होम Health ब्रेन स्ट्रोक और ब्रेन हैमरेज में क्या है अंतर?…अटैक आते ही कर... ब्रेन स्ट्रोक और ब्रेन हैमरेज दोनों का ही नाम तो आपने सुना होगा, लेकिन ज्यादातर लोग इन दोनों के अंतर को नहीं समझते हैं। जबकि हर किसी व्यक्ति को इसके अंतर को पहचानना जरूरी है, क्योंकि यह मरीज की जान बचाने में बेहद मददगार साबित हो सकता है।
ब्रेन स्ट्रोक और ब्रेन हैमरेज दोनों का ही नाम तो आपने सुना होगा, लेकिन ज्यादातर लोग इन दोनों के अंतर को नहीं समझते हैं। जबकि हर किसी व्यक्ति को इसके अंतर को पहचानना जरूरी है, क्योंकि यह मरीज की जान बचाने में बेहद मददगार साबित हो सकता है। तो आइए आपको हम बताते हैं कि ब्रेन स्ट्रोक और ब्रेन हैमरेज है क्या? अगर किसी मरीज को इसका अटैक आ जाए तो फिर उसकी जान कैसे बचाई जा सकती है और उसका इलाज क्या है?
इस्किमिक ब्रेन स्ट्रोक का कारण
इस्किमिक स्ट्रोक का कारण डायबिटीज, हाइपरटेंशन, स्मोकिंग, खान-पान में गड़बड़ी, लिपिड कोलेस्ट्रॉल का बढ़ना है। इससे ब्लड वेसेल्स पतली हो जाती हैं और उसके अंदर चर्बी जमने से वह जाम हो जाती हैं। ऐसे में खून आगे नहीं जाता। कुछ लोगों में यदि हार्ट की प्रॉब्लम है तो हार्ट के अंदर खास करके एट्रील फिब्रीलेशन है तो हार्ट के ब्लड में छोटे-छोटे गुत्थे या क्लॉट बन जाते हैं और वो गलती से ब्रेन की ओर चले गए तो उसकी साइज के अनुसार ब्रेन की ब्लड वेसेल्स ब्लॉक हो जाती है। इससे आगे ब्लड की सप्लाई नहीं जाती। यह यंग लोगों में दिखने लगा है। इस्किमिक ब्रेन स्ट्रोक होने पर व्यक्ति बेहोश हो सकता है, चक्कर आ सकता है। शरीर के एक तरफ के अंग में शून्यता आ सकती है। चेहरा टेंढ़ा हो सकता है या आवाज भी जा सकती है।
हेमोरेजिक ब्रेन स्ट्रोक का कारण
हेमोरेजिक ब्रेन स्ट्रोक या ब्रेन हैमरेज 99 फ़ीसदी लोगों में ब्लड वेसल्स यानी खून की नसें फटने के कारण होता है। सिर दर्द या बेहोश होना इसका मुख्य लक्षण है।
पहले से यदि ब्लड वेसेल्स खराब है, उसमें कोई डैमेज या गुब्बारा बना हुआ है, जिसे एन्यूरिज्म कहते हैं या फिर नसों में कोई खराबी है, जिसे आर्टरीवेनस मालफॉर्मेशन (एवीएम) कहते हैं अथवा बहुत अधिक हाईपरटेंशन है, जिसकी वजह से ब्रेन के अंदर बहुत बारीक-बारीक छोटे-छोटे बैलून बन जाते हैं, जिसे वेरी एन्यूरिज्म कहते हैं तो उनके फटने से भी हेमोरेजिक ब्रेन स्ट्रोक हो जाता है। कई बार ब्लड प्रेशर फ्लक्चुएट करने से भी दिमाग की नस फट सकती है। सर्दियों में ये चीज ज्यादा आती है।
इलाज
डॉ राहुल गुप्ता कहते हैं कि अगर ब्लड वेसेल्स में काफी डैमेज हुआ है, नसें फट गई हैं, गुब्बारा बन गया है या नसों में बचपन से कोई समस्या है। उस केस में आपरेशन करके उसे रिपेयर किया जाता है। ताकि दोबारा ब्लीडिंग न हो। जबकि माइल्ड ब्लीडिंग को दवाइयों से ठीक किया जाता है। अगर ब्रेन स्कीमिया हुआ है यानि ब्लड वेसेल्स बंद हो गई और रक्त की सप्लाई नहीं जा रही, तो उसमें तुरंत उस हिस्से का जो डैमेज है वो सीटी स्कैन में नजर आएगा। उस ब्लॉकेज को दवाइयों से या विशेष तकनीकि से दूर कर दिया जाता है। वह कहते हैं कि स्ट्रोक होने से 4 से 6 घंटे के अंदर ऐसे अस्पताल पहुंचे जहां बेहतरीन न्यूरो सर्जन, न्यूरोलॉजिस्ट, सीटी स्कैन, सीटी एंजियोग्राफी, एमआरआइ, हार्ट का इकोकार्डियोग्राफी करने की सुविधाएं मौजूद हों। तब रोगी की जन बचाई जा सकती है। इधर_ उधर जाने में इससे अधिक समय खराब किया तो यह उसकी जान के लिए घातक हो सकता है।
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