जहरीला धुआं क्या ये घर में नहीं घुसेगा ,सरकार असली संकट का समाधान करो !

parmodkumar

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दिल्ली-NCR में सर्दियों की शुरुआत हो चुकी है। सर्दियों की दस्तक के साथ ही जहरीली हवा वाली मौसमी बीमारी भी बदस्तूर जारी है। बिल्कुल, इसे बदस्तूर ही कहेंगे। भले ही यह दस्तूर हमारी करनी का ही फल है लेकिन अब यह दस्तूर तो हो ही गया है। हर साल सर्दियों में जहरीली हवा दिल्ली-एनसीआर को गैस चैंबर में बदल देती है।

तो घर में नहीं घुसेगी जहरीली हवा

दिल्ली में जिस तरह से गैंस चैंबर बन रही है, इससे सबसे अधिक परेशानी बच्चों और बुजुर्गों को हो रही है। बच्चों की हालत यह है कि उनका घर से बाहर खेलना तक मुश्किल हो गया है। यदि गलती से बाहर कुछ घंटे खेल लिए तो घर आते ही गले में खराश से लेकर खांसी होना तो मानो तय है। बच्चों में इस जहरीले धुएं की वजह न्यूमोनिया और ब्रोंकाइटिस जैसे लक्षण पनपने की आशंका बढ़ गई है। ऐसे में सवाल है कि यदि जहरीली हवा का निदान नहीं निकला तो घर में नौनिहालों का रहना भी मुश्किल हो जाएगा।

टीवी, न्यूजपेपर में फैंसी टर्म

हालत यह है कि अखबारों से लेकर टीवी तक ग्रैप 3, ग्रैप 4, ऑड-ईवन जैसे फैंसी टर्म खूब देखने सुनने को मिल रहे हैं। पहले पहली से 5वीं, फिर 12 तक के बच्चों के स्कूल बंद कर दिए गए हैं। सुप्रीम कोर्ट में एक बार फिर प्रदूषण को लेकर सुनवाई चल रही है। प्रदूषण को लेकर खूब चर्चा हो रही है। अगर कुछ नहीं दिख रहा है तो इस समस्या का समाधान। डॉक्टर तो लोगों को चेता रहे हैं कि अगर एक घंटे भी स्मॉग में रहे तो फेफड़ों का संक्रमण होने की आशंका बढ़ जाएगी। हवा में मौजूद जहरीले कण सांसों के जरिये बॉडी में घुस कर श्वसन तंत्र को प्रभावित कर देंगे।

जहरीली हवा का असर इससे समझा जा सकता है कि सुबह-सुबह बाहर निकलने में आंखों में जलन के साथ ही गले में खराश और लगातार खांसी तो साथ ही नहीं छोड़ रही है। हवा में तीखी गंध जारी है। दिल्ली के लोग जहरीली हवा में सांस लेने के लिए मजबूर हैं। हालात यह है कि दिल्ली में प्रदूषण मामले का पैमाना AQI कई इलाकों में 500 के पार जा चुका है। यह इस मौसम में सबसे खराब है। यह 2015 में AQI दर्ज किए जाने के बाद से दूसरा सबसे अधिक स्तर तक पहुंच चुका है।
जानकारों की मानें तो प्रदूषित हवा एक अदृश्य हत्यारा की तरह है। एक्सपर्ट का कहना है कि हम जो भी सांस लेते हैं, वह चुपचाप हमारे सेहत पर कहर बन कर टूटती है। जहरीली हवा के असर से बच्चों में तो अस्थमा के दौरे से लेकर हृदय रोग, फेफड़ों के कैंसर तक हो सकता है। इसका खामियाजा कमजोर लोगों को भुगतना पड़ता है।

एक दूसरे पर दोष डालना बंद हो

खास बात है कि स्मॉग को लेकर राज्यों और केंद्र सरकार में एक दूसरे पर लगातार दोषारोपण किया जा रहा है। सरकारें अपनी असफलता के लिए अलग-अलग कारण बता रही हैं लेकिन समाधान नहीं बता है। हालांकि, प्रदूषण को कम करने में जनभागीदारी भी काफी जरूरी है। सरकार को लोगों की सांसों में घुलने वाले जहर की समस्या का समाधान करने के लिए जल्द से जल्द रास्ते खोजने होंगे।