई की आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल करने पर जोर दिया गया है. इस सिस्टम में पानी को पौधों की जड़ों पर बूंद-बूंद करके टपकाया जाता है. इस कार्य के लिए पाइप, नलियों और एमिटर का नेटवर्क लगाना पड़ता है. इसे ‘टपक सिंचाई’ या ‘बूंद-बूंद सिंचाई’ कहते हैं. इसके जरिए पानी थोड़ी-थोड़ी मात्र में, कम अंतराल पर सीधा पौधों की जड़ों तक पहुंचाया जाता है.
यूपी-बिहार समेत कई राज्यों में किसान अपना रहे सिस्टम
सिंचाई के लिए ड्रिप इरीगेशन सिस्टम को उत्तर प्रदेश, बिहार समेत कई राज्यों के किसान अपना रहे हैं. बिहार के भागलपुर में तेतरी के प्रगतिशील किसान गोपाल सिंह ने अपने नारंगी, मुसंबी, सेब, अमरूद, पपीता जैसे फलों के खेतों में यही पद्धति अपनाई है. उन्होंने TV9 Hindi को बताया कि फलों की खेती में यह प्रणाली बहुत ही कारगर सिद्ध हो रही है. फलों का उत्पादन भी ज्यादा हो रहा है और पानी भी काफी कम खर्च हो रहा.
उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जैसे पिछड़े और कम पानी वाले पहाड़ी क्षेत्र में खेती कर रहे किसान जहां छोटे-छोटे उपकरणों का इस्तेमाल कर जल संरक्षण कर रहे हैं, तो वहीं अपनी फसलों को बेहतर लाभ भी दे रहे हैं. किसानों का मानना है कि स्प्रिंकलर, मिनी स्प्रिंकलर या ड्रिप जैसे सिंचाई उपकरणों से न सिर्फ पानी के बचत होती है बल्कि पानी की एक-एक बूंद उपयोगी सिद्ध होती है.
90 फीसदी सब्सिडी पर मिल रहीं ड्रिप, पोर्टेबल स्प्रिंकलर जैसे मशीनें
रिपोर्ट्स के मुताबिक, स्थानीय किसान बताते हैं कि पहले खेती में सिंचाई के लिए सस्ती पाइप की सहायता करते थे, इसके लिए उसे बीच-बीच में पाइप को तोड़ना पड़ता था, साथ ही नाली बनाना पड़ता था. इसमें कई बार अगर खेत समतल नहीं है तो एक ही जगह पानी भर जाता था तो कहीं पानी कम पहुंचता था. इससे फसलों को नुकसान होता था.
अब प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना आई, जिसके तहत पोर्टेबल स्प्रिंकलर, मिनी स्प्रिंकलर या ड्रिप 90 फीसदी तक की छूट मिलने लगी. अब इसको लगा कर काफी लाभ मिल रहा है. इससे सिंचाई करने पर मटर वगैरह की फसलों का उत्पादन काफी बढ़ा है. खास बात ये है कि तब पानी भी ज्यादा लगता था, लेकिन अब 50-60 प्रतिशत पानी की बचत होती है. साथ ही जो ऊपर कीड़े आदि बैठ रहते हैं वो भी उड़ जाते हैं.
सोनभद्र के हॉटीकल्चर ऑफिसर एसके शर्मा के मुताबिक, सोनभद्र जैसे जिलों में पानी का स्तर काफी नीचे जा रहा है, वहां के लिए यह सिस्टम काफी उपयोगी है. किसान सब्सिडी पर उपकरणों को लगाकर पानी की बचत तो कर ही रहे हैं, ऊर्जा भी बचा रहे हैं.