किसान आखिर क्‍यों नेशनल हाईवे की नाकेबंदी खोलने को राजी नहीं हैं, जानिए पूरी जानकारी।

Parmod Kumar

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केंद्र सरकार के तीन नये कृषि कानूनों के खिलाफ जारी विरोध प्रदर्शनों से अवरुद्ध राजमार्गों खोलने को लेकर सुप्रीम कोर्ट के 23 अगस्त के आदेश के मद्देनजर हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने हाल ही में सोनीपत जिले में सिंघू बॉर्डर के पास नेशनल हाईवे (NH-44) पर नाकेबंदी हटाने के लिए किसानों को राजी करने के लिए एक बैठक की अध्यक्षता की. हालांकि इस बैठक में किसान शामिल नहीं हुए. इसके साथ उन्‍होंने कहा कि वे नाकेबंदी के लिए जिम्मेदार नहीं हैं. इसके बाद भी राज्‍य सरकार लगातार किसानों के साथ बातचीत कर रही है, ताकि समस्‍या का समाधान निकल सके. यही नहीं, कई बार सीएम खुद भी कह चुके हैं हम अपने किसान भाइयों की हर बात सुनने को तैयार हैं, क्‍योंकि हम उनका दुख दर्द समझते हैं. किसानों ने हरियाणा और दिल्ली पुलिस पर हाईवे रोकने के आरोप लगाए हैं.

इसके अलावा इस बैठक में किसानों के साथ बातचीत करने के लिए अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) की अध्यक्षता में एक अन्य वरिष्ठ नौकरशाह और शीर्ष पुलिस अधिकारियों की एक समिति गठित की गई है. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपार्ट के अनुसार, हालांकि किसान यह कहते हुए बैठक में नहीं गए कि वे नाकेबंदी के लिए जिम्मेदार नहीं हैं और सरकार सुप्रीम कोर्ट के आदेश की ‘गलत व्याख्या’ कर रही है.

23 अगस्त के अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
किसानों के विरोध प्रदर्शन और सिंघू बॉर्डर पर नाकेबंदी के कारण राष्ट्रीय राजमार्ग 44 (अंबाला-नई दिल्ली खंड) पर यात्रियों को होने वाली असुविधा को लेकर मोनिका अग्रवाल की एक रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 23 अगस्त को कहा था कि मामले का समाधान भारत संघ और संबंधित राज्य सरकारों के हाथों में है और उन्हें यह सुनिश्चित करने के लिए समन्वय करना चाहिए कि यदि विरोध जारी है, तो भी कम से कम अंतर-राज्यीय सड़कों और राष्ट्रीय राजमार्गों को किसी भी तरह से अवरुद्ध नहीं किया जाए, ताकि उन सड़कों पर आने-जाने वालों को कोई असुविधा न हो.

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राज्‍य की समिति में कौन है?
हरियाणा सरकार की समिति के अध्यक्ष अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) राजीव अरोड़ा हैं. जबकि राज्य के पुलिस महानिदेशक पीके अग्रवाल, एडीजीपी (कानून व्यवस्था) नवदीप सिंह विर्क और बलकार सिंह (गृह सचिव -1) सदस्य हैं. समिति और किसान नेताओं के बीच बैठक आयोजित करने का कार्य सोनीपत जिला प्रशासन को सौंपा गया था. यह सिंघू बॉर्डर से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर मुरथल में बुलाई गई थी.

किसान यूनियनों ने वार्ता के लिए समिति के निमंत्रण को क्यों ठुकराया?
संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) समन्वय समिति ने समिति के साथ बातचीत नहीं करने का फैसला करते हुए कहा कि हरियाणा सरकार सुप्रीम कोर्ट के आदेश की गलत व्याख्या कर रही है. मोर्चा ने एक बयान जारी करके कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने 23 अगस्त 2021 को WP (सिविल) नंबर 249/2021 में अपने आदेश में कहा है कि इस मामले का समाधान भारत सरकार और संबंधित राज्य सरकारों के हाथों में है. एसकेएम ने जोर देकर कहा कि वास्तव में ऐसा ही है. भारत सरकार किसानों की जायज मांगों को पूरा नहीं करने पर अड़ी रही है और 22 जनवरी 2021 के बाद किसानों के प्रतिनिधियों के साथ कोई बातचीत नहीं की है.बयान में कहा गया, ‘यह शर्मनाक है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में एक चुनी हुई सरकार खुद अपने नागरिकों को अपनी आजीविका और भविष्य बचाने के लिए इस तरह के संघर्ष में डाल रही है.’

NH-44 पर नाकेबंदी के लिए किसान किसे जिम्मेदार ठहरा रहे हैं?
एसकेएम ने कहा कि किसानों को हरियाणा और दिल्ली पुलिस ने रोका है, जिन्होंने बैरिकेड्स लगाए और सड़कों को अवरुद्ध कर दिया. सड़कों को जाम करने वाले किसान नहीं हैं. दरअसल, विरोध कर रहे किसानों ने सिंघू बॉर्डर और टिकरी बॉर्डर पर सड़क के दोनों ओर यातायात के आवागमन के लिए स्पष्ट रास्ता बनाया हुआ है और गाजीपुर बॉर्डर पर सड़क के केवल एक तरफ कब्जा करने को मजबूर हैं. यही हाल शाहजहांपुर बॉर्डर और अन्य मोर्चों का है. एसकेएम ने याद दिलाया कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में केंद्र सरकार और संबंधित राज्य सरकारों को समन्वय के लिए जिम्मेदार ठहराया है.