आज सरदार वल्लभ भाई पटेल की 71 वीं पुण्यतिथी, 15 दिसंबर 1950 को मुंबई में ली थी आखिरी सांस, जानिए इनसे जुडी ऐतिहासिक बातें ?

Parmod Kumar

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आज मुल्क के पहले वजीरे दाखिला (गृह मंत्री) सरदार वल्लभ भाई पटेल की 71 वीं पुण्यतिथी है. सरदार वल्लभ भाई पटेल एक ऐसी महान हस्ती थे कि उन्होंने किस्मत नहीं सिर्फ संकल्पशक्ति (अज़्म), और मेहनत के दम पर वो मुकाम बनाया जिसे किसी के लिए भी छू पाना मुमकिन नहीं है. उनकी गैर मामूली (असाधारण) काबिलियत ही थी कि एक साथ 562 रियासतों का एकीकरण करके उन्होंने भारतवर्ष को एक अज़ीम मुल्क (विशाल देश) की शक्ल दी.

सरदार पटेल उनका जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के खेड़ा जिले में हुआ था. उन्होंने अपनी आखिरी सांस 15 दिसंबर 1950 को मुंबई में ली. किसान परिवार में पैदा हुआ पटेल पटेल अपनी कूटनीतिक क्षमताओं के लिए भी याद किए जाते हैं. साल 1946 में जैसे-जैसे हिंदुस्तान को आजादी मिलने की उम्मीदें बढ़ रहीं थी वैसे ही कांग्रेस के ज़रिए सरकार के कयाम का अमल भी शुरू हो चुका था. सभी की निगाहें कांग्रेस के अध्यक्ष के पद पर टिकी हुई थीं क्योंकि ये लगभग तय हो चुका था कि जो कांग्रेस का अध्यक्ष बनेगा वही हिंदुस्तान का अगला प्रधानमंत्री भी चुना जाएगा.

गांधी जी के कहने पर छोड़ा ये ख्याल

दूसरी आलमी जंग, भारत छोड़ो आंदोलन और ज्यादातर कांग्रेसी लीडरों के जेल में बंद होने जैसे कई वजहों से आजाद अप्रैल 1946 तक अध्यक्ष बने रहे और जब कांग्रेस ने अध्यक्ष पद के लिए चुनाव का ऐलान किया तो आजाद ने दोबारा चुनाव लड़ने की ख्वाहिश जाहिर की थी लेकिन गांधी जी के कहने पर उन्हें यह ख्याल छोड़ना पड़ा. मौलाना आजाद को मना करने के साथ-साथ गांधी जी ने पंडित नेहरू की भी खुलकर हिमायत कर दी थी. गांधी जी की खुली हिमायत के बावजूद 15 में से 12 प्रदेश कांग्रेस कमेटियों ने सरदार वल्लभभाई पटेल को पार्टी अध्यक्ष चुना था. इसके बाद गांधी ने सरदार पटेल से मुलाकात कर कांग्रेस अध्यक्ष पद से हटने की गुज़ारिश की. सरदार पटेल ने इस गुजारिश को कुबूल की और कांग्रेस अध्यक्ष के ओहदे की कुर्बानी दी. कहा यह भी जाता रहा है कि जवाहरलाल नेहरू इत्तेफाक राए से मुल्क के पहले पीएम चुने गए थे और वे पूरे देश के चहेते थे.

भोपाल के नवाब ने सरदार पटेल के आगे मानी हार

आजादी के बाद जब हैदराबाद और जूनागढ़ ने भारत में मिलने से मना कर दिया. इसके पीछे पाकिस्तान और मोहम्मद अली जिन्ना की चाल थी, लेकिन हैदराबाद में सरदार पटेल ने सेना भेजकर वहां के निजाम का आत्मसमर्पण करवा लिया. वहीं, जूनागढ़ में जनता के विद्रोह से घबराकर वहां का नवाब भागकर पाकिस्तान चला गया. इसी तरह भोपाल के नवाब हमीदुल्ला खान ने भी शर्त रख दी कि वो या तो आजाद रहेंगे या पाकिस्तान में मिल जाएंगे. इसके बाद सरदार पटेल की वजह से ही भोपाल के नवाब ने हार मान ली.1 जून 1949 को भोपाल भारत का हिस्सा बन गया.

दिल का दौरा पड़ने से हुई मौत

15 दिसंबर, 1950 की सुबह तीन बजे पटेल को दिल का दौरा पड़ा और वो बेहोश हो गए. चार घंटों बाद उन्हें थोड़ा होश आया. उन्होंने पानी मांगा. मणिबेन ने उन्हें गंगा जल में शहद मिलाकर चम्मच से पिलाया. रात 9 बजकर 37 मिनट पर सरदार पटेल ने आखिरी सांस ली. वहीं भारत के वर्तमान गृह मंत्री अमित शाह ने सरदार पटेल को याद करते हुए लिखा था, ‘मातृभूमि के लिए सरदार साहब का समर्पण, निष्ठा, संघर्ष और त्याग हर भारतवासी को देश की एकता और अखंडता के लिए ख़ुद को समर्पित करने की प्रेरणा देता है. अखंड भारत के ऐसे महान शिल्पी की जयंती पर उनके चरणों में वंदन और समस्त देशवासियों को ‘राष्ट्रीय एकता दिवस’ की शुभकामनाएं.’