Rohit Sharma Captaincy IND vs NZ: भारतीय क्रिकेट टीम को न्यूजीलैंड के खिलाफ शर्मनाक हार झेलनी पड़ी है। बेंगलुरु में हार के बाद रोहित शर्मा अपने फैसलों को लेकर आलोचकों के निशाने पर हैं। लेकिन क्या यह सही है कि 46 रन पर आउट होने वाली टीम की हार का विलेन सिर्फ कप्तान को बनाया जाए?
नई दिल्ली: एमएस धोनी ने 2007, 2009, 2010, 2012, 2014 और 2016 यानी 6 टी20 विश्व कप में कप्तानी की, जबकि एक विश्व कप में भारत विश्व विजेता रहा। धोनी की कप्तानी में भारत ने दो वनडे विश्व कप खेला, जबकि 2011 विश्व कप का खिताब जीता। जब भी भारत चैंपियन बना तो उसका सेहरा धोनी के सिर सजा, लेकिन कभी किसी सीजन में हार के लिए उन्हें विलेन नहीं बताया जाता। 2014 टी20 विश्व कप की बात आती है तो युवराज सिंह को विलेन के तौर पर जरूर याद किया जाता है, जिन्होंने 21 गेंदों में अपनी छवि के उलट 11 रन की धीमी पारी खेली। वह भी एक दौर रहा, जब कप्तान को हीरो और 2007 टी20 और 2011 विश्व कप फाइनल के ऑन पेपर हीरो युवराज सिंह और गौतम गंभीर को श्रेय कम मिलता है। इसी तरह से कपिल देव को 1983 विश्व कप के हीरो के तौर पर देखा जाता है, जबकि क्रिकेट एक टीम गेम है।
46 रन पर पूरी टीम आउट, 5 बल्लेबाज अंडर-10 तो रोहित अकेले विलेन क्यों?
ऊपर लिखी तमाम बातों का मतलब सिर्फ एक लाइन है- अगर उस वक्त कप्तान हीरो होता था तो आज जीत का श्रेय बंट क्यों जाता है? भारतीय टीम जीतती है तो हर किसी को श्रेय दिया जाता है। कोच गौतम गंभीर के आक्रामक तेवर की चर्चा होती है। विराट कोहली के एक-एक मोमेंट को गिना जाता है। रविंद्र जडेजा सर जडेजा बन जाते हैं तो अश्विन गोल्डन हैंड। खैर, मुद्दे पर आते हैं। टीम इंडिया जीतती है तो श्रेय हर किसी को मिलता है, लेकिन जब हारती है तो अकेले रोहित शर्मा ही विलेन क्यों कहे जाते हैं? अगर यह भी मान लिया जाए कि कप्तान के तौर पर उनकी भूमिका बढ़ जाती है तो यह तो जीत के श्रेय पर भी लागू होता है!
एमएस धोनी और विराट कोहली से तुलना करके नीच दिखाया जा रहा
टीम इंडिया जब न्यूजीलैंड के खिलाफ सिर्फ 46 रन पर आउट हुई तो रोहित शर्मा के आलोचक हाइपर एक्टिव हो गए। सोशल मीडिया पर विराट कोहली और एमएस धोनी की घरेलू मैदान पर की गई टेस्ट में कप्तानी से तुलना की गई और यह जाहिर करने की कोशिश की गई कि देखा वे कितने अच्छे कप्तान थे, रोहित शर्मा वैसे रिजल्ट नहीं दे पा रहे हैं, लेकिन हिटमैन पर उंगली उठाने से पहले उन्हें यह भी समझना चाहिए कि न्यूजीलैंड के अकेले खिलाड़ी ने 400 रन नहीं ठोके थे और न ही टीम इंडिया सिर्फ रोहित शर्मा के एक फैसले से 46 पर ढेर हुई थी। इसके लिए हर स्पेशलिस्ट बैट्समैन जिम्मेदार था।
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टॉस का फैसला क्या सिर्फ कप्तान का होता है?
विराट कोहली शून्य पर आउट हुए थे तो केएल राहुल और सरफराज खान ने भी कोई तीर नहीं मारा था। पिछले कुछ सालों में बैटिंग में एक्स फैक्टर रहे रविंद्र जडेजा और रविचंद्रन अश्विन के अलावा ऋषभ पंत भी फेल रहे। इनमें से हर किसी की जिम्मेदारी थी कि वे रन बनाएं। मैदान पर टिके और परिस्थिति के अनुसार टीम को सपोर्ट करें, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। अगर यह भी मान लिया जाए कि ओवरकास्ट कंडीशन में टॉस जीतकर बैटिंग का फैसला सिर्फ अकेले कप्तान रोहित शर्मा का था (सामान्यतः ऐसा होता नहीं है। टीम का सपोर्ट स्टाफ, कोच और सीनियर प्लेयर्स से टीम मीटिंग के बाद ही ये फैसला होता है) तो भी आईसीसी टेस्ट रैंकिंग की नंबर वन टीम के लिए ऐसी परिस्थिति में परफॉर्म करने के लिए तैयार रहना चाहिए।