कृषि के प्रति नई पीढ़ी का रुझान क्यों घटने लगा है?

parmodkumar

0
6

आशा के अनुरूप इस बार के केंद्रीय बजट 2024-25 में भी कृषि और किसानों का विशेष ध्यान रखते हुए कई नई घोषणाएं की गई तो कई मद में पैसे भी बढ़ाए गए हैं. इस बार के बजट में कृषि और इससे जुड़े सेक्टरों के लिए 1.52 लाख करोड़ रुपए प्रावधान किया गया है. यह पिछले बजट के 1.25 लाख करोड़ रुपए से 21.6 फीसदी यानी 25 हजार करोड़ रुपए ज्‍यादा है. वहीं पहले की तरह अब भी प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के तहत किसानों को साल में 6,000 रुपए मिलते रहेंगे. इतना ही नहीं, इस बार के बजट में अगले दो साल में एक करोड़ किसानों को प्राकृतिक खेती करने के लिए तैयार करने की भी घोषणा की गई है. जिससे न केवल किसानों को लाभ होगा बल्कि लोगों का स्वास्थ्य भी अच्छा रहेगा. लेकिन मौजूदा कृषि संबंधी समस्याओं को देखते हुए ऐसा लगता है कि इन घोषणाएं को और भी अधिक प्रभावी बनाना होगा क्योंकि किसानों विशेषकर छोटे स्तर के खेती किसानी में दिलचस्पी रखने वाली नई पीढ़ी में सिंचाई और अन्य समस्याओं के कारण कृषि के प्रति रुझान घटता नज़र आ रहा है. विशेष लाभ होता नहीं देखकर यह पीढ़ी किसानी छोड़कर मज़दूरी या अन्य सेक्टरों का रुख करने लगी है.

किसान कृषि संबंधी विभिन्न समस्याओं से परेशान हैं. जिसका प्रभाव उनकी फसल पर पड़ रहा है. समय पर सिंचाई नहीं होने के कारण अक्सर छोटे स्तर के किसानों की फसल सूख जाती है. जिससे उन्हें कृषि में लगातार घाटा का सामना करना पड़ रहा है. इस संबंध में 50 वर्षीय किसान सिकंदर पासवान कहते हैं कि “बिहार के अन्य ज़िलों की तुलना में गया गर्मी में सबसे अधिक गर्म और ठंड में सबसे अधिक ठंडा जिला होता है. जिसका सीधा प्रभाव कृषि पर पड़ता है. हालांकि सावन (जुलाई-अगस्त) में वर्षा की पर्याप्त मात्रा कृषि संबंधी रुकावटों को दूर कर देती है, लेकिन पिछले कुछ दशकों में बदलते पर्यावरण का प्रभाव कृषि पर भी पड़ने लगा है. अब पहले की तुलना में वर्षा कम या अनियमित होने लगी है. जबकि फसलों को समय पर सिंचाई की जरूरत पड़ती है. लेकिन आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं है कि सिंचाई का खर्च उठाया जा सके. इसकी वजह से फसल सूख जाती है. उसमें दाने ही नहीं लगते हैं. खेती में जितना पैसा लगाते हैं उससे कम आमदनी होती है. लगातार हो रहे घाटे से अब बच्चे खेती किसानी छोड़कर फैक्ट्रियों में मज़दूरी करने निकल रहे हैं.”

एक महिला किसान पार्वती पासवान कहती हैं कि “कृषि मेरे लिए घाटे का सौदा बन गया है. साहूकार से पैसे लेकर एक बीघा ज़मीन खेती के लिए लीज़ पर लिया था. सोचा था कि पूरी मेहनत से खेती करूंगी तो अच्छी फसल होगी, जिससे अच्छी आमदनी होगी और साहूकार का पैसा भी समय पर लौटा दूंगी. लेकिन सिंचाई की बेहतर व्यवस्था नहीं होने के कारण पूरी फसल सूख गई है. अब तो लागत का पैसा भी निकलना मुश्किल हो रहा है.” वह कहती हैं कि अनियमित बारिश के कारण अब हर साल खेतों में सिंचाई आवश्यक हो गई है. जिसके लिए पंप और डीज़ल का खर्च बहुत अधिक हो जाता है. यह हमारे पूरे बजट से बाहर की बात होती है. घर में पैसे का इंतज़ाम करने के लिए बेटा मज़दूरी करने सूरत की कपड़ा फैक्ट्री में काम करने चला गया है. गांव के एक अन्य किसान राधो पासवान की पत्नी राखी देवी कहती हैं कि उनके पास कृषि के लिए पांच कट्ठा ज़मीन है. लेकिन अब उनके पति खेती से अधिक मज़दूरी पर ध्यान केंद्रित करने लगे हैं. वहीं उनके दोनों बेटे भी कृषि का काम छोड़कर नोएडा की फैक्ट्री में काम करते हैं. वह कहती हैं कि ज़मीन पर सिंचाई की बेहतर व्यवस्था नहीं है. भाड़े पर सिंचाई के लिए पंप लाना पड़ता है. फिर उसमें डीज़ल भरवाने का खर्चा लगता है. इसके बाद भी यदि किसी कारण फसल खराब हुई तो सब कुछ बर्बाद हो जाता है. इसलिए बच्चों ने पहले ही खेती करने से मना कर दिया था. अब अकेले पति से खेती का काम नहीं हो पाता है. इसलिए वह भी मज़दूरी करने निकल जाते हैं